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भगवान विश्वकर्मा ने निरसा में किया था अति प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण, जानिए क्या है विशेषता - पांड्रा शिव मंदिर की विशेष मान्यताएं

धनबाद के पांड्रा गांव में अति प्राचीन शिव मंदिर है. इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से किया था. बताया जाता है कि पांचों पांडव अज्ञातवास के समय इस जगह पर कुछ दिनों तक ठहरे थे, जिसके बाद एक ही दिन में मंदिर का निर्माण किया गया था. इस मंदिर में भक्त जो भी मन्नतें मांगते हैं वह जरुर पूरा होता है.

Very oriental Shiva temple in Nirsa of Dhanbad
भगवान विश्वकर्मा ने निरसा में किया था अति प्रचिन शिव मंदिर का निर्माण
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Published : Feb 21, 2020, 7:30 PM IST

Updated : Feb 21, 2020, 10:11 PM IST

धनबाद: कोयलांचल धनबाद के निरसा इलाके के पांड्रा गांव में एक अति प्राचीन शिव मंदिर है, जिसे बाबा कपिलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है. मान्यता के अनुसार द्वापर काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस जगह पर कुछ समय बिताई थी और उसी समय इस मंदिर का निर्माण हुआ था. यह मंदिर निरसा-जामताड़ा रोड पर अवस्थित है. पुरातत्व विभाग ने इसे झारखंड का धरोहर भी घोषित किया है.

देखें स्पेशल स्टोरी

निरसा जामताड़ा मुख्य सड़क पर प्रखंड मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर पांडू-रा गांव था, जिसका नाम पांडवों के नाम पर ही रखा गया था, लेकिन अब उस गांव का नाम बदलकर पांड्रा कर दिया गया है. इस गांव के प्राचीन शिव मंदिर की अपनी अलग ही मान्यताएं हैं.

इसे भी पढ़ें:- आज है महाशिवरात्रि, भोलेनाथ के मंदिरों में उमड़े भक्त

मंदिर के बारे में स्थानीय लोग बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा के हाथों हुआ है और रातों-रात यह मंदिर बना है, यह मंदिर लगभग 2 एकड़ इलाके में फैला हुआ है. यहां 30 से भी ज्यादा मंदिर हैं, जिसमें द्वापर कालीन बाबा कपिलेश्वर का मंदिर भी शामिल है.

इसी मंदिर में ठहरे थे पांडव

बताया जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां आए थे और कुछ दिनों तक यहां ठहरे थे. पांडवों के साथ-साथ द्रौपदी और कुंती माता भी आई थी, उसी समय पांचो पांडवों ने अलग-अलग शिवलिंग की स्थापना की थी, जो आज भी मौजूद है. युधिष्ठिर ने बाबा कपिलेश्वर, भीम ने बाबा बनेश्वर, अर्जुन ने भुवनेश्वर, नकुल ने तारकेश्वर और सहदेव ने बाबा मनकेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी. वहीं कुंती और द्रोपदी ने मां पार्वती की स्थापना की थी. इस मंदिर में अपनी मन्नत को लेकर काफी दूर-दूर से लोग आते हैं.

इसी मंदिर की गुफा से होकर अज्ञातवास गए थे पांडव

स्थानीय लोगों ने कहा कि यहां पर झारखंड के अलग-अलग जिलों के साथ-साथ बिहार, बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश आदि जगहों से भी भक्त मंदिर में पूजा करने पहुंचते हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर में एक गुफा भी था, जो अब बंद कर दिया गया है. पांड्रा से यह गुफा पश्चिम बंगाल के कल्यानेश्वरी मंदिर तक जाती थी. इसी गुफा से होकर पांडव अज्ञातवास के लिए गए थे.

शिवरात्री में भक्तों की उमड़ती है भीड़

मंदिर में द्रौपति और कुंती ने जहां पर खाना बनाया था वह चूल्हा आज भी मौजूद है और उसी चूल्हे में आज भी लकड़ी में महाभोग पकाया जाता है. उस चुल्हे में पकाए गए प्रसाद महाभोग के रुप में श्रद्धालुओं को दिया जाता है. सावन महीने में और महाशिवरात्रि के दिन इस जगह पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और काफी दूर-दूर से लोग पूजा करने के लिए यहां पहुंचते हैं.

यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर धूमधाम से बाबा की बारात निकाली जाती है और आकर्षक झांकी के साथ पूरा गांव में भ्रमण किया जाता है, जिसके बाद बारात कालिंजर मंदिर पहुंचता है. बारात पहुंचने के बाद रात्रि में धूमधाम से भगवान शिव और माता पार्वती की शादी करवाई जाती है. इस मौके पर रात्रि के समय भजन संध्या का भी आयोजन होता है.

इसे भी पढे़ं:- महाशिवरात्रि आज, बाबा मंदिर में उमड़ा जनसैलाब, तीन लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

मंदिर का निर्माण होने के बाद उस समय पांड्रा स्टेट के राजा ने बाबा कपिलेश्वर के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए पुजारी, सफाईकर्मी, मालाकार आदि लोगों को जमीन दान में देकर बसाया गया था और आज भी वो लोग यहीं बसे हुए हैं. यहां बसे लोग सेवादार के रुप में मंदिर की देखरेख करते हैं.

मंदिर की क्या है खासियत

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस मंदिर में आकर जो भी मन्नत मांगी जाती है वह जरूर पूरी होती है, जिसके कारण यहां पर महाशिवरात्रि के दिन विशेष तौर पर भीड़ देखी जाती है. पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को झारखंड का धरोहर भी घोषित किया है.

धनबाद: कोयलांचल धनबाद के निरसा इलाके के पांड्रा गांव में एक अति प्राचीन शिव मंदिर है, जिसे बाबा कपिलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है. मान्यता के अनुसार द्वापर काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस जगह पर कुछ समय बिताई थी और उसी समय इस मंदिर का निर्माण हुआ था. यह मंदिर निरसा-जामताड़ा रोड पर अवस्थित है. पुरातत्व विभाग ने इसे झारखंड का धरोहर भी घोषित किया है.

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निरसा जामताड़ा मुख्य सड़क पर प्रखंड मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर पांडू-रा गांव था, जिसका नाम पांडवों के नाम पर ही रखा गया था, लेकिन अब उस गांव का नाम बदलकर पांड्रा कर दिया गया है. इस गांव के प्राचीन शिव मंदिर की अपनी अलग ही मान्यताएं हैं.

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मंदिर के बारे में स्थानीय लोग बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा के हाथों हुआ है और रातों-रात यह मंदिर बना है, यह मंदिर लगभग 2 एकड़ इलाके में फैला हुआ है. यहां 30 से भी ज्यादा मंदिर हैं, जिसमें द्वापर कालीन बाबा कपिलेश्वर का मंदिर भी शामिल है.

इसी मंदिर में ठहरे थे पांडव

बताया जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां आए थे और कुछ दिनों तक यहां ठहरे थे. पांडवों के साथ-साथ द्रौपदी और कुंती माता भी आई थी, उसी समय पांचो पांडवों ने अलग-अलग शिवलिंग की स्थापना की थी, जो आज भी मौजूद है. युधिष्ठिर ने बाबा कपिलेश्वर, भीम ने बाबा बनेश्वर, अर्जुन ने भुवनेश्वर, नकुल ने तारकेश्वर और सहदेव ने बाबा मनकेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी. वहीं कुंती और द्रोपदी ने मां पार्वती की स्थापना की थी. इस मंदिर में अपनी मन्नत को लेकर काफी दूर-दूर से लोग आते हैं.

इसी मंदिर की गुफा से होकर अज्ञातवास गए थे पांडव

स्थानीय लोगों ने कहा कि यहां पर झारखंड के अलग-अलग जिलों के साथ-साथ बिहार, बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश आदि जगहों से भी भक्त मंदिर में पूजा करने पहुंचते हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर में एक गुफा भी था, जो अब बंद कर दिया गया है. पांड्रा से यह गुफा पश्चिम बंगाल के कल्यानेश्वरी मंदिर तक जाती थी. इसी गुफा से होकर पांडव अज्ञातवास के लिए गए थे.

शिवरात्री में भक्तों की उमड़ती है भीड़

मंदिर में द्रौपति और कुंती ने जहां पर खाना बनाया था वह चूल्हा आज भी मौजूद है और उसी चूल्हे में आज भी लकड़ी में महाभोग पकाया जाता है. उस चुल्हे में पकाए गए प्रसाद महाभोग के रुप में श्रद्धालुओं को दिया जाता है. सावन महीने में और महाशिवरात्रि के दिन इस जगह पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और काफी दूर-दूर से लोग पूजा करने के लिए यहां पहुंचते हैं.

यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर धूमधाम से बाबा की बारात निकाली जाती है और आकर्षक झांकी के साथ पूरा गांव में भ्रमण किया जाता है, जिसके बाद बारात कालिंजर मंदिर पहुंचता है. बारात पहुंचने के बाद रात्रि में धूमधाम से भगवान शिव और माता पार्वती की शादी करवाई जाती है. इस मौके पर रात्रि के समय भजन संध्या का भी आयोजन होता है.

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मंदिर का निर्माण होने के बाद उस समय पांड्रा स्टेट के राजा ने बाबा कपिलेश्वर के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए पुजारी, सफाईकर्मी, मालाकार आदि लोगों को जमीन दान में देकर बसाया गया था और आज भी वो लोग यहीं बसे हुए हैं. यहां बसे लोग सेवादार के रुप में मंदिर की देखरेख करते हैं.

मंदिर की क्या है खासियत

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस मंदिर में आकर जो भी मन्नत मांगी जाती है वह जरूर पूरी होती है, जिसके कारण यहां पर महाशिवरात्रि के दिन विशेष तौर पर भीड़ देखी जाती है. पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को झारखंड का धरोहर भी घोषित किया है.

Last Updated : Feb 21, 2020, 10:11 PM IST
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