गिरिडीह: भ्रामक दस्तावेज के सहारे जाति प्रमाण पत्र लेने के आरोपी गिरिडीह मेयर की अग्रिम जमानत याचिका खरिज हो गयी है. ऐसे में उन पर अब गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी है. गिरिडीह के मेयर सुनील कुमार पासवान की अग्रिम जमानत याचिका सोमवार को अदालत ने खारिज कर दी. जिला एवं सत्र न्यायाधीश पंचम अनिल कुमार की अदालत ने वीडियो कॉफ्रेंसिग के जरिए पासवान की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई की.
सुनवाई के बाद अदालत ने पासवान की जमानत याचिका खारिज कर दी. पासवान की जमानत याचिका खारिज होने के साथ ही अदालत द्वारा उनकी गिरफ्तारी पर लगी रोक पर स्वत: समाप्त हो गयी है. ऐसे में पासवान पर अब गिरफ्तारी की तलवार लटक गयी है.
10 मई तक थी गिरफ्तारी पर रोक
अदालत ने अग्रिम जमानत याचिका की अप्रैल माह में हुई पिछली सुनवाई में जहां मामले के अनुसंधानकर्ता से कांड दैनिकी की मांग की थी. वहीं कोविड 19 के मद्देनजर नगर निगम की आवश्यक कार्यों के प्रभावित होने की दलील पर पासवान की गिरफ्तारी पर 10 मई तक रोक लगा दी थी.
पासवान के अधिवक्ता चुन्नूकांत ने सुनवाई के दौरान मजबूती से पक्ष रखा और बहस की. उन्होंने कहा कि पासवान ने किसी तरह की जालसाजी नहीं की है.
उनके द्वारा किसी प्रकार का दस्तावेज स्वत: नहीं बनाया गया है और न ही किसी तरह का तथ्य छुपाया गया है. उनका जाति प्रमाण पत्र सीओ ने बनाया है और बाद में रद्द भी कर दिया गया.
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सुनवाई के दौरान अदालत ने अभियोजन पक्ष व बचाव पक्ष द्वारा किए गए बहस एवं अनुसंधानकर्ता के कांड दैनिकी का अवलोकन करने के बाद अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी.
क्या है मामला
बतातें चलें कि 03 मार्च 2020 को मेयर सुनील पासवान के विरूद्घ गिरिडीह सीओ रविंद्र कुमार सिन्हा द्वारा धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया था. प्राथमिकी में गलत एवं भ्रामक दस्तावेजों पर जाति प्रमाण पत्र बनवाने का आरोप लगाया गया था. प्राथमिकी में सीओ ने कहा था कि आदिवासी कल्याण झारखंड रांची द्वारा जाति छानबीन समिति झारखंड रांची के अनुशंसा एवं कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग झारखण्ड रांची के निर्देशानुसार गिरिडीह के शीतलपुर निवासी सुनील कुमार पासवान पिता परमेश्वर पासवान के नाम से निर्गत जाति प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया गया है.
साथ ही जाति छानबीन कमेटी द्वारा यह पाया गया है कि आवेदक सुनील कुमार पासवान द्वारा गलत एवं भ्रामक दस्तावेजों के आधार पर जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया गया, था जो उनके द्वारा धोखाधड़ी एवं सत्य को छुपाने का प्रयास है जो अपराध की श्रेणी में आता है.
प्राथमिकी में कहा गया है कि बिहार के स्थायी निवासी को झारखंड राज्य में एसी/एसटी का लाभ देय नहीं है. इस संबंध में उच्च न्यायालय झारखंड रांची द्वारा 24 फरवरी 2020 को पारित आदेश में भी इस तथ्य को सम्पुष्ट किया गया है.
इसके अतिरिक्त राज्य निर्वाचन आयोग झारखंड रांची द्वारा उनके यहां संधारित वाद संख्या 04/2020 में दिनांक 17 फरवरी 2020 को भी इस संबंध में आदेश पारित किया गया है.