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बीमारियों की जगह यूनिक कोड के नाम से जाना जाएगा मरीज, दूर होगी छुआछूत की समस्या - News of Jamshedpur

जमशेदपुर में अब मरीजों को बीमारियों के नाम से नहीं, बल्कि कोड नंबर के नाम से जाना जाएगा. बिहार और झारखंड राज्यों में इसे सख्ती से लागू करने के लिए पटना में रीजनल कार्यालय बनाई गया है, जहां से दोनों राज्यों के अस्पतालों की मॉनिटरिंग की जाएगी.

यूनिक कोड के नाम से जाना जाएगा मरीज
patients will be known as unique codes
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Published : Feb 7, 2020, 1:59 PM IST

Updated : Feb 7, 2020, 4:42 PM IST

जमशेदपुर: जिले में अब मरीजों को बीमारियों के नाम से नहीं, बल्कि कोड नंबर के नाम से जाना जाएगा. विश्व में इसकी शुरुआत हो चुकी है. भारत में भी अब इसकी शुरुआत की जा रही है.

देखें पूरी खबर

क्या है कोड नंबर
मरीज के बीमारियों के नाम की जगह पर चिकित्सक A- 90, B-20 जैसे अलग-अलग कोड नंबर लिखेंगे A-90 का मतलब डेंगू और B-20 का मतलब एचआईवी होता है. इसी तरह j12 का मतलब वायरस तिकोनिया, k37 का मतलब पथरी और k72 का मतलब यकृत संबंधित बीमारी है. इसी तरह हर बीमारी का अलग-अलग कोड है. पूरे विश्व में बीमारियों के नाम में समानता और पहचान आसान करने के लिए विश्व स्वास्थ संगठन ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन तैयार किया है.

ये भी पढ़ें-सरकारी स्कूल के छात्र फर्राटे से बोलेंगे अंग्रेजी, सोशल मीडिया को हथियार बनाकर शिक्षक गढ़ रहे हैं नई इबारत

अस्पतालों की मॉनिटरिंग
बिहार और झारखंड राज्यों में इसे सख्ती से लागू करने के लिए पटना में रीजनल कार्यालय बनाई गया है. यहां से दोनों राज्यों के अस्पतालों की मोनिटरिंग की जाएगी. मेडिकल कॉलेज जमशेदपुर, रांची, पाटलिपुत्रा मेडिकल कॉलेज धनबाद में अब तक तीन बार यूनिक कोड के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है. मलेरिया, डेंगू चिकनगुनिया और अन्य बीमारियों को अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जानते हैं. इसे एक नाम देने के लिए इनका कोड बनाया गया है. इससे चिकित्सक आसानी से बीमारी पहचान कर उपचार की सलाह अपने तरीके से दे सकेंगे, जिससे रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा.

तेजी से बढ़ रही बीमारियां
आईसीडी 10 के तहत एमजीएम कॉलेज में मेडिकल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट बनाया गया है. यहां से अस्पताल में आने वाले हर मरीज की कोडिंग की जाएगी. इससे पता चलेगा कि किस मौसम में किस रोग के ज्यादा रोगी सामने आ रहे हैं. किस क्षेत्र में किस बीमारी का प्रकोप अधिक है. इस तरह के वर्गीकृत आंकड़ों से छात्राओं शोधकर्ताओं को रिसर्च करने में सुविधा होगी और आसानी से पूरे भारत में कहीं भी कोडिंग करने से किसी भी बीमारियों के मरीजों का पता लगाया जा सकेगा.

ये भी पढ़ें-रांची: पाइपलाइन में लीकेज से बना बीच सड़क फव्वारा, लाखों लीटर पानी बर्बाद

छुआछूत के मामले
अस्पताल में आने वाले समय में मरीजों को उसके बीमारी के नाम से नहीं, बल्कि कोड नंबर लिखेंगे, जिससे बीमारियों की जानकारी ना तो मरीज को होगी और ना ही परिजनों को. इससे अस्पताल में आसपास के मरीज और परिजनों में बीमारी को लेकर छुआछूत के मामले खत्म हो जाएंगे. कोड नंबर मिलने से मरीज और परिजनों में खुशी देखी जा रही है. उनका कहना है कि इसकी शुरुआत जल्द होनी चाहिए.

जमशेदपुर: जिले में अब मरीजों को बीमारियों के नाम से नहीं, बल्कि कोड नंबर के नाम से जाना जाएगा. विश्व में इसकी शुरुआत हो चुकी है. भारत में भी अब इसकी शुरुआत की जा रही है.

देखें पूरी खबर

क्या है कोड नंबर
मरीज के बीमारियों के नाम की जगह पर चिकित्सक A- 90, B-20 जैसे अलग-अलग कोड नंबर लिखेंगे A-90 का मतलब डेंगू और B-20 का मतलब एचआईवी होता है. इसी तरह j12 का मतलब वायरस तिकोनिया, k37 का मतलब पथरी और k72 का मतलब यकृत संबंधित बीमारी है. इसी तरह हर बीमारी का अलग-अलग कोड है. पूरे विश्व में बीमारियों के नाम में समानता और पहचान आसान करने के लिए विश्व स्वास्थ संगठन ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन तैयार किया है.

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अस्पतालों की मॉनिटरिंग
बिहार और झारखंड राज्यों में इसे सख्ती से लागू करने के लिए पटना में रीजनल कार्यालय बनाई गया है. यहां से दोनों राज्यों के अस्पतालों की मोनिटरिंग की जाएगी. मेडिकल कॉलेज जमशेदपुर, रांची, पाटलिपुत्रा मेडिकल कॉलेज धनबाद में अब तक तीन बार यूनिक कोड के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है. मलेरिया, डेंगू चिकनगुनिया और अन्य बीमारियों को अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जानते हैं. इसे एक नाम देने के लिए इनका कोड बनाया गया है. इससे चिकित्सक आसानी से बीमारी पहचान कर उपचार की सलाह अपने तरीके से दे सकेंगे, जिससे रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा.

तेजी से बढ़ रही बीमारियां
आईसीडी 10 के तहत एमजीएम कॉलेज में मेडिकल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट बनाया गया है. यहां से अस्पताल में आने वाले हर मरीज की कोडिंग की जाएगी. इससे पता चलेगा कि किस मौसम में किस रोग के ज्यादा रोगी सामने आ रहे हैं. किस क्षेत्र में किस बीमारी का प्रकोप अधिक है. इस तरह के वर्गीकृत आंकड़ों से छात्राओं शोधकर्ताओं को रिसर्च करने में सुविधा होगी और आसानी से पूरे भारत में कहीं भी कोडिंग करने से किसी भी बीमारियों के मरीजों का पता लगाया जा सकेगा.

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छुआछूत के मामले
अस्पताल में आने वाले समय में मरीजों को उसके बीमारी के नाम से नहीं, बल्कि कोड नंबर लिखेंगे, जिससे बीमारियों की जानकारी ना तो मरीज को होगी और ना ही परिजनों को. इससे अस्पताल में आसपास के मरीज और परिजनों में बीमारी को लेकर छुआछूत के मामले खत्म हो जाएंगे. कोड नंबर मिलने से मरीज और परिजनों में खुशी देखी जा रही है. उनका कहना है कि इसकी शुरुआत जल्द होनी चाहिए.

Intro:एंकर-- मरीजों को बीमारियों के नाम से नहीं बल्कि कोड नंबर के नाम से जाना जाएगा विश्व में इसकी शुरुआत हो चुकी है. भारत में भी अब इसकी शुरुआतकी जा रही है. देखिए एक रिपोर्ट।


Body:वीओ1-- क्या है कोड नंबर मरीज के बीमारियों के नाम की जगह पर चिकित्सकA- 90,B-20 जैसे अलग-अलग कोड नंबर लिखेंगे A-90 का मतलब डेंगू और B-20 का मतलब एचआईवी होता है. इसी तरह j12 मतलब वायरस तिकोनिया k37 का मतलब पथरी और k72 का मतलब यकृत संबंधित बीमारी है. इसी तरह हर बीमारी का अलग-अलग कोड है. दरअसल पूरे विश्व में बीमारियों के नाम में समानता व पहचान आसान करने के लिए विश्व स्वास्थ संगठन इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन तैयार किया है. बिहार और झारखंड राज्यों में इसे सख्ती से लागू करने के लिए पटना में रीजनल कार्यालय बनाई गया है. यहां से दोनों राज्यों के अस्पतालों की मोनिटरिंग की जाएगी. मेडिकल कॉलेज जमशेदपुर ,रांची ,पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज धनबाद में अब तक तीन बार यूनिक कोड के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है।
क्यों की जा रही कोडिंग किसे मिलेगा फायदा-- मलेरिया, डेंगू चिकनगुनिया, व अन्य बीमारियों को अलग अलग देशों में अलग अलग नाम से जाना जाता है. इसे एक नाम देने के लिए इनका कोड बनाया गया है. चिकित्सक आसानी से बीमारी पहचान और इलाज कर उपचार की सलाह अपने तरीके से दे सकेंगे जिससे रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा.
तेजी से बढ़ रही बीमारियां--आईसीडी 10 के तहत एमजीएम कॉलेज में मेडिकल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट बनाया गया है. यहां से अस्पताल में आने वाले हर मरीज की कोडिंग की जाएगी इससे पता चलेगा कि किस मौसम में किस रोग के ज्यादा रोगी सामने आ रहे हैं. किस क्षेत्र में किस बीमारी का प्रकोप अधिक है.इस तरह के वर्गीकृत आंकड़ों से छात्राओं शोधकर्ताओं को रिसर्च करने में सुविधा होगी और आसानी से पूरे भारत में कहीं भी कोडिंग करने से किसी भी बीमारियों के मरीजों का पता लगाया जा सकेगा।
बाइट-- डॉ अरुण कुमार (पूर्व आईएमए अध्यक्ष)
वीओ2-- अस्पताल में आए मरीजों की बीमारी का नाम नहीं बल्कि कोड नंबर लिखेंगे जिससे अस्पताल में दूरदराज से आए अलग-अलग बीमारियों की जानकारी न तो मरीज को और नहीं परिजनों को होगी बस कोड नंबर से डॉक्टर को ही पता होगा कि मरीज को कौन सी बीमारी है. इसे अस्पताल में आसपास के मरीज और परिजनों में बीमारी को लेकर छुआछूत के मामले खत्म हो जाएंगे कोड नंबर मिलने से मरीज और परिजनों में खुशी खुशी देखी जा रही है इन लोगों का कहना है कि इसकी शुरुआत जल्द होनी चाहिए।
बाइट--डॉक्टर संजय कुमार( एमजीएम अधीक्षक)
बाइट--पूजा देवी(परिजन)



Conclusion:बहरहाल इससे रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा और इससे पता चलेगा कि किस मौसम में किस रोग के ज्यादा रोगी सामने आ रहे हैं इससे शोधकर्ताओं को रिसर्च करने में सुविधा होगी और आसानी से पूरे भारत में कहीं भी कोडिंग करने से किसी भी बीमारियों के मरीज का पता लगाया जा सकेगा
Last Updated : Feb 7, 2020, 4:42 PM IST
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