जमशेदपुर: जिले में अब मरीजों को बीमारियों के नाम से नहीं, बल्कि कोड नंबर के नाम से जाना जाएगा. विश्व में इसकी शुरुआत हो चुकी है. भारत में भी अब इसकी शुरुआत की जा रही है.
क्या है कोड नंबर
मरीज के बीमारियों के नाम की जगह पर चिकित्सक A- 90, B-20 जैसे अलग-अलग कोड नंबर लिखेंगे A-90 का मतलब डेंगू और B-20 का मतलब एचआईवी होता है. इसी तरह j12 का मतलब वायरस तिकोनिया, k37 का मतलब पथरी और k72 का मतलब यकृत संबंधित बीमारी है. इसी तरह हर बीमारी का अलग-अलग कोड है. पूरे विश्व में बीमारियों के नाम में समानता और पहचान आसान करने के लिए विश्व स्वास्थ संगठन ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन तैयार किया है.
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अस्पतालों की मॉनिटरिंग
बिहार और झारखंड राज्यों में इसे सख्ती से लागू करने के लिए पटना में रीजनल कार्यालय बनाई गया है. यहां से दोनों राज्यों के अस्पतालों की मोनिटरिंग की जाएगी. मेडिकल कॉलेज जमशेदपुर, रांची, पाटलिपुत्रा मेडिकल कॉलेज धनबाद में अब तक तीन बार यूनिक कोड के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है. मलेरिया, डेंगू चिकनगुनिया और अन्य बीमारियों को अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जानते हैं. इसे एक नाम देने के लिए इनका कोड बनाया गया है. इससे चिकित्सक आसानी से बीमारी पहचान कर उपचार की सलाह अपने तरीके से दे सकेंगे, जिससे रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा.
तेजी से बढ़ रही बीमारियां
आईसीडी 10 के तहत एमजीएम कॉलेज में मेडिकल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट बनाया गया है. यहां से अस्पताल में आने वाले हर मरीज की कोडिंग की जाएगी. इससे पता चलेगा कि किस मौसम में किस रोग के ज्यादा रोगी सामने आ रहे हैं. किस क्षेत्र में किस बीमारी का प्रकोप अधिक है. इस तरह के वर्गीकृत आंकड़ों से छात्राओं शोधकर्ताओं को रिसर्च करने में सुविधा होगी और आसानी से पूरे भारत में कहीं भी कोडिंग करने से किसी भी बीमारियों के मरीजों का पता लगाया जा सकेगा.
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छुआछूत के मामले
अस्पताल में आने वाले समय में मरीजों को उसके बीमारी के नाम से नहीं, बल्कि कोड नंबर लिखेंगे, जिससे बीमारियों की जानकारी ना तो मरीज को होगी और ना ही परिजनों को. इससे अस्पताल में आसपास के मरीज और परिजनों में बीमारी को लेकर छुआछूत के मामले खत्म हो जाएंगे. कोड नंबर मिलने से मरीज और परिजनों में खुशी देखी जा रही है. उनका कहना है कि इसकी शुरुआत जल्द होनी चाहिए.