गोड्डा: नई सरकार बनने के बाद जिस बात की सबसे अधिक चर्चा राजनीतिक गलियारों में हो रही है वो है कि खरमास के बाद बाबूलाल भाजपा में जाएंगे या फिर पूरी पार्टी का विलय होगा. लेकिन सच ये भी है बाबूलाल मरांडी की जान राजनीतिक रूप से प्रदीप यादव में अभी भी अटकी है.
बाबूलाल मरांडी पर सबसे ज्यादा चर्चा
झारखंड की राजनीति में नई सरकार बनने के बाद जिसकी सबसे अधिक चर्चा है वो बाबूलाल मरांडी को लेकर है. कयासों का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा. कोई कह रहा खरमास के बाद बाबूलाल मरांडी भाजपा में जाएंगे तो कोई कह रहा कि झाविमो का ही विलय भाजपा में हो जाएगा.
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प्रदीप यादव ने हमेशा दिया बाबूलाल का साथ
लेकिन ये इतना आसान है ऐसा भी नहीं है. क्योंकि बाबूलाल की जान आखिरकर प्रदीप यादव में है. क्योंकि ये भी है कि 2006 में भाजपा से अलग होकर 14 साल वनवास के दौरान जिस एक शख्स ने बाबूलाल मरांडी का साथ दिया वो कोई और नहीं प्रदीप यादव ही हैं. भले ही 2009 में 11 विधायक, 2014 में 8 विधायक और 2019 में 3 विधायक झाविमो के जीते. लेकिन इन सभी में जो एक विधायक हर बार झाविमो में रहा वो प्रदीप यादव थे.
विधायक अन्य दलों में चलते बने
भले ही हर बार कई विधायक झाविमो की टिकट पर जीते, लेकिन अन्य दलों में चलते बने और यही कारण है कि प्रदीप यादव, बाबूलाल मरांडी हर राजनीतिक चाल के राजदार भी हैं. 2014 में परिणाम के बाद जब झाविमो के भाजपा में पार्टी के विलय के बात आई उसमें भी बाबूलाल ने पार्टी के 7 विधायक को नजर अंदाज कर प्रदीप यादव की बात मानी थी. तब बाबूलाल पर ये आरोप लगा था कि पार्टी में सिर्फ प्रदीप यादव की चलती है और बाबूलाल मरांडी उनकी कठपुतली मात्र हैं. नतीजा सामने था प्रदीप यादव को छोड़ 6 पहले भाजपा में गए और एक प्रकाश राम बाद में पार्टी छोड़ गए.
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तीन महीने से ज्यादा जेल में रहे
पिछली लोकसभा 2019 चुनाव बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव की दोस्ती में लड़ा गया. सिर्फ दो सीट गठबंधन में मिली, दोनों हार गए. इसी दौरान प्रदीप यादव पर अपनी ही पार्टी की नेता के साथ यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ का मामला दर्ज हुआ और प्रदीप यादव इस मामले में तीन माह से ज्यादा जेल में रहे.
20 साल की दोस्ती
बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव की 20 साल की दोस्ती में पहली बार दरार आई. चुनाव हारने के बाद जब बाबूलाल के साथ की प्रदीप यादव को जरूरत थी, तब बाबूलाल मरांडी ने प्रदीप यादव को पार्टी के प्रधान महासचिव पद से हटा दिया.
प्रदीप यादव के साये से निकलना चाहते थे!
दरअसल, बाबूलाल को भी लगने लगा था कि वे प्रदीप यादव के साये से निकलना चाहते थे. वहीं प्रदीप यादव को भी ये नागवार गुजरा. पिछले चुनाव में स्टार प्रचारक होने के बावजूद वे कहीं नहीं गए, तो बाबूलाल मरांडी जब उनके ही क्षेत्र में प्रचार करने आये तो प्रदीप यादव ने मंच तक साझा नहीं किया. लेकिन वो जीत गए ये अच्छी बात रही.
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बंधु तिर्की ने साफ संकेत दिए हैं कि वे भाजपा में नहीं जाएंगे
अब जब बाबूलाल मरांडी जिनका भाजपा में जाना तय माना जा रहा है. उन्होंने इसकी तैयारी के तहत पहले ही संगठन को भंग कर दिया है. अब उनका निर्णय ही संगठन का निर्णय होगा. ऐसे में सांगठनिक स्तर पर पार्टी के विलय में परेशानी नहीं होगी. लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है कि पार्टी के संपूर्ण विलय के लिए दो तिहाई संख्या चाहिए. उस लिहाज से 3 में से 2 विधायक का साथ होना जरूरी है. ऐसे में बंधु तिर्की ने साफ संकेत दिए हैं कि वे भाजपा में नहीं जाएंगे.
प्रदीप यादव भी अपना पत्ता नहीं खोल रहे
अब बात प्रदीप यादव पर अटकती है. प्रदीप यादव भी अपना पत्ता नहीं खोल रहे हैं. लेकिन इशारों में कह दिया है कि वे अभी जहां हैं ठीक हैं. मतलब फिलहाल महागठबंधन में ही रहेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि दो-तिहाई कैसे. वहीं बैठक के दौरान पार्टी संगठन को भंग करने का प्रदीप यादव ने विरोध भी किया था और कहा था कि क्यों नहीं पुनर्गठन किया जाए. वहीं बाबूलाल मरांडी ने प्रदीप यादव को पक्ष में करने के लिए एक दाव भी चला है, जिसमें कहा है कि सरकार अडानी विरोध और सरकारी कार्य में बाधा डालने के मामले को वापस ले. बता दें कि इस मामले में प्रदीप यादव पांच माह जेल में थे. इस मामले में भी वे जमानत पर हैं.
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दोनों के 'जीन' भाजपाई
वैसे इतना तो तय है कि बाबूलाल मरांडी हों या प्रदीप यादव, दोनों के जीन भाजपाई हैं. दोनों ने भाजपा से ही राजनीति की शुरुआत की है. लेकिन बाबूलाल के बिना प्रदीप रहेंगे, ऐसा मानना आसान नहीं है. वैसे भी जब बाबूलाल मरांडी ने भाजपा छोड़ी थी तब प्रदीप यादव अर्जुन मुंडा मंत्रिमंडल में थे. वे कार्यकाल खत्म होने के बाद बाबूलाल के साथ आए थे.