गिरिडीहः जिस तरह जैन धर्म की आस्था सम्मेद शिखरजी (पारसनाथ) के प्रति है, उसी तरह आदिवासी समाज भी इस पर्वत पर अपनी आस्था रखता है. आदिवासी समाज पारसनाथ को मरांग बुरु कहते हैं. इसी पर्वत पर इनका मरांग बुरु जुग जाहेरथान (jug jaherthan) और मरांग बुरु मांझी थान है. अब आदिवासी समाज ने अपने धार्मिक स्थान का समुचित विकास करने की मांग मुख्यमंत्री से की है. सावंत सुसार बैसी के अध्यक्ष नुनका टुडू के साथ साथ बुधन हेम्ब्रोम, सिकंदर हेम्ब्रोम सहित कई लोगों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखा है, जिसमें मरांग बुरु जुग जाहेरथान और मरांग बुरु मांझी थान को विकसित करने की मांग की है.
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मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि मरांग बुरू यानी पारसनाथ पर्वत में आदिवासी संताल समुदाय के आदिकालीन पूर्वज पिलचु आयो-पिलचु बाबा द्वारा स्थापित एक मात्र धर्मस्थल है, जो मरांग बुरू जुग जाहेरथान और मरांग बुरू मांझी थान के नाम से प्रसिद्ध है. संथाल समाज का पारम्परिक पर्व बाहा (सरहुल) पर्व, लौ-बीर सेंदरा पर्व आदि के अवसर पर आदिवासी संताल धर्मावलंबी और शोधार्थियों का आगमन देश विदेश से होता है.
पत्र में यह भी कहा गया है कि वैसे आदिवासी संताल समुदाय के लोग जहां भी बसते हैं या बसे हैं, वहां धार्मिक परम्परा के अनुसार सर्वप्रथम गांव में एक मांझीथान और गांव के मौजा में एक जाहेरथान स्थापित होना आवश्यक हैं. हमलोगों का उसी आधार पर मांझीथान, जाहेरथान प्रत्येक गांव में रहता है. लेकिन जुग जाहेरथान मात्र एक ही होता है, जो अभी मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) पर स्थित जुग जाहेरथान है. यह एक विश्व प्रसिद्ध जुग जाहेरथान होने के नाते झारखंड के तत्कालीन राज्यपाल और वर्तमान राष्ट्रपति दो बार इस पावन भूमि जाहेरथान में आ चुके हैं.
तत्कालीन राज्यपाल ने जाहेरथान की सुरक्षा-व्यवस्था को सुदृढ़ करने को लेकर जिला प्रशासन को हिदायत दिया था. लेकिन अब तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है. इस धार्मिक स्थल पर बहुत सी कमियां है. इस पर्वत की नैसर्गिक सौंदर्यता, पवित्रता, वन संपदा असुरक्षित हो रहा है, जिसका संरक्षण व संवर्द्धन जरूरी है. पत्र में कहा गया है कि आदिवासी समाज की धार्मिक पहचान को बचाये रखने की बात कही गई है. यह भी कहा है कि हमारे ईष्ट देव मरांग बुरु और भगवान महावीर द्वारा हजारों वर्षों से इस पर्वत की पावन भूमि को पवित्र बनाये रखा है.
मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में कहा गया है कि विश्व पटल पर प्रसिद्ध पारसनाथ पर्वत को कौन अपवित्र कर रहा है. इस पर गंभीरता से सोचने और विचारने की आवश्यकता है, ताकि एक दूसरे की धार्मिक भावनाओं पर ठेस ना पहुंचे. हमलोग स्वभाव से शान्ति प्रिय व्यक्ति हैं. संविधान प्रदत्त नियम कानूनों का सम्मान करते हैं. एक दूसरे के प्रति भाईचारे का संबंध बनाये रखना ही हमारा स्वभाव है. लेकिन हमारी धार्मिक आस्था और भावनाओं पर कोई बेवजह का छेड़छाड़ करेगा तो बर्दाश्त नहीं करेंगे.