गिरिडीहः जैन धर्म के तीर्थ स्थल पारसनाथ पर्वत सम्मेद शिखरजी विवाद (Sammed Shikharji Controversy) थमने का नाम नहीं ले रहा है. इसे पर्यटन क्षेत्र घोषित करने पर जैन समाज का विरोध केंद्र और राज्य सरकार को झेलना पड़ा. इसके बाद केंद्र के फैसले पर अब आदिवासियों ने सवाल खड़े कर दिए है, इसको लेकर उन्होंने सरकार पर उनकी आस्था की अनदेखी करने का आरोप लगाया है.
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गिरिडीह के पारसनाथ क्षेत्र में इको टूरिज्म को लेकर जैन धर्म के विरोध के बाद केंद्रीय मंत्रालय ने उनकी मांग पर सकारात्मक निर्णय लिया और इको टूरिज्म से जुड़ी गतिविधियों पर रोक लगा दी. इसके साथ मांस, मदिरा के अलावा ट्रैकिंग और कैंपिंग पर भी रोक लगा दी है. केंद्र के इस निर्णय का स्वागत जैन समाज ने किया है. लेकिन अब इस मामले में नया मोड़ आ गया है. अब जिला के स्थानीय लोग इस निर्णय को आदिवासी विरोधी बता रहे हैं. इसे लेकर आंदोलन की रूप रेखा तैयार की गई है.
शनिवार को इसी कड़ी में आदिवासी एकता युवा मंच पीरटांड़ द्वारा राज्य के पहले मुख्यमंत्री सह भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी और गिरिडीह सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी का पूतला फूंका है. मंच के कार्यकर्ताओं द्वारा शनिवार देर शाम को पुतला दहन का कार्यक्रम किया गया (burnt effigy of Babulal Marandi in Giridih). जिसमें स्थानीय झामुमो नेता महावीर मुर्मू समेत कई लोग मौजूद रहे. इस दौरान उन्होंने कहा कि राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी और सांसद सीपी चौधरी द्वारा जैनियों के समर्थन में पत्राचार किया गया, जिसके बाद केंद्रीय मंत्रालय ने पूर्व के नोटिफिकेशन में संशोधन किया है. इस दौरान आदिवासियों की आस्था का ख्याल नहीं रखा गया.
आदिवासी एकता युवा मंच की दलील है कि पारसनाथ पर्वत जैन धर्म के साथ साथ आदिवासियों की भी आस्था केंद्र है. मरांग बुरु (पारसनाथ) में आदिवासियों का आदिकालीन मांझी थान और जुग जाहेर थान पूजनीय स्थल के रूप में स्थापित है. एक लंबे अरसे वो यहां वो अपने ईष्ट देव की पूजा करते आ रहे हैं. इस क्षेत्र के आदिवासी मूलवासी पारसनाथ मरांग बुरु के अस्तित्व को लेकर आंदोलित हैं. बता दें कि शुक्रवार को भी मधुबन हटिया मैदान में पुतला दहन कार्यक्रम था लेकिन एसडीपीओ, थाना प्रभारी से वार्ता के बाद कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया.