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झारखंड में सोहराय की गोट पूजा की अनोखी परंपरा, जानें किसान क्यों तुड़वाते हैं अंडे

झारखंड में अनोखी परंपरा(Unique Jharkhandi Traditions) की लंबी लिस्ट है. इन्हीं में से एक सोहराय की गोट पूजा सदियों से चली आ रही है. इसको जमशेदपुर में आदिवासी जोश-ओ खरोश के साथ निभाते हैं. शुक्रवार को जमशेदपुर के करनडीह में गोट पूजा (Sohrai Got Puja)की गई.

Unique Jharkhandi Traditions What is Sohrai Got Puja
सोहराय की गोट पूजा में पशुओं से क्यों तुड़वाते हैं अंडा, समझें आदिवासी परंपरा
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Published : Nov 5, 2021, 10:03 PM IST

Updated : Nov 6, 2021, 8:16 PM IST

जमशेदपुरः अपनी अनोखी परंपरा और आदिवासी संस्कृति के लिए झारखंड की देश में अलग पहचान हैं. यह आदिवासी समाज अपनी परंपराओं के लिए सजग भी है. इसलिए प्रकृति से करीबी और उसकी पूजा कर जीवन के लिए उसका धन्यवाद देने का कोई मौका नहीं छोड़ता. इन्हीं परंपराओं में से एक है सोहराय की गोट पूजा(Sohrai Got Puja), जिसे आदिवासी अनोखे अंदाज में मनाते हैं.

ये भी पढ़ें-महिषासुर के वध पर संथाल के आदिवासी समाज ने जताया दुख, मां दुर्गा से पूछा- बताओ...बताओ... मेरा इष्ट कहां है

जमशेदपुर शहर के आस-पास ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी संथाल समाज की ओर से साल के अंत मे कार्तिक मास में सोहराय फेस्टिवल को लेकर विशेष तैयारी की जाती है. घरों को मिट्टी से बने आकर्षक रंगों से सजाया संवारा जाता है और इस दौरान पशुओं के साथ कई तरह के आयोजन भी किए जाते हैं, जिसमे ग्रामीण बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.

देखें पूरी खबर
Unique Jharkhandi Traditions What is Sohrai Got Puja
सोहराय की गोट पूजा में पशुओं से क्यों तुड़वाते हैं अंडा, समझें आदिवासी परंपरा

आदिवासी समाज की रवायत

सोहराय फेस्टिवल की पूर्वी सिंहभूम में बहुत पुरानी परंपरा है. साल भर खेती में पशुओं के काम करने के बाद सोहराय के मौके पर पशुओं की थकान दूर करने के लिए सोहराय (Sohrai Got Puja)में आराम दिया जाता है. इसी परंपरा को अनोखे अंदाज में मनाने की रवायत यहां के आदिवासी समाज में है.

Unique Jharkhandi Traditions
गोट पूजा में बछड़े की पूजा
Unique Jharkhandi Traditions
नायके करते हैं प्रणाम

यह है सोहराय पूजा

संथाल समाज द्वारा सोहराय के दौरान एक विशेष पूजा भी की जाती है, जिसे गोट पूजा कहते हैं. इसमें मारंग बुरु, जाहेर आयो और अन्य आराध्य की पूजा की जाती है. एक अंडे की पूजा की जाती है. पूजा के बाद किसानों के पशु को अंडे के पास छोड़ा जाता है, इस दौरान जिस पशु के पैर से अंडा टूट जाता है या छू जाता है उस पशु को शुभ मानते हैं. इस पूजा के जरिये हम अच्छी फसल की कामना करते हैं. मुर्गा की बलि चढ़ाते हैं जिसे खिचड़ी में प्रसाद के रूप में खाया जाता है.

Unique Jharkhandi Traditions What is Sohrai Got Puja
सोहराय की गोट पूजा में पशुओं से क्यों तुड़वाते हैं अंडा, समझें आदिवासी परंपरा

नायके लक्ष्मण सोरेन बताते हैं कि यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. इस परंपरा के अनुसार ग्रामीण अपने गांव के पंडित जिसे नायके कहा जाता है, उनको आवभगत के साथ गांव के एक मैदान में लेकर आते हैं, जहां गांव के ग्राम प्रधान, किसान और अन्य ग्रामीण मौजूद रहते हैं. यहीं नायके द्वारा मैदान में विशेष पूजा की जाती है. इस पूजा जिसे गोट पूजा में गांव में रहने वाले पशु मालिकों द्वारा एक-एक मुर्गा पूजा के लिए चढ़ाया जाता है. गांव के नायके यानी पंडित पूजा कर उसकी बलि देते हैं. पूजा वाले स्थान पर एक अंडा भी रखा रहता है.

Unique Jharkhandi Traditions What is Sohrai Got Puja
सोहराय की गोट पूजा में पशुओं से क्यों तुड़वाते हैं अंडा, समझें आदिवासी परंपरा

करनडीह में गोट पूजा

सोहराय में गोट पूजा का आयोजन अलग-अलग क्षेत्र में स्थित बड़े मैदान में किया जाता है. जमशेदपुर के करनडीह कॉलेज मैदान में शुक्रवार को गोट पूजा हुई. इस दौरान ग्रामीण अपनी भाषा में सोहराय के गीत गाकर खुशी मनाते दिखे. वहीं मैदान में अलग-अलग खेमों में ग्रामीणों की ओर से खिचड़ी बनाया गया, जिसमें जिस मुर्गे की बलि दी जाती है उसे भी मिलाया गया. आदिवासियों की पुरानी परंपरा के अनुसार लकड़ी के चूल्हे पर खिचड़ी पकाई गई. ग्रामीणों ने इस दौरान हड़िया का सेवन भी किया.

Unique Jharkhandi Traditions
बछड़े को किया जाता है तिलक

ये भी पढ़ें-जानिए, सोहराय की गोट पूजा में अंडे को तोड़ना क्यों मानते हैं शुभ

यह है अंडा टूटने का मतलब

गांव के ग्राम प्रधान सालखो सोरेन ने बताया कि यह परंपरा उनके पूर्वजों के समय से चली आ रही है. इसमें पूजा के अंडे को मवेशी पैर से तोड़ते हैं तो उसे शुभ मानते हैं. सालखो सोरेन ने बताया कि पहले सभी के घर मे मवेशी हुआ करते थे लेकिन वर्तमान में समय के साथ बदलाव आया है. अब गांव के बच्चे स्कूल जाते हैं, कोई नौकर नहीं मिलता है जो मवेशी की देखभाल कर सके.

Unique Jharkhandi Traditions
गोट पूजा में बछड़े की पूजा

इसके कारण किसान अब ट्रैक्टर से खेती करते हैं. अब गांव में मवेशी कम देखने को मिल रहे हैं, जिसके कारण जिस अंडे की पूजा की जाती है उसे मैदान में ही खुला छोड़ देते हैं. लेकिन अपनी संस्कृति को निभाना जरूरी है जिसे निभाया जा रहा है.

गांव की खुशहाली की कामना

प्रधान सालखो के मुताबिक अब कम संख्या में पशु इस आयोजन में शामिल होते हैं. लेकिन इस पूजा में जो विधि विधान है उसे पूरा करते हैं. हमारा भरोसा है कि इस पूजा के करने से फसल अच्छी होगी और गांव खुशहाल होगा.

गीत से होती है आयोजन की शुरुआत

किसान रघुनाथ हांसदा का कहना है कि गोट पूजा के दिन एक अलग अंदाज में ग्रामीण फगुआ की तर्ज पर गीत गाते हैं. यह मान्यता है कि इस गीत को सिर्फ गोट पूजा के दिन ही गाया जाता है. इस गीत को इस दिन गाकर ही आयोजन की शुरुआत किया जाता है.

ये भी पढ़ें-मिट्टी के रंगों का अनोखा संसारः कहीं रेलगाड़ी... तो कहीं हल-बैल की अनूठी चित्रकारी

पशुओं को घुमाया जाता है अंडे के चारों ओर

रघुनाथ के मुताबिक सुबह से शुरू होने वाली गोट पूजा में सिर्फ गांव के पुरुष ही शामिल होते हैं. शाम के वक्त गोधूलि बेला में जब सभी ग्रामीण प्रसाद ग्रहण कर लेते हैं, तब पशुओं को मैदान में लाया जाता है और जिस अंडे का पूजा किया जाता है उसके चारों तरफ घुमाया जाता है. इस दौरान जिस पशु के पैर से अंडा टूट जाता है उसे नायके तेल लगाते हैं, पशु को टीका लगाते हैं उसे प्रणाम कर मंगलकामना कर आशीर्वाद लेते हैं.

ग्रामीण ताराचंद बेसरा का कहना है कि अंडा टूटने से शुभ होता है. इसलिए ग्रामीणों में खुशी देखने को मिलती है. अंडा टूटने के बाद हमें संकेत मिलता है कि आने वाला दिन खुशहाली लाएगा. इस तरह के आयोजन के जरिये कृषि को बढ़ावा मिलता है.

जमशेदपुरः अपनी अनोखी परंपरा और आदिवासी संस्कृति के लिए झारखंड की देश में अलग पहचान हैं. यह आदिवासी समाज अपनी परंपराओं के लिए सजग भी है. इसलिए प्रकृति से करीबी और उसकी पूजा कर जीवन के लिए उसका धन्यवाद देने का कोई मौका नहीं छोड़ता. इन्हीं परंपराओं में से एक है सोहराय की गोट पूजा(Sohrai Got Puja), जिसे आदिवासी अनोखे अंदाज में मनाते हैं.

ये भी पढ़ें-महिषासुर के वध पर संथाल के आदिवासी समाज ने जताया दुख, मां दुर्गा से पूछा- बताओ...बताओ... मेरा इष्ट कहां है

जमशेदपुर शहर के आस-पास ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी संथाल समाज की ओर से साल के अंत मे कार्तिक मास में सोहराय फेस्टिवल को लेकर विशेष तैयारी की जाती है. घरों को मिट्टी से बने आकर्षक रंगों से सजाया संवारा जाता है और इस दौरान पशुओं के साथ कई तरह के आयोजन भी किए जाते हैं, जिसमे ग्रामीण बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.

देखें पूरी खबर
Unique Jharkhandi Traditions What is Sohrai Got Puja
सोहराय की गोट पूजा में पशुओं से क्यों तुड़वाते हैं अंडा, समझें आदिवासी परंपरा

आदिवासी समाज की रवायत

सोहराय फेस्टिवल की पूर्वी सिंहभूम में बहुत पुरानी परंपरा है. साल भर खेती में पशुओं के काम करने के बाद सोहराय के मौके पर पशुओं की थकान दूर करने के लिए सोहराय (Sohrai Got Puja)में आराम दिया जाता है. इसी परंपरा को अनोखे अंदाज में मनाने की रवायत यहां के आदिवासी समाज में है.

Unique Jharkhandi Traditions
गोट पूजा में बछड़े की पूजा
Unique Jharkhandi Traditions
नायके करते हैं प्रणाम

यह है सोहराय पूजा

संथाल समाज द्वारा सोहराय के दौरान एक विशेष पूजा भी की जाती है, जिसे गोट पूजा कहते हैं. इसमें मारंग बुरु, जाहेर आयो और अन्य आराध्य की पूजा की जाती है. एक अंडे की पूजा की जाती है. पूजा के बाद किसानों के पशु को अंडे के पास छोड़ा जाता है, इस दौरान जिस पशु के पैर से अंडा टूट जाता है या छू जाता है उस पशु को शुभ मानते हैं. इस पूजा के जरिये हम अच्छी फसल की कामना करते हैं. मुर्गा की बलि चढ़ाते हैं जिसे खिचड़ी में प्रसाद के रूप में खाया जाता है.

Unique Jharkhandi Traditions What is Sohrai Got Puja
सोहराय की गोट पूजा में पशुओं से क्यों तुड़वाते हैं अंडा, समझें आदिवासी परंपरा

नायके लक्ष्मण सोरेन बताते हैं कि यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. इस परंपरा के अनुसार ग्रामीण अपने गांव के पंडित जिसे नायके कहा जाता है, उनको आवभगत के साथ गांव के एक मैदान में लेकर आते हैं, जहां गांव के ग्राम प्रधान, किसान और अन्य ग्रामीण मौजूद रहते हैं. यहीं नायके द्वारा मैदान में विशेष पूजा की जाती है. इस पूजा जिसे गोट पूजा में गांव में रहने वाले पशु मालिकों द्वारा एक-एक मुर्गा पूजा के लिए चढ़ाया जाता है. गांव के नायके यानी पंडित पूजा कर उसकी बलि देते हैं. पूजा वाले स्थान पर एक अंडा भी रखा रहता है.

Unique Jharkhandi Traditions What is Sohrai Got Puja
सोहराय की गोट पूजा में पशुओं से क्यों तुड़वाते हैं अंडा, समझें आदिवासी परंपरा

करनडीह में गोट पूजा

सोहराय में गोट पूजा का आयोजन अलग-अलग क्षेत्र में स्थित बड़े मैदान में किया जाता है. जमशेदपुर के करनडीह कॉलेज मैदान में शुक्रवार को गोट पूजा हुई. इस दौरान ग्रामीण अपनी भाषा में सोहराय के गीत गाकर खुशी मनाते दिखे. वहीं मैदान में अलग-अलग खेमों में ग्रामीणों की ओर से खिचड़ी बनाया गया, जिसमें जिस मुर्गे की बलि दी जाती है उसे भी मिलाया गया. आदिवासियों की पुरानी परंपरा के अनुसार लकड़ी के चूल्हे पर खिचड़ी पकाई गई. ग्रामीणों ने इस दौरान हड़िया का सेवन भी किया.

Unique Jharkhandi Traditions
बछड़े को किया जाता है तिलक

ये भी पढ़ें-जानिए, सोहराय की गोट पूजा में अंडे को तोड़ना क्यों मानते हैं शुभ

यह है अंडा टूटने का मतलब

गांव के ग्राम प्रधान सालखो सोरेन ने बताया कि यह परंपरा उनके पूर्वजों के समय से चली आ रही है. इसमें पूजा के अंडे को मवेशी पैर से तोड़ते हैं तो उसे शुभ मानते हैं. सालखो सोरेन ने बताया कि पहले सभी के घर मे मवेशी हुआ करते थे लेकिन वर्तमान में समय के साथ बदलाव आया है. अब गांव के बच्चे स्कूल जाते हैं, कोई नौकर नहीं मिलता है जो मवेशी की देखभाल कर सके.

Unique Jharkhandi Traditions
गोट पूजा में बछड़े की पूजा

इसके कारण किसान अब ट्रैक्टर से खेती करते हैं. अब गांव में मवेशी कम देखने को मिल रहे हैं, जिसके कारण जिस अंडे की पूजा की जाती है उसे मैदान में ही खुला छोड़ देते हैं. लेकिन अपनी संस्कृति को निभाना जरूरी है जिसे निभाया जा रहा है.

गांव की खुशहाली की कामना

प्रधान सालखो के मुताबिक अब कम संख्या में पशु इस आयोजन में शामिल होते हैं. लेकिन इस पूजा में जो विधि विधान है उसे पूरा करते हैं. हमारा भरोसा है कि इस पूजा के करने से फसल अच्छी होगी और गांव खुशहाल होगा.

गीत से होती है आयोजन की शुरुआत

किसान रघुनाथ हांसदा का कहना है कि गोट पूजा के दिन एक अलग अंदाज में ग्रामीण फगुआ की तर्ज पर गीत गाते हैं. यह मान्यता है कि इस गीत को सिर्फ गोट पूजा के दिन ही गाया जाता है. इस गीत को इस दिन गाकर ही आयोजन की शुरुआत किया जाता है.

ये भी पढ़ें-मिट्टी के रंगों का अनोखा संसारः कहीं रेलगाड़ी... तो कहीं हल-बैल की अनूठी चित्रकारी

पशुओं को घुमाया जाता है अंडे के चारों ओर

रघुनाथ के मुताबिक सुबह से शुरू होने वाली गोट पूजा में सिर्फ गांव के पुरुष ही शामिल होते हैं. शाम के वक्त गोधूलि बेला में जब सभी ग्रामीण प्रसाद ग्रहण कर लेते हैं, तब पशुओं को मैदान में लाया जाता है और जिस अंडे का पूजा किया जाता है उसके चारों तरफ घुमाया जाता है. इस दौरान जिस पशु के पैर से अंडा टूट जाता है उसे नायके तेल लगाते हैं, पशु को टीका लगाते हैं उसे प्रणाम कर मंगलकामना कर आशीर्वाद लेते हैं.

ग्रामीण ताराचंद बेसरा का कहना है कि अंडा टूटने से शुभ होता है. इसलिए ग्रामीणों में खुशी देखने को मिलती है. अंडा टूटने के बाद हमें संकेत मिलता है कि आने वाला दिन खुशहाली लाएगा. इस तरह के आयोजन के जरिये कृषि को बढ़ावा मिलता है.

Last Updated : Nov 6, 2021, 8:16 PM IST
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