दुमकाः झारखंड सरकार के कामकाज में किस कदर लापरवाही बरती जा रही है इसकी बानगी संथाल परगना में देखी जा सकती है. संथाल परगना प्रमंडल के सबसे वरीय प्रशासनिक अधिकारी प्रमंडलीय आयुक्त का पद पिछले 2 माह से अधिक समय से रिक्त पड़ा हुआ है.
31 मई को तत्कालीन आयुक्त अरविंद कुमार सेवानिवृत्त हुए थे. उसके बाद से इस पद पर ना तो किसी की पोस्टिंग हुई ना ही किसी को अतिरिक्त प्रभार दिया गया. ऐसे में कमिश्नर की कुर्सी खाली पड़ी है.
कामकाज हो रहा है प्रभावित
बता दें संथाल परगना प्रमंडल में 6 जिले दुमका, देवघर, साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा और जामताड़ा हैं. इन जिलों के जिलास्तरीय विकास की कामकाज की मॉनिटरिंग आयुक्त कार्यालय से ही होती है.
आयुक्त के नहीं रहने से ये सारे कामकाज लंबित हैं. इसके साथ ही जमीन संबंधित सैकड़ों मामले प्रक्रियाधीन हैं जिनका निपटारा आयुक्त की ओर से होना है.
आयुक्त पद पर सरकार का रवैया अजीब
संथाल परगना प्रमंडल 1983 में अस्तित्व में आया. इसके पहले यह भागलपुर के अधीन था. तब संथाल परगना एक जिला हुआ करता था और उसका मुख्यालय दुमका था.
प्रमंडल बनने के 37 साल में अब तक 53 आयुक्त की यहां पोस्टिंग हुई है. मतलब औसतन एक आयुक्त एक साल भी नहीं टिका. अगर झारखंड राज्य गठन के बाद कि बात करें तो 2000 में झारखंड राज्य बनने के बाद से 20 वर्षो में 37 प्रमंडलीय आयुक्त हुए हैं.
अगर औसतन एक अधिकारी एक साल भी नहीं रहे तो वे अपने कार्य क्षेत्र को कैसे समझ सकेंगे और जब कामकाज समझेंगे नहीं तो जनता के लिए बेहतर परफॉर्मेंस कैसे देंगे. क्या कहते हैं स्थानीय लोग
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आयुक्त का पद संथाल परगना प्रमंडल का सबसे सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव पद है तो जाहिर है कि जो नीचे के जो अधिकारी है चाहे वह उपायुक्त ही क्यों ना हो वह इस विषय पर कुछ भी नहीं बोलना चाहेंगे.
स्थानीय लोग कहते हैं कि प्रमंडलीय आयुक्त एक महत्वपूर्ण पद है. यह जमीन संबंधित विवादों का निपटारा करते हैं . जिलास्तरीय विकास कार्यों की समीक्षा करते हैं. एक जिले से दूसरे जिले के बीच समन्वय स्थापित करते हैं, जब यह पद लंबे समय से रिक्त है तो जाहिर है कि कामकाज प्रभावित हो रहा है. वो सरकार से इस पद पर अविलंब अधिकारी भेजने की मांग कर रहे हैं .