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कुड़माली भाषा संस्कृति के वैज्ञानिक अध्ययन में जुटे प्रोफेसर, देश-विदेश से जानकारी लेकर लिखेंगे किताब - वैज्ञानिक अध्ययन में जुटे प्रोफेसर

जमशेदपुर के पटमदा डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर कुड़मालि भाषा संस्कृति का वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं. विलुप्त होती कुड़मालि भाषा संस्कृति के कई पहलुओं का अध्ययन कर वे किताब लिखेंगे. इसके बाद किताब को शिक्षा विभाग को सौपेंगे. इससे देश और विदेश में फैली कुड़मालि भाषा संस्कृति के बारे में पता लगेगा.

कुड़माली भाषा संस्कृति का अध्ययन कर लौटे प्रोफेसर
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Published : Aug 25, 2019, 2:28 PM IST

जमशेदपुरः शहर के पटमदा डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर भुवनेश्वर महतो कुड़माली भाषा संस्कृति का वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं. इसे लेकर वे देश के कई प्रदेशों के अलावा विदेशों में जाकर कुड़माली की अलग- अलग तकनीकी पहलुओं को अपनी किताबों में समाहित करने में लगे हैं.

देखें पूरी खबर

इसी कड़ी में बांग्लादेश से अध्ययन कर 10 दिनों की यात्रा से लौटे भुवनेश्वर महतो ने बताया है कि आधुनिक माहौल में आने वाली पीढ़ी को अलग-अलग जगहों की कुड़माली भाषा संस्कृति से अवगत कराने का प्रयास कर रहे हैं. किसी भी जाति के लिए उनकी भाषा संस्कृति उनकी अपनी पहचान होती है. एक ही भाषा संस्कृति का अलग-अलग प्रदेशों में अंतर देखने को मिलता है. जमशेदपुर के पटमदा डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर भुवनेश्वर महतो अलग-अलग प्रदेशों में जनजातीय भाषा संस्कृति के बदलाव को अपनी पुस्तक में समाहित करने की मुहिम में लगे हुए हैं.

प्रो भुवनेश्वर महतो देश के अलग-अलग प्रदेशों में कुड़माली भाषा संस्कृति के वैज्ञानिक तथ्यों का अध्ययन करने में लगे हुए हैं. अपने अध्ययन की मुहिम में बांग्लादेश की 10 दिनों की यात्रा से वो लौटे. बांग्लादेश के सिराजगंज, ढाका और सिलेट में कुड़माली भाषा संस्कृति का उन्होंने अध्ययन किया है.

अध्ययन का उद्देश्य

प्रोफेसर बताते हैं कि कुड़माली जनजाति की आबादी बढ़ रही है. झारखंड के अलावा कई प्रदेश में इस जनजाति की अलग पहचान है. आज पाठ्यक्रम में कुड़माली को शामिल किया गया है, लेकिन बदलते ग्लोबल युग में, पीढ़ी इससे दूर हो रही है. जो एक चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि देश के कई प्रदेश में कुड़माली जनजातीय के रहन सहन और उनके विचारों को एकत्रित कर एक पुस्तक के जरिए झारखंड पाठ्यक्रम में शामिल करने का सपना है.

ये भी पढ़ें- रांची में पुलिस-क्रिमिनल के बीच जंग, कभी अपराधी हावी तो कभी पुलिस

इससे आने वाली पीढ़ी देश के अलावा विदेशों में कुड़माली के अलग-अलग पहलुओं को एक ही पुस्तक के जरिए समझ सकेगी. प्रोफेसर महतो ने बताया कि बंगाल ओडिशा और असम के कुछ जिलों का अध्ययन अभी बाकी है. प्रोफेसर कुड़माली जनजातीय भाषा संस्कृति के वैज्ञानिक अध्य्यन को शिक्षा विभाग को सौंपेंगे.

जमशेदपुरः शहर के पटमदा डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर भुवनेश्वर महतो कुड़माली भाषा संस्कृति का वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं. इसे लेकर वे देश के कई प्रदेशों के अलावा विदेशों में जाकर कुड़माली की अलग- अलग तकनीकी पहलुओं को अपनी किताबों में समाहित करने में लगे हैं.

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इसी कड़ी में बांग्लादेश से अध्ययन कर 10 दिनों की यात्रा से लौटे भुवनेश्वर महतो ने बताया है कि आधुनिक माहौल में आने वाली पीढ़ी को अलग-अलग जगहों की कुड़माली भाषा संस्कृति से अवगत कराने का प्रयास कर रहे हैं. किसी भी जाति के लिए उनकी भाषा संस्कृति उनकी अपनी पहचान होती है. एक ही भाषा संस्कृति का अलग-अलग प्रदेशों में अंतर देखने को मिलता है. जमशेदपुर के पटमदा डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर भुवनेश्वर महतो अलग-अलग प्रदेशों में जनजातीय भाषा संस्कृति के बदलाव को अपनी पुस्तक में समाहित करने की मुहिम में लगे हुए हैं.

प्रो भुवनेश्वर महतो देश के अलग-अलग प्रदेशों में कुड़माली भाषा संस्कृति के वैज्ञानिक तथ्यों का अध्ययन करने में लगे हुए हैं. अपने अध्ययन की मुहिम में बांग्लादेश की 10 दिनों की यात्रा से वो लौटे. बांग्लादेश के सिराजगंज, ढाका और सिलेट में कुड़माली भाषा संस्कृति का उन्होंने अध्ययन किया है.

अध्ययन का उद्देश्य

प्रोफेसर बताते हैं कि कुड़माली जनजाति की आबादी बढ़ रही है. झारखंड के अलावा कई प्रदेश में इस जनजाति की अलग पहचान है. आज पाठ्यक्रम में कुड़माली को शामिल किया गया है, लेकिन बदलते ग्लोबल युग में, पीढ़ी इससे दूर हो रही है. जो एक चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि देश के कई प्रदेश में कुड़माली जनजातीय के रहन सहन और उनके विचारों को एकत्रित कर एक पुस्तक के जरिए झारखंड पाठ्यक्रम में शामिल करने का सपना है.

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इससे आने वाली पीढ़ी देश के अलावा विदेशों में कुड़माली के अलग-अलग पहलुओं को एक ही पुस्तक के जरिए समझ सकेगी. प्रोफेसर महतो ने बताया कि बंगाल ओडिशा और असम के कुछ जिलों का अध्ययन अभी बाकी है. प्रोफेसर कुड़माली जनजातीय भाषा संस्कृति के वैज्ञानिक अध्य्यन को शिक्षा विभाग को सौंपेंगे.

Intro:जमशेदपुर।

ज़िला के पटमदा डिग्री कालेज के प्रोफेसर भुवनेश्वर महतो कुड़मालि भाषा संस्कृति की वैज्ञानिक अध्ययन के लिए देश के बिभिन्न प्रदेशों के अलावा विदेशों में जाकर कुड़मालि की अलग अलग तकनीकी पहलुओं को अपनी किताबों में समाहित करने के जुटे है।बांग्ला देश से अध्ययन कर दस दिनों की यात्रा से लौटे भुवनेश्वर महतो ने बताया है कि आधुनिक माहौल में आने वाली पीढ़ी को अलग अलग जगहों की कुड़मालि भाषा संस्कृति से अवगत कराने का प्रयास है ।


Body:किसी भी जाति के लिए उनकी भाषा संस्कृति उनकी अपनी पहचान होती है ।एक ही भाषा संस्कृति का अलग अलग प्रदेशों में अंतर देखने को मिलता है । जमशेदपुर के पटमदा डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर भुवनेश्वर महतो अलग अलग प्रदेशों में जनजातीय भाषा संस्कृति के बदलाव को अपनी पुस्तक में समाहित कर के की मुहिम में लगे हुए है ।प्रो भुवनेश्वर महतो देश के अलग अलग प्रदेशों में कुड़मालि भाषा संस्कृति के वैज्ञानिक तथ्यों का अध्ययन करने में लगे हुए है ।और अपनी अध्ययन की मुहिम में बांग्ला देश की दस दिनों की यात्रा से लौटे । बांग्ला देश के सिराजगंज ढाका और सिलेट में कुड़मालि भाषा संस्कृति का अध्ययन किया है ।

उद्देश्य
प्रोफेसर बताते है कि कुड़मालि जनजातीय की आबादी बढ़ रही है ।झारखंड के अलावा कई प्रदेश में इस जनजातीय की अलग अलग पहचान है ।आज पाठ्यक्रम में कुड़मालि को शामिल।किया गया है लेकिन बदलते ग्लोबल युग मे पीढ़ी इससे दूर हो रहे है जो एक चिंता का विषय है ।
अपने देश के बिभिन्न प्रदेश में कुड़मालि जनजातीय के रहन सहन और उनके विचारों को एकत्रित कर एक पुस्तक के माध्यम से झारखंड पाठ्यक्रम में शामिल करने का सपना है ।
जिससे आने वाली पीढ़ी देश के अलावा विदेशों में कुड़मालि के अलग अलग पहलुओं को एक ही पुस्तक के माध्यम से समझ सकेंगे ।प्रोफेसर महतो के बताया है कि बंगाल ओडिसा और असम के कुछ ज़िला में अध्ययन अभी बाकी है ।अपने मुहिम में कुड़मालि जनजातीय भाषा संस्कृति के वैज्ञानिक अध्य्यन को शिक्षा विभाग को सौपेंगे ।
बाईट प्रोफेसर भुवनेश्वर महतो


Conclusion:बहरहाल आने वाली पीढ़ी को कुड़मालि भाषा संस्कृति का सही ज्ञान मिल सके प्रोफेसर भुवनेश्वर महतो का यह प्रयास सराहनीय कदम है।
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