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नेटबॉल चैंपियनशिप से मंत्रियों ने क्यों बनाई दूरी, खिलाड़ियों की मदद के लिए सरकारें कब आएंगी आगे? तलाशे जा रहे इन सवालों के जवाब - godda netball player

Netball championship in Godda. गोड्डा में आयोजित नेटबॉल चैंपियनशिप का समापन तो हो गया, लेकिन कई सवाल भी छोड़ गया. सरकार के कार्यक्रम से सरकार के ही मंत्रियों ने दूरी बना ली, खिलाड़ियों को प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए खुद से खर्च करना पड़ा. इन सवालों को इस प्रतियोगिता के समापन तक जरूर हवा मिली है. जिसके जवाब अब तलाशे जा रहे हैं,

Netball championship in Godda
Netball championship in Godda
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 28, 2023, 10:21 PM IST

सरकारी मदद के बारे में खिलाड़ियों का बयान

गोड्डा: जिले में आयोजित सब जूनियर नेटबॉल चैंपियनशिप एवं फास्ट फाइव नेटबॉल चैंपियनशिप सफलतापूर्वक संपन्न हो गयी. आयोजन को लेकर सरकार को हर तरफ से सराहना मिली है. लेकिन इन तालियों के बीच कई ऐसे नजारे भी देखने को मिले जिसने कई सवाल खड़े कर दिए. चाहे राजनीतिक बयानबाजी हो या फिर मंत्रियों का आयोजनों से दूरी बनाना. या फिर ये उन खिलाड़ियों के दर्द की बात हो सकती है जिन्होंने अपने खर्चे पर इस राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया है.

दरअसल, गोड्डा में राष्ट्रीय नेटबॉल प्रतियोगिता के सफल समापन के बाद नेशनल फेडरेशन ऑफ नेटबॉल के विकास समिति के अध्यक्ष हरिओम कौशिक ने भी माना कि आज तक के इतिहास में नेटबॉल का ऐसा कोई आयोजन नहीं हुआ है. ये ऐतिहासिक था. वैसे तो आम तौर पर इस स्तर पर बड़े खेल आयोजन होते हैं, लेकिन ओलंपिक और एशियाई खेलों का हिस्सा नहीं होने के बावजूद झारखंड सरकार ने नेटबॉल के आयोजन के लिए इस खेल के बारे में बहुत सोचा और आयोजन को भव्य बनाया. ये काफी सराहनीय है.

सियासी बयानबाजी: एक तरफ जहां झारखंड सरकार की खूब तारीफ हुई, वहीं दूसरी तरफ सियासी बयानबाजी भी हुई. दरअसल, राज्य सरकार की ओर से आयोजित इस प्रतियोगिता के समापन में जिला प्रशासन के अलावा सरकार का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ. दिलचस्प बात यह है कि निमंत्रण पत्र में दो मंत्रियों हफीजुल अंसारी और आलमगीर आलम के अलावा दो सांसदों और चार विधायकों के नाम का जिक्र था. इसके बावजूद उनमें से कोई नहीं आया. बाद में खेल मंत्री हफीजुल अंसारी और आयोजन सचिव विधायक दीपिका पांडे सिंह की ओर से जरूरी निजी कारणों का हवाला दिया गया. लेकिन दूसरों ने वो भी नहीं बताया. इससे एक बात तो तय है कि अंदरखाने में राजनीतिक रस्साकशी और श्रेय लेने की होड़ जैसी बातें चलती रहीं और कुछ राजनीतिक बयान भी दिए गए.

पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव के इस आयोजन से दूर रहने पर बीजेपी विधायक अमित मंडल ने एक बयान में कहा कि पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव को सोचना चाहिए कि उनकी ही पार्टी की विधायक दीपिका पांडे सिंह ने उन्हें पूरे खेल आयोजन से क्यों किनारे कर दिया. राज्य सरकार के कार्यक्रम में किसी भी सरकारी प्रतिनिधि की अनुपस्थिति निश्चित तौर पर सवाल खड़े करती है. इससे यह भी संदेश जाता है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों का खेल के प्रति कितना जुड़ाव है.

खिलाड़ियों का दर्द: इस प्रतियोगिता के दौरान खिलाड़ियों का दर्द भी सामने आया. कई राज्यों से आये खिलाड़ियों ने बताया कि उन्हें अपने खर्चे पर इस प्रतियोगिता में भाग लेना पड़ा. उनकी राज्य सरकार या फेडरेशन की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं दी गयी. हालांकि, कई राज्यों के खिलाड़ियों ने कहा कि उनकी सरकार ने उन्हें पूरी मदद दी है. इनमें तमिलनाडु और बिहार के खिलाड़ी शामिल थे. जबकि पंजाब, मणिपुर, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के खिलाड़ियों ने साफ कहा कि उन्हें सरकार से कोई मदद नहीं मिली है.

बड़ी बात यह है कि जो खिलाड़ी खेलने आए हैं उनका खर्च प्रति खिलाड़ी 5 से 10 हजार रुपये के बीच है. ऐसे में यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि एक गरीब मजदूर के घर से निकलकर किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाला खिलाड़ी कैसे खेल का हिस्सा बन पाएगा. झारखंड के बारे में बात करते हुए गोड्डा नेटबॉल एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष नरेंद्र महतो ने कहा कि भले ही गोड्डा मेजबान था. लेकिन इससे पहले जब भी गोड्डा के खिलाड़ी दिल्ली या हरियाणा खेलने जाते थे तो आम लोगों की मदद से वहां पहुंचते थे. सरकार से कोई मदद नहीं मिली. कई पूर्व खिलाड़ियों ने शानदार खेलने के बावजूद सपोर्ट नहीं मिलने के कारण खेल को अलविदा कह दिया.

'खेल नीति में होने चाहिए प्रावधान': झारखंड नेटबॉल एसोसिएशन के सचिव भूपेन्द्र कुमार ने बताया कि गोड्डा में आयोजित होने वाली ऐसी प्रतियोगिताओं में रजिस्ट्रेशन के नाम पर प्रति टीम करीब 5500 रुपये लिये जाते हैं. इस तरह गोड्डा में दो राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हुईं, एक थी 29वीं सबजूनियर और दूसरी थी फास्ट फाइव नेटबॉल प्रतियोगिता. ऐसे में हर राज्य से 2 लड़के और 2 लड़कियों की 4 टीमों ने हिस्सा लिया. इस तरह हर राज्य को 22000 रुपये AFI को देने पड़े. जो खिलाड़ियों से रजिस्ट्रेशन शुल्क के नाम पर लिया जाता है, यह एक अतिरिक्त बोझ है. यह उदाहरण नेटबॉल खेल का है. जबकि देश में ऐसे कई खेल संघ हैं. उन्होंने कहा कि छोटे खेल संघों के लिए राष्ट्रीय खेल नीति में प्रावधान होना चाहिए. नहीं तो इसके नतीजे झारखंड के गोड्डा जैसे ही होंगे, जहां दर्जनों नेटबॉल खिलाड़ी अपने दम पर जूनियर लेवल पर आते हैं, लेकिन सीनियर टीम में शामिल होने से पहले ही रिटायर हो जाते हैं और कहीं मजदूरी करने लगते हैं. इसमें सुधार की जरूरत है.

यह भी पढ़ें: द्वितीय फास्ट फाइव नेटबॉल प्रतियोगिता: कांटे की टक्कर में हरियाणा ने जीता खिताब, दोनों ही वर्गो में झारखंड की टीम रही उपविजेता

यह भी पढ़ें: खिलाड़ी ट्रॉफी पाने के लिए कर रहे थे मंत्री का इंतजार, लेकिन आया सिर्फ एक वीडियो संदेश

यह भी पढ़ें: 29वीं सब जूनियर राष्ट्रीय नेटबॉल चैंपियनशिपः हरियाणा ने जीता खिताब, दोनों वर्गों में मेजबान टीम को हाथ लगी मायूसी

सरकारी मदद के बारे में खिलाड़ियों का बयान

गोड्डा: जिले में आयोजित सब जूनियर नेटबॉल चैंपियनशिप एवं फास्ट फाइव नेटबॉल चैंपियनशिप सफलतापूर्वक संपन्न हो गयी. आयोजन को लेकर सरकार को हर तरफ से सराहना मिली है. लेकिन इन तालियों के बीच कई ऐसे नजारे भी देखने को मिले जिसने कई सवाल खड़े कर दिए. चाहे राजनीतिक बयानबाजी हो या फिर मंत्रियों का आयोजनों से दूरी बनाना. या फिर ये उन खिलाड़ियों के दर्द की बात हो सकती है जिन्होंने अपने खर्चे पर इस राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया है.

दरअसल, गोड्डा में राष्ट्रीय नेटबॉल प्रतियोगिता के सफल समापन के बाद नेशनल फेडरेशन ऑफ नेटबॉल के विकास समिति के अध्यक्ष हरिओम कौशिक ने भी माना कि आज तक के इतिहास में नेटबॉल का ऐसा कोई आयोजन नहीं हुआ है. ये ऐतिहासिक था. वैसे तो आम तौर पर इस स्तर पर बड़े खेल आयोजन होते हैं, लेकिन ओलंपिक और एशियाई खेलों का हिस्सा नहीं होने के बावजूद झारखंड सरकार ने नेटबॉल के आयोजन के लिए इस खेल के बारे में बहुत सोचा और आयोजन को भव्य बनाया. ये काफी सराहनीय है.

सियासी बयानबाजी: एक तरफ जहां झारखंड सरकार की खूब तारीफ हुई, वहीं दूसरी तरफ सियासी बयानबाजी भी हुई. दरअसल, राज्य सरकार की ओर से आयोजित इस प्रतियोगिता के समापन में जिला प्रशासन के अलावा सरकार का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ. दिलचस्प बात यह है कि निमंत्रण पत्र में दो मंत्रियों हफीजुल अंसारी और आलमगीर आलम के अलावा दो सांसदों और चार विधायकों के नाम का जिक्र था. इसके बावजूद उनमें से कोई नहीं आया. बाद में खेल मंत्री हफीजुल अंसारी और आयोजन सचिव विधायक दीपिका पांडे सिंह की ओर से जरूरी निजी कारणों का हवाला दिया गया. लेकिन दूसरों ने वो भी नहीं बताया. इससे एक बात तो तय है कि अंदरखाने में राजनीतिक रस्साकशी और श्रेय लेने की होड़ जैसी बातें चलती रहीं और कुछ राजनीतिक बयान भी दिए गए.

पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव के इस आयोजन से दूर रहने पर बीजेपी विधायक अमित मंडल ने एक बयान में कहा कि पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव को सोचना चाहिए कि उनकी ही पार्टी की विधायक दीपिका पांडे सिंह ने उन्हें पूरे खेल आयोजन से क्यों किनारे कर दिया. राज्य सरकार के कार्यक्रम में किसी भी सरकारी प्रतिनिधि की अनुपस्थिति निश्चित तौर पर सवाल खड़े करती है. इससे यह भी संदेश जाता है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों का खेल के प्रति कितना जुड़ाव है.

खिलाड़ियों का दर्द: इस प्रतियोगिता के दौरान खिलाड़ियों का दर्द भी सामने आया. कई राज्यों से आये खिलाड़ियों ने बताया कि उन्हें अपने खर्चे पर इस प्रतियोगिता में भाग लेना पड़ा. उनकी राज्य सरकार या फेडरेशन की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं दी गयी. हालांकि, कई राज्यों के खिलाड़ियों ने कहा कि उनकी सरकार ने उन्हें पूरी मदद दी है. इनमें तमिलनाडु और बिहार के खिलाड़ी शामिल थे. जबकि पंजाब, मणिपुर, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के खिलाड़ियों ने साफ कहा कि उन्हें सरकार से कोई मदद नहीं मिली है.

बड़ी बात यह है कि जो खिलाड़ी खेलने आए हैं उनका खर्च प्रति खिलाड़ी 5 से 10 हजार रुपये के बीच है. ऐसे में यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि एक गरीब मजदूर के घर से निकलकर किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाला खिलाड़ी कैसे खेल का हिस्सा बन पाएगा. झारखंड के बारे में बात करते हुए गोड्डा नेटबॉल एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष नरेंद्र महतो ने कहा कि भले ही गोड्डा मेजबान था. लेकिन इससे पहले जब भी गोड्डा के खिलाड़ी दिल्ली या हरियाणा खेलने जाते थे तो आम लोगों की मदद से वहां पहुंचते थे. सरकार से कोई मदद नहीं मिली. कई पूर्व खिलाड़ियों ने शानदार खेलने के बावजूद सपोर्ट नहीं मिलने के कारण खेल को अलविदा कह दिया.

'खेल नीति में होने चाहिए प्रावधान': झारखंड नेटबॉल एसोसिएशन के सचिव भूपेन्द्र कुमार ने बताया कि गोड्डा में आयोजित होने वाली ऐसी प्रतियोगिताओं में रजिस्ट्रेशन के नाम पर प्रति टीम करीब 5500 रुपये लिये जाते हैं. इस तरह गोड्डा में दो राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हुईं, एक थी 29वीं सबजूनियर और दूसरी थी फास्ट फाइव नेटबॉल प्रतियोगिता. ऐसे में हर राज्य से 2 लड़के और 2 लड़कियों की 4 टीमों ने हिस्सा लिया. इस तरह हर राज्य को 22000 रुपये AFI को देने पड़े. जो खिलाड़ियों से रजिस्ट्रेशन शुल्क के नाम पर लिया जाता है, यह एक अतिरिक्त बोझ है. यह उदाहरण नेटबॉल खेल का है. जबकि देश में ऐसे कई खेल संघ हैं. उन्होंने कहा कि छोटे खेल संघों के लिए राष्ट्रीय खेल नीति में प्रावधान होना चाहिए. नहीं तो इसके नतीजे झारखंड के गोड्डा जैसे ही होंगे, जहां दर्जनों नेटबॉल खिलाड़ी अपने दम पर जूनियर लेवल पर आते हैं, लेकिन सीनियर टीम में शामिल होने से पहले ही रिटायर हो जाते हैं और कहीं मजदूरी करने लगते हैं. इसमें सुधार की जरूरत है.

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