जमशेदपुरः भारत मे बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था चाइल्ड लाइन, आज देश के सभी प्रदेश के जिला में काम कर रही है. जिसके तहत प्रतिमाह भटके हुए सैकड़ों बच्चों को पहचान कर उनके घर तक पहुंचाया जाता है. बच्चों को रेस्क्यू कर उनके घर तक पहुंचाना चाइल्ड लाइन के सदस्यों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती होती है. जमशेदपुर के टाटानगर रेलवे स्टेशन में स्थापित चाइल्ड लाइन पिछले 3 वर्षों से स्टेशन क्षेत्र में 700 से ज्यादा बच्चों का रेस्क्यू किया. जिनमें कई बच्चों को उनके घर पहुंचाया, कई आवासीय विद्यालय में पढ़ाई कर रहे हैं.
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साउथ ईस्टर्न जोन में चक्रधरपुर रेल मंडल का मॉडल स्टेशन टाटानगर रेलवे स्टेशन में प्लेटफॉर्म नंबर 1 के पार्सल रूम के पास 1 मई 2018 को चाइल्ड लाइन का कार्यालय खोला गया. इस दफ्तर में कुल 12 सदस्य हैं, जिनमें 1 काउंसलर, 7 टीम सदस्य, 3 वॉलेंटियर्स और 1 सीनियर को-ऑर्डिनेटर पदस्थापित हैं. जो प्लेटफॉर्म और स्टेशन परिसर में भटके हुए और अकेला घूमने वाले 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का रेस्क्यू करते हैं. भारत सरकार की ओर से भटके बच्चों के लिए 1098 हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है, जो सेंट्रलाइज है, जिसके जरिए सूचना पर नजदीकी चाइल्ड लाइन की टीम, आरपीएफ की टीम बच्चों का रेस्क्यू करती है.
झारखंड में कुल 4 रेलवे स्टेशन में चाइल्ड लाइन काम करती है. रांची रेलवे स्टेशन में सबसे पहला चाइल्ड लाइन का कार्यालय खोला गया. फिर धनबाद, जमशेदपुर टाटानगर स्टेशन और बोकारो रेलवे स्टेशन में इसका दफ्तार खोला गया.
चाइल्ड लाइन जुविनाइल जस्टिस एक्ट के अधीन चलती है. प्रभारी डायरेक्टर बताती हैं कि बच्चों का रेस्क्यू करने के बाद उनका काउंसिलिंग करना होता है. जिसके बाद जिला बाल संरक्षण इकाई के अधीन सौंपा जाता है. जहां बच्चों की काउंसलिंग के बाद उनकी पूरी जानकारी ली जाती है और सही जानकारी मिलने पर उनके परिजनों तक पहुंचाया जाता है. जबकि कई बच्चों को पढ़ने के लिए आवासीय विद्यालय में भेजा जाता है. वो बताती हैं कि 17 साल से अधिक उम्र होने के बाद अगर बच्चे का कोई पहचान वाला नहीं मिलता है तो बच्चे को दुमका आफ्टर केयर सेंटर में भेजने का प्रावधान है. जहां सरकार की ओर से स्किल डेवलपमेंट के तहत उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है.
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यात्रियों को किया जाता है जागरूक
रेलवे स्टेशन के चाइल्ड लाइन के चेयर पर्सन स्टेशन डायरेक्टर होते हैं. जिनकी निगरानी में समय-समय पर जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है. 1 मई 2018 से टाटानगर चाइल्ड लाइन ने 730 बच्चों का रेस्क्यू किया है. चाइल्ड लाइन की सीनियर को-ऑर्डिनेटर एम. अरविंदा ने बताया कि स्टेशन में बच्चों का रेस्क्यू करना एक बहुत बड़ी चुनौती है. बच्चे आम यात्री के साथ मिल जाते हैं और उन्हें पहचानने में मुश्किल होती है. जबकि कई ऐसे बच्चे हैं, जो रेस्क्यू किए जाने के बाद कुछ भी बताने में असमर्थ रहते हैं, कई नशे के आदी होते हैं.
को-ऑर्डिनेटर बताती हैं कि जब रेस्क्यू के बाद बच्चे हमसे घुलमिल जाते है और अपनी बातों को बताते हैं. जिससे यह पता चलता है कि कई बच्चे गुस्से में घर से निकल जाते हैं, जिन्हें काउंसिलिंग कर उनके परिजनों को सौंपा जाता है. वो बताती हैं कि रेस्क्यू किए गए बच्चों में सबसे ज्यादा संख्या लड़कों की देखी गई है. रेस्क्यू किए गए बच्चों में सबसे ज्यादा संख्या झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिला के चाईबासा की है. उन्होंने बताया कि लड़कियों का रेस्क्यू करने के बाद उन्हें रखने की समस्या है और जो बच्चे नशा करते हैं, ऐसे बच्चों के लिए सरकारी डीएडिक्शन सेंटर नहीं है, जो एक परेशानी का कारण भी है.
डायल 1098
रेलवे स्टेशन में बच्चों के रेस्क्यू में स्टेशन में यात्रियों की सुरक्षा में तैनात आरपीएफ की टीम चाइल्ड लाइन की मदद करती है. आरपीएफ किसी बच्चे का रेस्क्यू करने के बाद उससे पूछताछ कर चाइल्ड लाइन को सौंपा जाता है. चाइल्ड लाइन की ओर से स्टेशन और प्लेटफॉर्म पर 1098 हेल्प लाइन नंबर की जानकारी यात्रियों को समय-समय पर दी जाती है. इस दौरान बच्चों के साथ सफर पर निकले यात्रियों को 1098 के उपयोग करने की पूरी जानकारी दी जाती है. यात्री भी रेलवे की चाइल्ड लाइन की सेवा की सराहना करते हैं.
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देश में कुल 8338 रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म, स्टेशन परिसर में कई बच्चों को भटकते देखा जाता है. जिनमें कई बच्चे ऐसे होते हैं जो नाराजगी से घर से निकलते हैं, कुछ दोस्तों के चक्कर में कुछ रास्ता भटक जाते हैं और कुछ बच्चे नशे की लत में घर से बेघर हो जाते हैं. जबकि कई बच्चों को अगवा कर उन्हें चाइल्ड लेबर बना दिया जाता है. टाटानगर रेलवे स्टेशन में चाइल्ड लाइन ने अपने तीन साल के कार्यकाल में सैकड़ों बच्चों को उनके घर तक पहुंचा कर परिवार में खुशियां बिखेरी है. जबकि कई बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जो एक अच्छी पहल है.
एक नजर टाटानगर रेलवे स्टेशन के चाइल्ड लाइन के रेस्क्यू आंकड़े पर
2018 मई से 2019 मार्च 31 - 238 बच्चे रेस्क्यू किए गए, जिनमें 192 लड़के और 46 लड़कियां शामिल
2019 अप्रैल से 2020 मार्च - बच्चे रेस्क्यू किए गए, जिनमें 289 लड़के और 95 लड़कियां शामिल
2020 अप्रैल से 2021 मार्च 31 - 128 बच्चे रेस्क्यू किए गए, जिनमें 83 लड़के और 45 लड़कियां शामिल
रेस्क्यू में किस क्षेत्र के सबसे ज्यादा बच्चे पाए गए
1 झारखंड का पश्चिम सिंहभूम जिला में चाईबासा
2 पूर्वी सिंहभूम जिला में घाटशिला
3 ओड़िशा का मयूरभंज, बारिपदा और क्योंझर
4 प. बंगाल का पुरुलिया, बलरामपुर, आसनसोल
5 बिहार का सहरसा, नालंदा, भागलपुर, मोतीहारी और मुंगेर
6 उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद, मिर्जापुर, सोनभद्र
7 महाराष्ट्र का गोंदिया, नागपुर
8 छत्तीसगढ़ का दुर्ग, रायपुर, रायगढ़ और बिलासपुर
अब तक पंजाब के लुधियाना की एक लड़की का रेस्क्यू कर उसे लुधियाना पुलिस को सौंपा गया है
आंध्र प्रदेश की एक लड़की का रेस्क्यू
दिल्ली के 2 लड़कों का रेस्क्यू किया गया