दुमकाः जिले में कई ऐसे पत्थर के खदान हैं जो वर्षों से बंद पड़े हैं. उनमें सालोंभर पानी भरा रहता है. अब तक उस पानी का कोई इस्तेमाल नहीं होता था, लेकिन कुछ माह पहले नए प्रयोग के तौर पर रानीश्वर प्रखंड के नंदना गांव स्थित एक बंद पत्थर खदान में मत्स्य विभाग ने स्थानीय लोगों की मदद से मछली पालन शुरू कराया. इसका सार्थक परिणाम भी नजर आया. इस योजना को देखने रविवार को भारत सरकार के जल संसाधन विभाग की टीम (Central Team Visited Dumka) पहुंची. बेकार पड़े जलाशय के सदुपयोग को देख टीम ने प्रसन्नता जाहिर की.
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केंद्रीय जल संसाधन की टीम ने किया निरीक्षणः नई दिल्ली से भारत सरकार के जल संसाधन विभाग के अधिकारी ओपी सिंह और नन्दिता अपनी टीम के साथ दुमका के रानीश्वर प्रखंड के नन्दना गांव पहुंचे. यहां मत्स्य विभाग द्वारा बनाए गए कावेरी केज कल्चर समूह नन्दना द्वारा परित्यक्त पत्थर खदान में केज कल्चर के माध्यम से मत्स्य पालन का अवलोकन (Fisheries In Closed Mine) किया. उन्होंने जल के इस सदुपयोग पर प्रसन्नता जताई. टीम ने पत्थर खदानों में केज कल्चर के माध्यम से मछली पालन की काफी सराहना की.
टीम ने की विभाग की पहल की सराहनाः टीम के अधिकारियों ने कहा कि बेकार पड़े पत्थर खदानों में संग्रहित जलक्षेत्र का सार्थक उपयोग किया जा रहा है. यह विकास की नई योजना है. इस तरह की योजनाओं को धरातल पर लाकर हम मछली का बेहतर उत्पादन कर सकते हैं. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सकता है. इस क्षेत्र में नए जलस्त्रोतों के सदुपयोग का रास्ता खोलने के लिए उन्होंने दुमका के मत्स्य विभाग की भी सराहना की.
गांव की समिति को दिए अहम सुझावः केंद्रीय टीम ने गांव की समिति के सदस्यों को संगठित होकर पूरी लगन के साथ कार्य करने का सुझाव दिया, ताकि नन्दना के बंद पत्थर खदान में लगे ये केज नीली क्रांति की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकें. इस मौके पर जिला मत्स्य पदाधिकारी अमरेंद्र कुमार और कावेरी केज कल्चर समूह (Kaveri Cage Culture Group)के सभी सदस्य उपस्थित थे.
मछली उत्पादन के लिए लगाए गए हैं 24 केजः बता दें कि केज कल्चर विस्तार और सुदृढ़ीकरण योजना अन्तर्गत रानीश्वर प्रखंड के नन्दना गांव में अवस्थित परित्यक्त पत्थर खदान में केज कल्चर के माध्यम से मत्स्य पालन करने और स्थानीय ग्रामीणों की आय में बढ़ोतरी के लिए 12 केज बैट्री में 24 केज का निर्माण जिला मत्स्य कार्यालय द्वारा किया गया है. इसके संचालन के लिए ग्राम प्रधान की अध्यक्षता में स्थानीय युवाओं को शामिल करते हुए 24 सदस्यों का "कावेरी केज कल्चर समूह" का गठन किया गया है. इस केज को बनाने में 3.58 लाख रुपए प्रति केज बैट्री की राशि खर्च की गई थी, जिसमें 90 प्रतिशत सरकारी अनुदान और शेष 10 प्रतिशत लाभुक का अंशदान है.