धनबाद: झारखंड के आदिवासियों का गिने-चुने त्योहार होते हैं. लेकिन जितने भी त्योहार होते हैं. ये सभी त्योहार प्रकृति से जुड़े होते हैं और सब की अपनी अपनी महत्ता होती है. इससे धनबाद में सोहराय (Sohrai in Dhanbad) त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. आदिवासी समाज सोहराय और गैर आदिवासी समाज वंदना के रूप में मनाते हैं. यह पर्व प्रत्येक साल पूस महीने में मनाया जाता है.
सोहराय पर्व आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. इसकी वजह है कि चार दिनों तक सोहराय का पर्व मनाया जाता है. इतना ही नहीं, प्रत्येक टोले में अलग-अलग दिन मनाया जाता है, ताकि पूरे माह एक दूसरे के घर जाकर बधाई दे सकें और खाने पीने का लुत्फ उठा सकें. अमूमन यह पर्व बुधवार के दिन नहाए खाए के साथ शुरु होता है और अगले तीन दिनों तक विभिन्न रंगों के मुर्गों की बली आदिवासी समाज अपने देवता को चढ़ाते हैं, ताकि उनका परिवार सुख शांति और प्राकृतिक आपदा से अछूता रह सके.
हालांकि, सोहराय पर्व की शुरुआत 15-20 दिन पहले से ही कर दी जाती है. आदिवासी परिवार की महिला सदस्य अपने घरों को विशेष रूप से साफ सफाई और रंग रोगन करती हैं, ताकि लक्ष्मी की वास हो सके. इनता ही नहीं, कई घरों की महिलाएं अपने घरों की दीवारों पर प्राकृतिक छटा और अपनी परंपरा को दर्शाते हुए चित्र उकेरते हैं, ताकि आदिवासी संस्कृति से दूसरे लोग अवगत हो सकें. लेकिन आधुनिक युग में यह परंपरा लुप्त होती जा रही है. जरूरत है पुरानी परंपरा को प्रोत्साहन देने के साथ साथ संरक्षित करने की. इससे नयी पीढ़ी अपने गौरवशाली इतिहास को जान सकें.