जमशेदपुरः घर के आंगन में लकड़ी जलाई जा रही है. आंगन में महिलाएं अपने बच्चों को गोद में लिए उस लौ को एकटक निहार रही हैं. इस आग में तांबे की सींक को गर्म किया जा रहा है. पुरोहित को एक कटोरी में सरसो तेल दिया जाता है. भीड़ में से वो एक महिला को आगे बुलाता है, उससे कुछ बातचीत करता है. उससे बात करने के बाद वो अपनी उंगलियों पर सरसो तेल लेकर कुछ बुदबुदाता है और अलग अलग उंगलियों से जमीन पर उसी तेल से निशाना बनाता है. उसके बाद बच्चे को चारपाई पर लिटाकर उसकी नाभि के आसपास गर्म सींक से दागा जाता है. इस पुरानी परंपरा का नाम है चिड़ी दाग. आप जानिए, क्या है आदि परंपरा.
लोहा या तांबे की गर्म सींक और चीख बेहिसाब, असहनीय पीड़ा. ये सब कुछ किया जाता है एक आदि परंपरा का निर्वहन करने के लिए और उसमें लोगों का विश्वास है इसके लिए. बड़ों और छोटे बच्चों को तांबे की गर्म सींक से दाग देने की ये परंपरा मकर संक्रांति के दूसरे दिन निभाया जाता है. पूर्वी सिंहभूम जिला के बोदरा टोला में इसमें शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं अपने बच्चों के साथ आती हैं और बड़े अपने कष्टों के निवारण के लिए पहुंचते हैं.
21वीं सदी के भारत में जहां हम डिजिटल इंडिया के बात कर रहे हैं, वही आज भी झारखंड में कुछ ऐसी पुरानी परंपरा है जिसमें दर्द और चीख सुनाई देती है. इस परंपरा को आदिवासी समाज वर्षों से निभाता चला रहा है. जल जंगल जमीन पर अपनी आस्था रखने वाला आदिवासी समाज सदियों पुरानी परंपरा आज भी कर रहा है. इस परंपरा में कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं, जिसे देखकर आप भी चौंक जाएंगे. वर्ष के पहले महीने में मकर संक्रांति के दूसरे दिन को आदिवासी समाज अखंड जात्रा कहते हैं. अखंड जात्रा के अहले सुबह गांव में अलग-अलग कस्बे में महिलाएं अपने बच्चे को लेकर पुरोहित के घर में आती हैं. जहां पुरोहित जमीन पर बैठकर तांबे की सींक को लकड़ी की आग में तपाते हैं.
पेट की बीमारी से मिलती है मुक्ति! महिलाएं अपने बच्चे को पुरोहित के हवाले करती हैं, जहां पुरोहित महिलाओं से उनके गांव का पता पूछकर अपने देवी-देवताओं को याद कर प्रणाम करते हैं और फिर बच्चे के पेट के नाभि के चारों तरफ चार बार सरसो का तेल लगाकर गर्म सींक से नाभि के चारों तरफ चार बार दागा जाता है. इस दौरान बच्चे चीखते चिल्लाते हैं, रोते हैं लेकिन मां को इस बात की खुशी रहती है कि इस परंपरा को निभाने से उनके बच्चे को पेट से संबंधित सभी बीमारी से मुक्ति मिलेगी. इस परंपरा को गांव की बुजुर्ग महिलाएं और पुरोहित निभाते हैं. उनका कहना है कि मकर पर्व में कई तरह के व्यंजन खाने के बाद पेट दर्द या जो भी शिकायत होती हैं वह सब ठीक हो जाता है. इसमें 21 दिन के बच्चे से लेकर बड़े को भी चिड़ी दाग दिया जाता है.
क्या है चिड़ी दागः आदिवासी समाज में मकर संक्रांति के दूसरे दिन को अखंड जात्रा कहा जाता है. वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार इसमें कई तरह के व्यंजन खाया जाता है. इसके बाद पेट दर्द ना हो इसके चिड़ी दाग दिया जाता है. अखंड जात्रा के दिन सूरज उगने से पहले गांव का पुरोहित अपने घर के आंगन में अपने ग्राम देवता की पूजा करते हैं. लकड़ी और गोइठा की आग में तांबा या लोहे की पतली सीक को गर्म करते हैं, यहां सरसो का तेल भी रहता है. ग्रामीण अपने बच्चे को लेकर पुरोहित के पास आते हैं, पुरोहित उनका नाम गांव का नाम पता पूछकर ध्यान लगाकर पूजा करता है और सरसो के तेल से जमीन पर दाग देता है. फिर बच्चे के पेट की नाभि के चारों तरफ तेल लगाकर गर्म तांबा या लोहे की सींक से नाभि के चारों तरफ चार बार दागता है. बच्चे को दागने के बाद पुरोहित उसके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देता है.
कितने उम्र से कब तक दिया जाता है चिड़ी दागः इस पुरानी प्रथा के अनुसार नवजात 21 दिन के बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग को भी चिड़ी दाग दिया जाता है. इसको लेकर पुरोहित बताते हैं कि उनके दादा, परदारा चिड़ी दाग की परंपरा निभाते आ रहे हैं. इसको लेकर मान्यता है कि चिड़ी दाग से पेट का जो नस बढ़ जाता है, वो ठीक हो जाता है. चिड़ी दाग से पेट दर्द नहीं होता है. इसके अलावा पैर, कमर दर्द के लिए भी चिड़ी दाग दिया जाता है. पुरोहित का मानना है कि इस तरह की बीमारी में दवा से अंदर का इलाज होता है लेकिन चिड़ी दाग से ऊपर से नस का इलाज हो जाता है.
हालांकि समय के साथ-साथ बदलाव भी देखा जा रहा है. पहले की अपेक्षा अब कम संख्या में बच्चे चिड़ी दाग के लिए आते हैं. वहीं ग्रामीण महिलाएं बताती हैं कि उन्हें अपनी इस परंपरा पर पूरा विश्वास है, ऐसा करने से उनके बच्चे का स्वस्थ रहता है और पेट से संबंधित कोई बीमारी नहीं होती. लेकिन चिड़ी दाग के लिए कोई जोर जबरदस्ती भी नहीं है, वो अपनी स्वेच्छा से आती हैं. बहरहाल राज्य के स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिला में इस तरह की तस्वीरें इस बात को दर्शाती हैं कि आज भी झारखंड में ग्रामीण कितने जागरूक हैं और चिकित्सा व्यवस्था पर उन्हें कितना भरोसा है.