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बिना सरकारी सुविधा पेड़ के नीचे पढ़ते हैं बच्चे, 'ओलचिकी' में पढ़ाई से 100 फीसदी होती है उपस्थिति

जमशेदपुर में सरकारी विद्यालय से अलग हटकर पेड़ के नीचे बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. मातृभाषा ओलचिकी की पढ़ाई में बच्चें रूची दिखा रहे हैं. सरकारी सुविधाओं को मात देकर जाहेर थान पेड़ को विद्यास्थल बनाया गया है.

पेड़ के नीचे बैठ कर पढ़ते बच्चें
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Published : Jul 12, 2019, 4:18 PM IST

जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम में एक ऐसा विद्यालय संचालित किया जा रहा है, जहां बच्चे जाहेर थान की पेड़ के नीचे पढ़ते हैं. 100 से अधिक बच्चे मातृभाषा ओलचिकी माध्यम में पढ़ाई कर रहे हैं. बच्चों को इन भाषाओं की शिक्षा 4 शिक्षक दे रहे हैं.

देखें पूरी खबर

आसेका संस्था द्वारा खेरवाल विद्याघर का संचालन पिछले साल से हो रहा है. ये विद्यालय एनएच 18 के किनारे केरुकोचा गांव में संचालित है. इस गांव में उत्क्रमित उच्च विद्यालय है. जहां 1-10 की पढ़ाई होती है. ठीक उसके पास संथाली भाषा ओलचिकी माध्यम से पढ़ाई हो रही है. ये बच्चें सरकारी सुविधा से वंचित हैं. इन्हें मध्याह्न भोजन, छात्रवृत्ति, स्कूल ड्रेस, निशुल्क किताबें नहीं मिलती हैं. फिर भी बच्चों की उपस्थिति शत-प्रतिशत है. कहा जाता है कि मातृभाषा की पढ़ाई में बच्चों को उत्साह होता है. यहां मातृभाषा ओलचिकी के साथ-साथ हिन्दी, अंग्रेजी की शिक्षा दी जाती है.

ये भी पढ़ें- CCL ऑफिस में तोड़फोड़ का मामला, ग्रामीणों ने कहा- बेवजह फंसाने की साजिश

यहां सरकारी विद्यालय भी संचालित है. जहां मध्याह्न भोजन योजना, छात्रवृत्ति, ड्रेस, निशुल्क किताबें मिलती है. जिसके बावजूद सरकारी स्कूलों में गरीब आदिवासी बच्चे पढ़ाई में रूचि नहीं लेते. खेरवाल विद्याघर इसका जिता जागता उदाहरण माना जा सकता है. जहां सरकारी विद्यालय छोड़ कर पेड़ के नीचे पढ़ने आ रहे है. 1-5 बजे तक रोजाना पढ़ाई हो रही है. ये विद्यालय सरकारी विद्यालय के समक्ष एक चुनौती है ?

जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम में एक ऐसा विद्यालय संचालित किया जा रहा है, जहां बच्चे जाहेर थान की पेड़ के नीचे पढ़ते हैं. 100 से अधिक बच्चे मातृभाषा ओलचिकी माध्यम में पढ़ाई कर रहे हैं. बच्चों को इन भाषाओं की शिक्षा 4 शिक्षक दे रहे हैं.

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आसेका संस्था द्वारा खेरवाल विद्याघर का संचालन पिछले साल से हो रहा है. ये विद्यालय एनएच 18 के किनारे केरुकोचा गांव में संचालित है. इस गांव में उत्क्रमित उच्च विद्यालय है. जहां 1-10 की पढ़ाई होती है. ठीक उसके पास संथाली भाषा ओलचिकी माध्यम से पढ़ाई हो रही है. ये बच्चें सरकारी सुविधा से वंचित हैं. इन्हें मध्याह्न भोजन, छात्रवृत्ति, स्कूल ड्रेस, निशुल्क किताबें नहीं मिलती हैं. फिर भी बच्चों की उपस्थिति शत-प्रतिशत है. कहा जाता है कि मातृभाषा की पढ़ाई में बच्चों को उत्साह होता है. यहां मातृभाषा ओलचिकी के साथ-साथ हिन्दी, अंग्रेजी की शिक्षा दी जाती है.

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यहां सरकारी विद्यालय भी संचालित है. जहां मध्याह्न भोजन योजना, छात्रवृत्ति, ड्रेस, निशुल्क किताबें मिलती है. जिसके बावजूद सरकारी स्कूलों में गरीब आदिवासी बच्चे पढ़ाई में रूचि नहीं लेते. खेरवाल विद्याघर इसका जिता जागता उदाहरण माना जा सकता है. जहां सरकारी विद्यालय छोड़ कर पेड़ के नीचे पढ़ने आ रहे है. 1-5 बजे तक रोजाना पढ़ाई हो रही है. ये विद्यालय सरकारी विद्यालय के समक्ष एक चुनौती है ?

Intro:जमशेदपुर : सरकारी विद्यालय से अलग हटकर पेड़ के नीचे पढ़ते बच्चे, मातृभाषा की पढ़ाई में बच्चे दिखा रहे रूची, सरकारी सुविधाओं को मात देकर जाहेर थान को बनाया विद्या स्थल ।
Body:जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम में एक ऐसी विद्यालय संचालित है, जहां बच्चे जाहेर थान की पेड़ के नीचे पढ़ते हैं । 100 से अधिक बच्चे मातृभाषा ओलचिकी माध्यम से कर रहे पढ़ाई । चार शिक्षक अध्ययन करते है ।
आसेका संस्था द्वारा खेरवाल विद्याघर के नाम से पिछले साल से संचालन हो रहे हैं । यह विद्यालय एनएच 18 के किनारे केरुकोचा गांव में संचालित है । इस गांव में उत्क्रमित उच्च विद्यालय है । जहां 1-10 की पढ़ाई होती है । ठीक उसके पास संथाली भाषा ओलचिकी माध्यम से पढ़ाई हो रही है । इन बच्चों को सरकारी सुविधा से बंचित है । मध्याह्न भोजन योजना, छात्रवृत्ति, स्कूल ड्रेस, निशुल्क किताब नहीं मिलते हैं । फिर भी बच्चों की उपस्थिति शत-प्रतिशत है । कहा जाता है कि मातृभाषा की पढ़ाई में बच्चों की उत्साह होती है । यहां मातृभाषा ओलचिकी के साथ-साथ हिन्दी, अंग्रेजी की शिक्षा दी जाती है ।
वही बता दें कि सरकारी विद्यालय भी संचालित है । मध्याह्न भोजन योजना, छात्रवृत्ति, ड्रेस, निशुल्क किताब मिलती है । पर सरकारी व्यवस्था को गरीब आदिवासी बच्चे सरकारी सुविधाओं से नहीं पढ़ाई की व्यवस्था से रुचि है । खेरवाल विद्याघर इसका जिताजगता उदाहरण माना जा सकता है । जहां सरकारी विद्यालय छोड़ कर पेड़ के नीचे पढ़ने आ रहे है । 1-5 तक तत्काल पढ़ाई हो रही है । यह विद्यालय सरकारी विद्यालय के समक्ष एक चुनौती है ?Conclusion:
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