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तालिबानियों के चंगुल से 26 महीने बाद रिहा हुए प्रसादी महतो, ईटीवी भारत से साझा की आपबीती

बगोदर के प्रसादी महतो 26 महीने बाद अफगानिस्तान से तालिबानी आतंकियों के चंगुल से मुक्त होकर वापस लौटे हैं, जिसके बाद उनके साथ-साथ परिजनों में बेहद खुशी है. रविवार को पूर्व विधायक नागेंद्र महतो ने उनसे मुलाकात कर बातचीत की. प्रवासी मजदूर प्रसादी महतो ने ईटीवी भारत से भी अपनी आपबीती साझा की है.

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अफगानिस्तान से बगोदर लौटे मजदूर
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Published : Aug 30, 2020, 6:21 PM IST

गिरिडीह: जिले में रविवार को अफगानिस्तान से रिहा होकर प्रवासी मजदूर प्रसादी महतो अपने घर घाघरा लौटे हैं, जिसके बाद उनसे कई लोगों ने मुलाकात की. बगोदर के पूर्व विधायक नागेंद्र महतो ने भी उनसे मुलाकात कर कई मामलों की जानकारी ली. उन्होंने उनकी वापसी पर खुशी जाहिर की है और तत्कालीन सीएम रघुवर दास के प्रयासों और केंद्र सरकार के प्रति आभार प्रकट किया है.

देखें पूरी खबर

बीजेपी सरकार में परिजनों को मिला मुआवजा

पूर्व विधायक नागेंद्र महतो ने कहा कि 2 साल पहले जब अफगानिस्तान में झारखंड के चार मजदूरों का अपहरण कर लिया गया था, तब मैंने इस मामले को लेकर तत्कालीन सीएम रघुवर दास से लेकर तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखकर मजदूरों की रिहाई की मांग की थी, आज उसी का परिणाम है कि एक-एक करके झारखंड के सभी मजदूरों की रिहाई और वापसी हो गई है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर का मामला होने के कारण रिहाई और वापसी में थोड़ी देरी जरूर हुई है, खुशी की बात है कि सभी की सकुशल वापसी हो गई है. उन्होंने कहा है कि बीजेपी सरकार में चारों मजदूरों के परिजनों को सीएम राहत कोष से एक-एक लाख रुपए सहयोग राशि भी दिया गया था.

2 साल पहले हुआ था अपहरण

अफगानिस्तान में तालिबानियों ने 2 साल पहले भारतीय मूल के सात प्रवासी मजदूरों का अपहरण कर लिया गया था, जिसमें टाटीझरिया के बेड़म गांव के काली महतो, बगोदर के घाघरा के प्रसादी महतो, प्रकाश महतो और माहुरी के हुलास महतो शामिल थे. इसमें हुलास महतो और प्रसादी महतो की एक दिन पहले ही घर वापसी हुई है, जबकि काली महतो और प्रकाश महतो की पहले ही वापसी हो चुकी है.

इसे भी पढे़ं:- झारखंड : कोरोना संक्रमित युवक ठीक होने के बाद दोबारा पॉजिटिव पाया गया


अफगानिस्तान से रिहा होकर लौटे मजदूर प्रसादी महतो ने ईटीवी भारत से आपबीती साझा करते हुए बताया कि सभी मजदूरों को वहां नजरबंद करके रखा गया था, खाने-पीने में कोई परेशानी नहीं होती थी और ना ही किसी तरह की प्रताड़ना दी जाती थी, सभी मजदूरों को एक ऊंची चहारदीवारी घर के अंदर रहना पड़ता था, जो गांव के बीचो-बीच था. लेकिन चहारदीवारी इतनी ऊंची थी कि आप किसी को ना देख सकते हैं और ना ही कोई आपको देख सकता है. उन्होंने बताया कि रिहाई होने के बाद वहां से थोड़ी दूरी पर तालिबानियों ने हम दोनों को दो सिविल ड्रेस पहने सरकारी अधिकारियों के हवाले कर दिया गया, उसके बाद अधिकारियों ने हमलोगों को इंडिया तक भेजने में सहयोग किया.

गिरिडीह: जिले में रविवार को अफगानिस्तान से रिहा होकर प्रवासी मजदूर प्रसादी महतो अपने घर घाघरा लौटे हैं, जिसके बाद उनसे कई लोगों ने मुलाकात की. बगोदर के पूर्व विधायक नागेंद्र महतो ने भी उनसे मुलाकात कर कई मामलों की जानकारी ली. उन्होंने उनकी वापसी पर खुशी जाहिर की है और तत्कालीन सीएम रघुवर दास के प्रयासों और केंद्र सरकार के प्रति आभार प्रकट किया है.

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बीजेपी सरकार में परिजनों को मिला मुआवजा

पूर्व विधायक नागेंद्र महतो ने कहा कि 2 साल पहले जब अफगानिस्तान में झारखंड के चार मजदूरों का अपहरण कर लिया गया था, तब मैंने इस मामले को लेकर तत्कालीन सीएम रघुवर दास से लेकर तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखकर मजदूरों की रिहाई की मांग की थी, आज उसी का परिणाम है कि एक-एक करके झारखंड के सभी मजदूरों की रिहाई और वापसी हो गई है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर का मामला होने के कारण रिहाई और वापसी में थोड़ी देरी जरूर हुई है, खुशी की बात है कि सभी की सकुशल वापसी हो गई है. उन्होंने कहा है कि बीजेपी सरकार में चारों मजदूरों के परिजनों को सीएम राहत कोष से एक-एक लाख रुपए सहयोग राशि भी दिया गया था.

2 साल पहले हुआ था अपहरण

अफगानिस्तान में तालिबानियों ने 2 साल पहले भारतीय मूल के सात प्रवासी मजदूरों का अपहरण कर लिया गया था, जिसमें टाटीझरिया के बेड़म गांव के काली महतो, बगोदर के घाघरा के प्रसादी महतो, प्रकाश महतो और माहुरी के हुलास महतो शामिल थे. इसमें हुलास महतो और प्रसादी महतो की एक दिन पहले ही घर वापसी हुई है, जबकि काली महतो और प्रकाश महतो की पहले ही वापसी हो चुकी है.

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अफगानिस्तान से रिहा होकर लौटे मजदूर प्रसादी महतो ने ईटीवी भारत से आपबीती साझा करते हुए बताया कि सभी मजदूरों को वहां नजरबंद करके रखा गया था, खाने-पीने में कोई परेशानी नहीं होती थी और ना ही किसी तरह की प्रताड़ना दी जाती थी, सभी मजदूरों को एक ऊंची चहारदीवारी घर के अंदर रहना पड़ता था, जो गांव के बीचो-बीच था. लेकिन चहारदीवारी इतनी ऊंची थी कि आप किसी को ना देख सकते हैं और ना ही कोई आपको देख सकता है. उन्होंने बताया कि रिहाई होने के बाद वहां से थोड़ी दूरी पर तालिबानियों ने हम दोनों को दो सिविल ड्रेस पहने सरकारी अधिकारियों के हवाले कर दिया गया, उसके बाद अधिकारियों ने हमलोगों को इंडिया तक भेजने में सहयोग किया.

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