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दुमका सिल्क सिटी बनने की ओर अग्रसर, सैकड़ों महिलाओं को मिला रोजगार - दुमका खबर

दुमका सिल्क सिटी के तौर पर विकसित हो रहा है. पिछले कुछ सालों में यहां का मयूराक्षी सिल्क ब्रैंड बन गया है. यहां महिलाओं को इससे रोजगार भी मिल रहा है.

mayurakshi silk in Dumka
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Published : Oct 21, 2021, 5:13 PM IST

दुमका: आमतौर पर सिल्क की साड़ियों का उत्पादन दक्षिण भारत के कई राज्यों या फिर यूपी के बनारस और पश्चिम बंगाल में होता है. लेकिन अब झारखंड की उपराजधानी दुमका में भी सिल्क की साड़ियां-कुर्ती और अन्य पोशाक का निर्माण किया जा रहा है. इतना ही नहीं यहां तसर के कोकून के उत्पादन से लेकर उसका धागा और कपड़ा सभी तैयार किया जा रहा है. सूत निकालने से लेकर कपड़ा तैयार करने में लगभग 400 महिलाएं लगी हुई हैं. वहीं, अगर इसका कच्चा माल कोकून के उत्पादन की बात करें तो इसमें लगभग बीस हजार से अधिक लोग लगे हुए हैं. कोकून का उत्पादन दुमका के काठीकुंड, गोपीकांदर, मसलिया, शिकारीपाड़ा प्रखंड में फैले जंगलों में होता है.

ये भी पढ़ें- आज भी सिल्क के दीवानों की पहली पसंद 'भागलपुरी सिल्क', लेकिन ये है बड़ी परेशानी

कोकून से लेकर धागा और सिल्क के कपड़े हो रहे हैं तैयार

झारखंड की उपराजधानी दुमका में आसन और अर्जुन के पेड़ काफी संख्या में हैं. यह पेड़ तसर (सिल्क) के कीड़े के लिए काफी उपयुक्त होता है. यही वजह है कि ऐसे पेड़ों पर तसर के कीट का पालन बड़े पैमाने पर किया जाता है. इसके जरिए कोकून का उत्पादन किया जाता है. पहले सारे कोकून बाहर भेज दिए जाते थे, लेकिन झारखंड सरकार के हस्तकरघा, रेशम एवं हस्तशिल्प निदेशालय के द्वारा पिछले दो-तीन वर्षों से दुमका में ही कोकून से धागा निकालने से लेकर उससे कपड़ा तैयार करने की व्यवस्था की गई है. तसर कीट पालन और उससे कोकून का उत्पादन कार्य में लगभग बीस हजार लोग लगे हुए हैं. लेकिन उसके धागे को निकालने और कपड़ा तैयार करने में लगभग 400 महिलाओं को रोजगार मिल रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी
क्या कहते हैं रेशम विभाग के अधिकारी ।

हस्तकरघा-रेशम विभाग के अधिकारी सुधीर कुमार सिंह बताते हैं कि भागलपुर जो सिल्क सिटी के नाम से विख्यात है, वह दुमका की वजह से ही है, वहां जो सिल्क के कपड़े तैयार होते थे उसके अधिकांश कच्चे माल दुमका से ही भेजे जाते थे, ऐसे में हस्तशिल्प, रेशम और हस्तशिल्प निदेशालय ने 3 वर्ष पहले यह योजना बनाई कि क्यों न हमारे यहां जो कोकून उत्पादित होता है उसका यहीं धागा बनाया जाए और कपड़ा तैयार कर उससे पोशाक का भी निर्माण किया जाए. इसके सूत कातने की मशीन से लेकर कपड़ा तैयार करने का हस्तकरघा और अन्य मशीनें सभी मंगाई गई. बाहर से आए प्रशिक्षकों द्वारा स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया. देखते ही देखते महिलाएं प्रशिक्षित होकर अपने काम में जुट गई और सिल्क कपड़ा यहां तैयार होने लगे.

mayurakshi silk in Dumka
पेड़ में लगे कोकून
ब्रांड का मयूराक्षी सिल्क दिया गया नाम

दुमका की लाइफ लाइन कही जाने वाली मयूराक्षी नदी के नाम पर यहां बनने वाले सिल्क का नाम मयूराक्षी सिल्क रखा गया है. वर्तमान समय में यहां महिलाओं के लिए सिल्क की साड़ी, कुर्ती के साथ पुरुषों के लिए कुर्ता और बंडी का निर्माण किया जा रहा है. साड़ी की कीमत 4,000 से लेकर 11,000 रुपये (चार हजार से ग्यारह हजार) रुपये तक है. हाल ही में जिला प्रशासन ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी यहां का बंडी उपहार स्वरूप दिया गया था.

mayurakshi silk in Dumka
कोकून से रेशम निकालती महिलाएं
ये भी पढ़ें- मयूराक्षी नदी से 2500 परिवार को मिलेगा पेयजल, सफलतापूर्वक हुआ ट्रायल

इसे विकसित करने की दिशा में हो रहे हैं कई प्रयास

सुधीर कुमार सिंह बताते हैं कि जो भी लोग यहां आते हैं और उन्हें मयूराक्षी सिल्क की जानकारी मिलती है तो वह हमारे यहां आकर सिल्क की साड़ियां और अन्य कपड़े ले जाते हैं. उसके बाद इसका डिमांड शुरू हो जाता है. अभी तक हमने दिल्ली, हैदराबाद, रांची, बनारस सभी जगह में यहां के सिल्क से बने पोशाक भेजे हैं. अभी एक परेशानी यहां यह हो रही है कि सिल्क के कपड़े को यहां तैयार तो कर लिए जाते हैं लेकिन उसकी रंगाई यहां नहीं हो पाती. रंग करने के लिए कपड़े को पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर, तांतीपाड़ा या फिर बिहार के भागलपुर भेजा जाता है. वे कहते हैं कि कपड़ों की रंगाई यहीं हो इसकी व्यवस्था भी हमलोग करने में जुटे हुए हैं. इसके साथ ही भारत सरकार के लघु एवं कुटीर उद्योग में जो सामानों का निर्माण होता है उसके वेबसाइट के साथ हमलोग मयूराक्षी सिल्क को भी जोड़ने जा रहे हैं, ताकि ऑनलाइन हमें आर्डर मिले. उन्होंने कहा कि इसके विकास की एक ब्लूप्रिंट तैयार की गई है जिस पर जल्द काम होगा.

mayurakshi silk in Dumka
धागा बनाती महिला


सैकड़ों महिलाओं को मिला रोजगार

दुमका में कोकून से धागे निकालने और उस धागे से कपड़े तैयार करने के काम में लगभग 400 महिलाएं लगी हुई हैं. इन सबों को अच्छा रोजगार प्राप्त हो रहा है. महिलाएं औसतन आठ हजार से लेकर बारह हजार तक कमा लेती हैं. यहां काम कर रही महिलाओं ने बताया कि पहले मैं घरेलू महिला थी, लेकिन पता चला कि यहां सिल्क के कपड़े तैयार करने के प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं तो हमने यहां पर ट्रेनिंग ली और अब हम यहां कपड़े तैयार कर रहे हैं. जिससे हमें अच्छी आमदनी प्राप्त हो रही है और हमारा घर इसी से चल रहा है.

mayurakshi silk in Dumka
धागा तैयार करती महिला
दुमका सांसद ने कहा मयूराक्षी सिल्क को करेंगे विकसित

इस पूरे मामले पर हमने दुमका सांसद सुनील सोरेन से बात की तो उन्होंने कहा कि मयूराक्षी सिल्क एक ब्रांड बन गया है. इसमें काफी लोगों को रोजगार मिला है. सांसद कहते हैं कि मैं भारत सरकार के टेक्सटाइल मिनिस्टर से बात करूंगा कि कैसे दुमका के सिल्क इंडस्ट्रीज को विकसित किया जाए और उस अनुरूप योजनाओं को धरातल पर उतारूंगा.

mayurakshi silk in Dumka
धागा तैयार करती महिलाएं
सरकार करे आवश्यक पहल तो निखर जाएगा यह उद्योग

झारखंड सरकार और भारत सरकार अगर दुमका के तसर उद्योग पर ध्यान दे, इसे विकसित करने की दिशा में जो भी आवश्यक कार्य है उसे धरातल पर उतारे तो यह सिल्क इंडस्ट्रीज निखर जाएगी. काफी लोगों को रोजगार मिलेगा और दुमका भी सिल्क सिटी के नाम से जाना जाएगा.

दुमका: आमतौर पर सिल्क की साड़ियों का उत्पादन दक्षिण भारत के कई राज्यों या फिर यूपी के बनारस और पश्चिम बंगाल में होता है. लेकिन अब झारखंड की उपराजधानी दुमका में भी सिल्क की साड़ियां-कुर्ती और अन्य पोशाक का निर्माण किया जा रहा है. इतना ही नहीं यहां तसर के कोकून के उत्पादन से लेकर उसका धागा और कपड़ा सभी तैयार किया जा रहा है. सूत निकालने से लेकर कपड़ा तैयार करने में लगभग 400 महिलाएं लगी हुई हैं. वहीं, अगर इसका कच्चा माल कोकून के उत्पादन की बात करें तो इसमें लगभग बीस हजार से अधिक लोग लगे हुए हैं. कोकून का उत्पादन दुमका के काठीकुंड, गोपीकांदर, मसलिया, शिकारीपाड़ा प्रखंड में फैले जंगलों में होता है.

ये भी पढ़ें- आज भी सिल्क के दीवानों की पहली पसंद 'भागलपुरी सिल्क', लेकिन ये है बड़ी परेशानी

कोकून से लेकर धागा और सिल्क के कपड़े हो रहे हैं तैयार

झारखंड की उपराजधानी दुमका में आसन और अर्जुन के पेड़ काफी संख्या में हैं. यह पेड़ तसर (सिल्क) के कीड़े के लिए काफी उपयुक्त होता है. यही वजह है कि ऐसे पेड़ों पर तसर के कीट का पालन बड़े पैमाने पर किया जाता है. इसके जरिए कोकून का उत्पादन किया जाता है. पहले सारे कोकून बाहर भेज दिए जाते थे, लेकिन झारखंड सरकार के हस्तकरघा, रेशम एवं हस्तशिल्प निदेशालय के द्वारा पिछले दो-तीन वर्षों से दुमका में ही कोकून से धागा निकालने से लेकर उससे कपड़ा तैयार करने की व्यवस्था की गई है. तसर कीट पालन और उससे कोकून का उत्पादन कार्य में लगभग बीस हजार लोग लगे हुए हैं. लेकिन उसके धागे को निकालने और कपड़ा तैयार करने में लगभग 400 महिलाओं को रोजगार मिल रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी
क्या कहते हैं रेशम विभाग के अधिकारी ।

हस्तकरघा-रेशम विभाग के अधिकारी सुधीर कुमार सिंह बताते हैं कि भागलपुर जो सिल्क सिटी के नाम से विख्यात है, वह दुमका की वजह से ही है, वहां जो सिल्क के कपड़े तैयार होते थे उसके अधिकांश कच्चे माल दुमका से ही भेजे जाते थे, ऐसे में हस्तशिल्प, रेशम और हस्तशिल्प निदेशालय ने 3 वर्ष पहले यह योजना बनाई कि क्यों न हमारे यहां जो कोकून उत्पादित होता है उसका यहीं धागा बनाया जाए और कपड़ा तैयार कर उससे पोशाक का भी निर्माण किया जाए. इसके सूत कातने की मशीन से लेकर कपड़ा तैयार करने का हस्तकरघा और अन्य मशीनें सभी मंगाई गई. बाहर से आए प्रशिक्षकों द्वारा स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया. देखते ही देखते महिलाएं प्रशिक्षित होकर अपने काम में जुट गई और सिल्क कपड़ा यहां तैयार होने लगे.

mayurakshi silk in Dumka
पेड़ में लगे कोकून
ब्रांड का मयूराक्षी सिल्क दिया गया नाम

दुमका की लाइफ लाइन कही जाने वाली मयूराक्षी नदी के नाम पर यहां बनने वाले सिल्क का नाम मयूराक्षी सिल्क रखा गया है. वर्तमान समय में यहां महिलाओं के लिए सिल्क की साड़ी, कुर्ती के साथ पुरुषों के लिए कुर्ता और बंडी का निर्माण किया जा रहा है. साड़ी की कीमत 4,000 से लेकर 11,000 रुपये (चार हजार से ग्यारह हजार) रुपये तक है. हाल ही में जिला प्रशासन ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी यहां का बंडी उपहार स्वरूप दिया गया था.

mayurakshi silk in Dumka
कोकून से रेशम निकालती महिलाएं
ये भी पढ़ें- मयूराक्षी नदी से 2500 परिवार को मिलेगा पेयजल, सफलतापूर्वक हुआ ट्रायल

इसे विकसित करने की दिशा में हो रहे हैं कई प्रयास

सुधीर कुमार सिंह बताते हैं कि जो भी लोग यहां आते हैं और उन्हें मयूराक्षी सिल्क की जानकारी मिलती है तो वह हमारे यहां आकर सिल्क की साड़ियां और अन्य कपड़े ले जाते हैं. उसके बाद इसका डिमांड शुरू हो जाता है. अभी तक हमने दिल्ली, हैदराबाद, रांची, बनारस सभी जगह में यहां के सिल्क से बने पोशाक भेजे हैं. अभी एक परेशानी यहां यह हो रही है कि सिल्क के कपड़े को यहां तैयार तो कर लिए जाते हैं लेकिन उसकी रंगाई यहां नहीं हो पाती. रंग करने के लिए कपड़े को पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर, तांतीपाड़ा या फिर बिहार के भागलपुर भेजा जाता है. वे कहते हैं कि कपड़ों की रंगाई यहीं हो इसकी व्यवस्था भी हमलोग करने में जुटे हुए हैं. इसके साथ ही भारत सरकार के लघु एवं कुटीर उद्योग में जो सामानों का निर्माण होता है उसके वेबसाइट के साथ हमलोग मयूराक्षी सिल्क को भी जोड़ने जा रहे हैं, ताकि ऑनलाइन हमें आर्डर मिले. उन्होंने कहा कि इसके विकास की एक ब्लूप्रिंट तैयार की गई है जिस पर जल्द काम होगा.

mayurakshi silk in Dumka
धागा बनाती महिला


सैकड़ों महिलाओं को मिला रोजगार

दुमका में कोकून से धागे निकालने और उस धागे से कपड़े तैयार करने के काम में लगभग 400 महिलाएं लगी हुई हैं. इन सबों को अच्छा रोजगार प्राप्त हो रहा है. महिलाएं औसतन आठ हजार से लेकर बारह हजार तक कमा लेती हैं. यहां काम कर रही महिलाओं ने बताया कि पहले मैं घरेलू महिला थी, लेकिन पता चला कि यहां सिल्क के कपड़े तैयार करने के प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं तो हमने यहां पर ट्रेनिंग ली और अब हम यहां कपड़े तैयार कर रहे हैं. जिससे हमें अच्छी आमदनी प्राप्त हो रही है और हमारा घर इसी से चल रहा है.

mayurakshi silk in Dumka
धागा तैयार करती महिला
दुमका सांसद ने कहा मयूराक्षी सिल्क को करेंगे विकसित

इस पूरे मामले पर हमने दुमका सांसद सुनील सोरेन से बात की तो उन्होंने कहा कि मयूराक्षी सिल्क एक ब्रांड बन गया है. इसमें काफी लोगों को रोजगार मिला है. सांसद कहते हैं कि मैं भारत सरकार के टेक्सटाइल मिनिस्टर से बात करूंगा कि कैसे दुमका के सिल्क इंडस्ट्रीज को विकसित किया जाए और उस अनुरूप योजनाओं को धरातल पर उतारूंगा.

mayurakshi silk in Dumka
धागा तैयार करती महिलाएं
सरकार करे आवश्यक पहल तो निखर जाएगा यह उद्योग

झारखंड सरकार और भारत सरकार अगर दुमका के तसर उद्योग पर ध्यान दे, इसे विकसित करने की दिशा में जो भी आवश्यक कार्य है उसे धरातल पर उतारे तो यह सिल्क इंडस्ट्रीज निखर जाएगी. काफी लोगों को रोजगार मिलेगा और दुमका भी सिल्क सिटी के नाम से जाना जाएगा.

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