गुमलाः जिला में नकली जन्म प्रमाण पत्र बनाकर लोगों का आर्थिक दोहन किया जा रहा है. गांव के भोले भाले और अशिक्षित लोगों को इसका शिकार बनाया जा रहा है. इन क्षेत्रों के डिजिटल शॉप चलाने वाले लोग ग्रामीणों से ठगी कर रहे हैं. गुमला में फर्जीवाड़ा का खेल सामने आया है.
इसे भी पढ़ें- Land Dispute In Palamu: जमीन खरीद बिक्री के नाम पर हो रहा फर्जीवाड़ा, हर महीने दर्ज हो रहे दर्जनों मामले
फर्जीवाड़ा का खेलः डिजिटल दुकान चलाने वाले ऐसा नकली प्रमाण पत्र ऐसा बना रहे हैं, जैसा सरकारी कार्यालयों से निर्गत किया जाता है और अधिकारियों के हस्ताक्षर भी सही पाये जा रहे हैं. ताजा मामला गुमला सदर अस्पताल में पकड़ में आया है. जहां गुमला सदर प्रखंड के टोटो गांव निवासी शंकरी देवी अपने दो बच्चों के डिजिटल शॉप में बने जन्म प्रमाण पत्र में स्टांप लगाने सदर अस्पताल पहुंची थी. इस दौरान अस्पताल के कर्मचारियों ने जन्म प्रमाण पत्र की जांच में सर्टिफिकेट को गलत पाया गया. जन्म प्रमाण पत्र नगर परिषद, अस्पताल, एसडीओ कार्यालय व ब्लॉक स्तर से मिलता है. अस्पताल में अगर बच्चा जन्म लेता है तो उसे अस्पताल प्रबंधन के द्वारा जन्म प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया जाता है. लेकिन डिजिटल शॉप से जन्म प्रमाण पत्र निर्गत किया जाना बहुत बड़ा जालसाजी है.
क्या कहते हैं ग्रामीणः शंकर देवी ने बताया कि रितेश मांझी व शिवम मांझी उसके दो पुत्र हैं. रितेश मांझी का जन्म 8 साल पहले गुमला सदर अस्पताल में हुआ था जबकि शिवम मांझी का जन्म गुजरात में हुआ है. रितेश मांझी का गुमला सदर अस्पताल से जन्म प्रमाण पत्र नहीं बना है. शंकरी देवी ने बताया कि रांची जिला के मोहुगांव लापुंग-गोविंंदपुर के एक डिजिटल शॉप से उसके पति ने दोनों बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र बनवाया. जिसके एवज में उसके पति से डिजिटल शॉप वाले ने 700 रुपया लिया था. जन्म प्रमाण पत्र में पूर्व अस्पताल उपाधीक्षक आनंद उरांव का हस्ताक्षर भी हैं. डिजिटल शॉप चलाने वाले लोग गलत तरीके से प्रमाण पत्र देकर अपने न्याय की लगाने के लिए सदर अस्पताल में चकर काट रहे हैं, जो जांच का विषय है. लेकिन महिला को न्याय देने वाला कोई नहीं मिल रहा है जिसे साफ अंदाजा लगाया जा रहा है कि यह फर्जीवाड़ा काफी दिनों से चल रहा है.
दोनों ही प्रमाण पत्र गलत हैं- एचएमः इस मामले में सदर अस्पताल के मैनेजर राजीव कुमार ने बताया कि शंकरी देवी जब अस्पताल में जन्म प्रमाण पत्र में स्टांप लगाने पहुंची तो जांच के बाद मामले का खुलासा हुआ. दोनों ही प्रमाण पत्र गलत तरीके से बनाया गया है. अस्पताल के माध्यम से प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया गया है. उन्होंने मामले की जांच के लिए सांख्यिकी विभाग को अवगत कराया है.