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भाजपा में शामिल हो सकते हैं गिरिनाथ सिंह, कुछ ऐसा है उनका राजनीतिक सफर - BJP

साल 2000 के विधानसभा चुनाव में झारखंड राज्य आस्तित्व में आया. गिरिनाथ सिंह ने राजद की टिकट पर चुनाव लड़कर झारखंड की पहले विधानसभा का सदस्य बनने का गौरव हासिल किया. इसके बाद वो 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद से विधायक चुने गए. इस चुनाव के बाद शिबू सोरेन की अल्पकालीन सरकार में संसदीय कार्य मंत्री बनाए गए. साल 2009 और 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

गिरिनाथ सिंह (फाइल फोटो)
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Published : Mar 26, 2019, 9:31 AM IST

गढ़वा: झारखंड राजद के कदावर नेता रहे गिरिनाथ सिंह ने गढ़वा विधान सभा क्षेत्र से 17 सालों से लगातार विधायक और दो-दो बार मंत्री रहे हैं. यही कारण है कि उन्हें झारखंड में राजद के प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी आसीन किया गया. लेकिन अब उन्हें राजद से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. ऐसे माना जा रहा है कि गिरिनाथ सिंह अब भाजपा में शामिल हो सकते हैं.

गिरिनाथ सिंह की राजनीति में इंट्री 1993 में उस वक्त हुई, जब उनके विधायक पिता गोपीनाथ सिंह की मृत्यु हो गयी. 1993 के उपचुनाव में जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़े और पहली बार विधायक बने. अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए उन्होंने 1995 के विधानसभा चुनाव में फिर से जनता दल से चुनाव लड़ा. भाजपा प्रत्याशी श्याम नारायण दुबे को हराकर वो दोबारा विधायक बने. 1997 में इन्हें पीएचईडी मंत्री बनाया गया. साल 2000 के विधानसभा चुनाव के पहले ही जनता दल दो भागों में टूटकर राजद और जदयू के रूप में खण्डित हो गया.

साल 2000 के विधानसभा चुनाव में झारखंड राज्य आस्तित्व में आया. गिरिनाथ सिंह ने राजद की टिकट पर चुनाव लड़कर झारखंड की पहले विधानसभा का सदस्य बनने का गौरव हासिल किया. इसके बाद वो 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद से विधायक चुने गए. इस चुनाव के बाद शिबू सोरेन की अल्पकालीन सरकार में संसदीय कार्य मंत्री बनाए गए. साल 2009 और 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

इस दौरान झारखंड और राजद में गुटबाजी हावी हो गई. इस वजह से गिरिनाथ सिंह को झारखंड प्रदेश के राजद अध्यक्ष पद से भी हटना पड़ा. तब से गिरिनाथ सिंह की राजद से दूरी बनने लगी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की चमक और महागठबंधन के बिगड़े समीकरण से गिरिनाथ सिंह सरीखे कदावर नेता को भी विकल्प ढूंढने के लिए विवश होना पड़ा. उनके लिए भाजपा ही सबसे बड़ा विकल्प बन गया है.

गिरिनाथ सिंह ने राजनीतिक ज्ञान जनसंघ की संस्कृति से हासिल किया. गिरिनाथ सिंह के पिता गोपीनाथ सिंह जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे. वो 1962 और 1969 में जनसंघ की टिकट पर जीतकर विधायक बने. साल 1980 में भाजपा के गठन के बाद 1985 और 1990 में भाजपा की टिकट पर विधायक बने. उस वक्त गिरिनाथ सिंह अपने विधायक पिता गोपीनाथ सिंह के सहयोगी के रूप में काम देखते थे.

गढ़वा: झारखंड राजद के कदावर नेता रहे गिरिनाथ सिंह ने गढ़वा विधान सभा क्षेत्र से 17 सालों से लगातार विधायक और दो-दो बार मंत्री रहे हैं. यही कारण है कि उन्हें झारखंड में राजद के प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी आसीन किया गया. लेकिन अब उन्हें राजद से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. ऐसे माना जा रहा है कि गिरिनाथ सिंह अब भाजपा में शामिल हो सकते हैं.

गिरिनाथ सिंह की राजनीति में इंट्री 1993 में उस वक्त हुई, जब उनके विधायक पिता गोपीनाथ सिंह की मृत्यु हो गयी. 1993 के उपचुनाव में जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़े और पहली बार विधायक बने. अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए उन्होंने 1995 के विधानसभा चुनाव में फिर से जनता दल से चुनाव लड़ा. भाजपा प्रत्याशी श्याम नारायण दुबे को हराकर वो दोबारा विधायक बने. 1997 में इन्हें पीएचईडी मंत्री बनाया गया. साल 2000 के विधानसभा चुनाव के पहले ही जनता दल दो भागों में टूटकर राजद और जदयू के रूप में खण्डित हो गया.

साल 2000 के विधानसभा चुनाव में झारखंड राज्य आस्तित्व में आया. गिरिनाथ सिंह ने राजद की टिकट पर चुनाव लड़कर झारखंड की पहले विधानसभा का सदस्य बनने का गौरव हासिल किया. इसके बाद वो 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद से विधायक चुने गए. इस चुनाव के बाद शिबू सोरेन की अल्पकालीन सरकार में संसदीय कार्य मंत्री बनाए गए. साल 2009 और 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

इस दौरान झारखंड और राजद में गुटबाजी हावी हो गई. इस वजह से गिरिनाथ सिंह को झारखंड प्रदेश के राजद अध्यक्ष पद से भी हटना पड़ा. तब से गिरिनाथ सिंह की राजद से दूरी बनने लगी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की चमक और महागठबंधन के बिगड़े समीकरण से गिरिनाथ सिंह सरीखे कदावर नेता को भी विकल्प ढूंढने के लिए विवश होना पड़ा. उनके लिए भाजपा ही सबसे बड़ा विकल्प बन गया है.

गिरिनाथ सिंह ने राजनीतिक ज्ञान जनसंघ की संस्कृति से हासिल किया. गिरिनाथ सिंह के पिता गोपीनाथ सिंह जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे. वो 1962 और 1969 में जनसंघ की टिकट पर जीतकर विधायक बने. साल 1980 में भाजपा के गठन के बाद 1985 और 1990 में भाजपा की टिकट पर विधायक बने. उस वक्त गिरिनाथ सिंह अपने विधायक पिता गोपीनाथ सिंह के सहयोगी के रूप में काम देखते थे.

Intro:गढ़वा। झारखंड राजद के कदावर नेता रहे गिरिनाथ सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। गढ़वा विधान सभा क्षेत्र से 17 वर्षों तक लगातार विधायक और दो-दो बार मंत्री बनकर राजनीति के क्षेत्र में न सिर्फ इतिहास रचा है, बल्कि अपने आप को एक राजनीतिक संस्थान के रूप में भी स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है। यही कारण है कि उन्हें झारखण्ड में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जैसे सर्वोच्च पद पर भी आसीन किया गया था। अब उन्हें उसी राजद से निकाल बाहर किया गया है। इस परिस्थिति में गिरिनाथ सिंह अब अपनी राजनीतिक निखार को बनाये रखने और उसे और प्रभावशाली बनाने के लिए भाजपा की ओर अग्रसर होते बताए जा रहे हैं।


Body:दो बार जनता दल और दो बार राजद से चुने गए थे विधायक

गिरिनाथ सिंह की राजनीति में इंट्री 1993 में उस वक्त हुई जब उनके विधायक पिता गोपीनाथ सिंह की मृत्यु हो गयी थी। 1993 के उपचुनाव में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और पहली बार विधायक बने। अपने पिता के नक्शे कदमों पर चलते हुए उन्होंने 1995 के विधान सभा चुनाव में फिर से जनता दल से चुनाव लड़ा। भाजपा प्रत्याशी श्याम नारायण दुबे को पतखनिया देकर विधायक बन गए। 1997 में इन्हें पीएचईडी मंत्री बनाया गया। वर्ष 2000 के विधान सभा चुनाव के पूर्व ही जनता दल दो भागों में टूटकर राजद और जदयू के रूप में विखण्डित हो गया। गिरिनाथ सिंह ने राजद की स्थापना में बड़ी भूमिका निभाई थी। वर्ष 2000 की विधान सभा चुनाव के वक्त झारखण्ड राज्य अस्तित्व में आ गया था। गिरिनाथ सिंह राजद के टिकट पर चुनाव लड़कर झारखण्ड के प्रथम विधान सभा का मेम्बर बनने का गौरव हासिल किया। इसी तरह उन्होंने 2005 में विधान सभा चुनाव में राजद से विधायक चुने गए। इस चुनाव के बाद शिबू सोरेन की अल्प काल की सरकार में संसदीय कार्य मंत्री बनाये गए थे। इसके बाद 2009 और 2014 के विधान सभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस दौरान झारखण्ड राजद में गुटबाजी हावी हो गयी थी। इस कारण गिरिनाथ सिंह को झारखण्ड प्रदेश राजद अध्यक्ष के पद से भी हटना पड़ा था। तभी से गिरिनाथ सिंह की राजद से दूरी बनने लगी थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की चमक और महागठबंधन के बिगड़े समीकरण से गिरिनाथ सिंह सरीखे कदावर नेता को भी विकल्प ढूंढने के लिए विवश होना पड़ा और भाजपा सबसे बड़ा विकल्प बन गया।



Conclusion:जनसंघ की संस्कृति से सीखा था राजनीति का गुर

गिरिनाथ सिंह ने राजनीतिक ज्ञान जनसंघ की संस्कृति से प्राप्त की थी। गिरिनाथ सिंह के पिता गोपीनाथ सिंह जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे 1962 और 1969 में जनसंघ के टिकट पर जीतकर विधायक बने थे।1980 में भाजपा के गठन के बाद 1985 और 1990 में भाजपा के टिकट पर विधायक बने थे। उस वक्त गिरिनाथ सिंह अपने विधायक पिता गोपीनाथ सिंह के सहयोगी के रूप में काम देखते थे और राजनीति का ज्ञान प्राप्त करते थे। उसी ज्ञान पर सवार होकर गिरिनाथ बाबू लगातार 17 वर्षों तक विधायक चुने जाते रहे और दो बार मंत्री का भी पद मिला।
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