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कारगिल विजय दिवस विशेष: गुमला के शहीद जॉन अगस्तुस गुमनामी के अंधेरे में गुम

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Published : Jul 25, 2020, 4:24 PM IST

Updated : Jul 26, 2020, 5:30 AM IST

कारगिल युद्ध का 21 साल बीत चुका है. इस युद्ध में झारखंड के गुमला जिले के रायडीह प्रखंड क्षेत्र के तेलया गांव के जॉन अगस्तुस भी शहीद हो गए थे. आज उनकी शहादत गुमनामी के अंधेरे में गुम है.

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शहीद जॉन अगस्तुस

गुमला: 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ था. इस युद्ध में झारखंड के गुमला जिले के तीन सपूत शहीद हो गए थे. जिनमें से एक थे रायडीह प्रखंड क्षेत्र के तेलया गांव के जॉन अगस्तुस. जम्मू कश्मीर की लाइन ऑफ कंट्रोल में ऑपरेशन रक्षक के तहत जब 1999 में पाकिस्तान से भीषण युद्ध हुआ था. उस समय दुश्मनों से लोहा लेते हुए जॉन अगस्तुस 25 दिसंबर 1999 को वीरगति को प्राप्त हुए थे. युद्ध का अब दो दशक का समय समाप्त हो चुका है. ऐसे में यह वीर सपूत शहीद होने के बाद भी गुमनामी के अंधेरे में खो गए हैं. आज तक न तो इनके परिवार के किसी सदस्य को उनके स्थान पर सरकारी नौकरी मिली है और न ही उन्हें राज्य सरकार से कोई सहयोग ही मिल पाया है. यहां तक की उनके गांव का भी विकास नहीं हुआ है.

देखें पूरी खबर

शहीद के परिवार पर किसी ने नहीं दिया ध्यान
शहीद जॉन अगस्तुस 7 बिहार रेजीमेंट में L/Hav के पद पर तैनात थे. इन्हें 9 साल के लंबे सर्विस के लिए मेडल, स्पेशल सर्विस मेडल, विदेश सेवा मेडल ( श्रीलंका ) और 20 साल के लंबे सर्विस के लिए मेडल मिल चुका है. शहीद अपने पीछे अपने माता-पिता अपनी पत्नी और दो बच्चों को छोड़ गए हैं. उनकी शहादत के बाद उनका उनका आधा परिवार गांव में रहता है, जबकि उनकी पत्नी और दो बेटे गुमला मुख्यालय स्थित दाउदनगर में रहते हैं.

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शहीद बेटे की तस्वीर के साथ पिता

गांव में खपरैल मकान

बता दें कि गांव में आज भी खपरैल मकान है, जबकि शहर में जो घर है वह उनकी पत्नी ने अपने रिटायरमेंट के पैसों से बनाया है. उनकी पत्नी एक शिक्षिका रहीं, जो 3 साल पहले अपनी सर्विस से रिटायर हुई हैं. शहीद के भाई ने बताया उनके बड़े भाई आर्मी में थे और देश की सेवा करते हुए शहीद हो गए. मगर उनकी शहादत के बाद भी परिवार की स्थिति पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है और न ही उनके गांव के विकास पर कोई ध्यान है.

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शहीद की तस्वीर के साथ बेटा और पत्नी

ये भी पढ़ें- जैविक खेती से जिंदगी संवार रहे रांची के किसान, डबल मुनाफा के साथ-साथ सेहत भी बरकरार


21 साल बाद भी नहीं मिला मुआवजा
शहीद की पत्नी इमिलेयानी एक्का ने बताया कि 25 दिसंबर 1999 को उनके पति कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे. उनकी शहादत की खबर परिवारवालों को 1 सप्ताह बाद मिली थी. उस वक्त न तो मोबाइल फोन था और न ही टेलीफोन की सुविधा. ऐसे में 1 सप्ताह बाद जब उन्हें अपने पति की शहादत की खबर मिली तो ऐसा लगा कि जैसे दुनिया ही उजड़ गई है. उन्होंने बताया कि उनके पति की शहादत के बाद उनके सर्विस के तहत जो पैसे कटे थे, वह पैसे मिले. लेकिन इसके अलावा किसी भी सरकार से 21 साल बीत जाने के बाद भी कोई मदद नहीं मिली है. जब उनके पति की शहादत हुई थी उस समय बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना था. ऐसे में 2 राज्यों के बीच उनके पति की शहादत का जो मुआवजा मिलना होता है वह दब गया.

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शहीद जॉन अगस्तुस (फाइल फोटो)

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प्रतिमा स्थापित करवाए राज्य सरकार

वहीं, शहीद के बेटे सुकेश कुमार एक्का ने बताया कि जब पिता शहीद हुए थे, उस समय उनकी उम्र काफी छोटी थी. अब जब वे बड़े हो गए हैं तो उन्हें अपने पिता की शहादत पर गर्व है. उनका कहना है कि राज्य सरकार उनके पिता अगस्तुस की शहादत जो गुमनामी के अंधेरे में खो गई है, उन्हें सम्मान देते हुए जिला मुख्यालय में एक प्रतिमा स्थापित करें, इसके साथ ही गांव का भी विकास किया जाए.

दरअसल, कारगिल युद्ध में लड़ने के कुछ दिनों बाद ही जवान जम्मू कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन रक्षक में शहीद हुए थे. उस वक्त सरकार ने ये ऐलान किया था कि कारगिल युद्ध में शामिल जवान यदि शहीद होते हैं तो वे कारगिल शहीद में ही गिने जाएंगे.

गुमला: 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ था. इस युद्ध में झारखंड के गुमला जिले के तीन सपूत शहीद हो गए थे. जिनमें से एक थे रायडीह प्रखंड क्षेत्र के तेलया गांव के जॉन अगस्तुस. जम्मू कश्मीर की लाइन ऑफ कंट्रोल में ऑपरेशन रक्षक के तहत जब 1999 में पाकिस्तान से भीषण युद्ध हुआ था. उस समय दुश्मनों से लोहा लेते हुए जॉन अगस्तुस 25 दिसंबर 1999 को वीरगति को प्राप्त हुए थे. युद्ध का अब दो दशक का समय समाप्त हो चुका है. ऐसे में यह वीर सपूत शहीद होने के बाद भी गुमनामी के अंधेरे में खो गए हैं. आज तक न तो इनके परिवार के किसी सदस्य को उनके स्थान पर सरकारी नौकरी मिली है और न ही उन्हें राज्य सरकार से कोई सहयोग ही मिल पाया है. यहां तक की उनके गांव का भी विकास नहीं हुआ है.

देखें पूरी खबर

शहीद के परिवार पर किसी ने नहीं दिया ध्यान
शहीद जॉन अगस्तुस 7 बिहार रेजीमेंट में L/Hav के पद पर तैनात थे. इन्हें 9 साल के लंबे सर्विस के लिए मेडल, स्पेशल सर्विस मेडल, विदेश सेवा मेडल ( श्रीलंका ) और 20 साल के लंबे सर्विस के लिए मेडल मिल चुका है. शहीद अपने पीछे अपने माता-पिता अपनी पत्नी और दो बच्चों को छोड़ गए हैं. उनकी शहादत के बाद उनका उनका आधा परिवार गांव में रहता है, जबकि उनकी पत्नी और दो बेटे गुमला मुख्यालय स्थित दाउदनगर में रहते हैं.

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शहीद बेटे की तस्वीर के साथ पिता

गांव में खपरैल मकान

बता दें कि गांव में आज भी खपरैल मकान है, जबकि शहर में जो घर है वह उनकी पत्नी ने अपने रिटायरमेंट के पैसों से बनाया है. उनकी पत्नी एक शिक्षिका रहीं, जो 3 साल पहले अपनी सर्विस से रिटायर हुई हैं. शहीद के भाई ने बताया उनके बड़े भाई आर्मी में थे और देश की सेवा करते हुए शहीद हो गए. मगर उनकी शहादत के बाद भी परिवार की स्थिति पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है और न ही उनके गांव के विकास पर कोई ध्यान है.

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शहीद की तस्वीर के साथ बेटा और पत्नी

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21 साल बाद भी नहीं मिला मुआवजा
शहीद की पत्नी इमिलेयानी एक्का ने बताया कि 25 दिसंबर 1999 को उनके पति कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे. उनकी शहादत की खबर परिवारवालों को 1 सप्ताह बाद मिली थी. उस वक्त न तो मोबाइल फोन था और न ही टेलीफोन की सुविधा. ऐसे में 1 सप्ताह बाद जब उन्हें अपने पति की शहादत की खबर मिली तो ऐसा लगा कि जैसे दुनिया ही उजड़ गई है. उन्होंने बताया कि उनके पति की शहादत के बाद उनके सर्विस के तहत जो पैसे कटे थे, वह पैसे मिले. लेकिन इसके अलावा किसी भी सरकार से 21 साल बीत जाने के बाद भी कोई मदद नहीं मिली है. जब उनके पति की शहादत हुई थी उस समय बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना था. ऐसे में 2 राज्यों के बीच उनके पति की शहादत का जो मुआवजा मिलना होता है वह दब गया.

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शहीद जॉन अगस्तुस (फाइल फोटो)

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प्रतिमा स्थापित करवाए राज्य सरकार

वहीं, शहीद के बेटे सुकेश कुमार एक्का ने बताया कि जब पिता शहीद हुए थे, उस समय उनकी उम्र काफी छोटी थी. अब जब वे बड़े हो गए हैं तो उन्हें अपने पिता की शहादत पर गर्व है. उनका कहना है कि राज्य सरकार उनके पिता अगस्तुस की शहादत जो गुमनामी के अंधेरे में खो गई है, उन्हें सम्मान देते हुए जिला मुख्यालय में एक प्रतिमा स्थापित करें, इसके साथ ही गांव का भी विकास किया जाए.

दरअसल, कारगिल युद्ध में लड़ने के कुछ दिनों बाद ही जवान जम्मू कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन रक्षक में शहीद हुए थे. उस वक्त सरकार ने ये ऐलान किया था कि कारगिल युद्ध में शामिल जवान यदि शहीद होते हैं तो वे कारगिल शहीद में ही गिने जाएंगे.

Last Updated : Jul 26, 2020, 5:30 AM IST
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