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धनबाद: आज ही के दिन अंतिम बार गोमो में दिखे थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, निकाली गई निष्क्रमण यात्रा - धनबाद न्यूज

धनबाद के गोमो में अंतिम बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस दिखे थे. इसलिए धनबाद के गोमोवासियों के रोम-रोम में नेताजी बसे हुए हैं. देश में नेताजी की 125वीं जयंती मनाई जा रही है तो गोमो में निष्क्रमण यात्रा निकाली गई.

Netaji Subhash Chandra Bose
आज ही के दिन अंतिम बार गोमो में दिखे थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस
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Published : Jan 18, 2022, 10:05 AM IST

धनबादः आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जिले के गोमो से गहरा नाता रहा है. इसलिए आज भी नेता सुभाष चंद्र बोस गोमोवासियोंं के रोम-रोम में बसे हैं. देश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मनाई जा रही है तो वहीं गोमो में निष्क्रमण यात्रा निकाली जाती है. आज ही के दिन सुभाष चंद्र बोस अंतिम बार गोमो में देखे गए थे.

यह भी पढ़ेंःनेताजी सुभाष चंद्र बोस 125 वीं जयंती पर गूगल मीट का आयोजन, 10 देशों के प्रतिनिधि हुए थे शामिल


महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस का अतीत गोमो स्टेशन से जुड़ा है. अंग्रेजी सिपाहियों ने 2 जुलाई 1940 को नेताजी को हॉलवेल मूवमेंट के दौरान गिरफ्तार कर प्रेसिडेंसी जेल भेज दिया था. नेताजी अपनी गिरफ्तारी से नाराज होकर जेल में ही अनशन पर बैठ गए. इससे उनका स्वास्थ्य लगातार खराब होने लगा. तब तबीयत ठीक होने पर दोबारा गिरफ्तार किए जाने की शर्त पर नेताजी को रिहा किया गया. इसके बावजूद अंग्रेजों ने एल्गिन रोड स्थित नेताजी के आवास पर पहरा लगा दिया था. इस मामले की सुनवाई 27 जनवरी 1941 को होनी थी. नेताजी को भनक लग गयी थी कि इस मामले में सजा होने वाली है. नेताजी अंग्रेजी सिपाहियों की आंखों में धूल झोंक कर बंगाल की सीमा से भागने में सफल रहे. इससे अंग्रेजी हुकूमत के बीच खलबली मच गयी थी.


बंगाल से भागने के बाद नेताजी अपने भतीजे और परिवार के अन्य लोगों के साथ काले रंग की बेबी ऑस्ट्रीकन कार से गोमो पहुंचे थे. इसके बाद 17 जनवरी की रात गोमो स्टेशन से अगले पड़ाव के लिए रवाना हुए थे. यह यात्रा उनकी अंतिम यात्रा मानी जाती है. इसकी वजह है कि इस यात्रा के बाद नेताजी कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए और उनकी जिंदगी का शेष भाग कब, कहां और कैसे गुजरा, इस बात को लेकर तरह-तरह की चर्चा आज तक बनी हुई है.

देखें पूरी खबर

वर्ष 2009 में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने गोमो का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन किया. आज गोमो स्टेशन के सभी कार्यालयों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीरें लगी है. महानिष्क्रमण दिवस के मौके पर स्थानीय लोगों की ओर से कालका मेल के लोको पायलट के साथ साथ ट्रेन मैनेजर और स्टेशन प्रबंधक को सम्मानित किया. इसके साथ ही कालका मेल की सभी बोगियों में नेताजी की तस्वीर और महानिष्क्रमण यात्रा युक्त स्टिकर लगाई गई. इस अवसर पर गोमो दक्षिण प्रधान रवि सिंह, विद्यानंद यादव, धीरज कुमार, रमेश प्रसाद, हनी नारंग, राजेश पासवान, राहुल राय आदि मौजूद थे.

प्लेटफॉर्म संख्या एक और दो के बीच में स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हुए उन्हें याद किया. वहीं, गोमो के रहने वाली नेहा चौधरी ने गोमो स्टेशन पर नेताजी की पेंटिंग बनाई गई है, जिसमें उन्हें चादर लपेटे दिखाया गया है. नेहा चौधरी ने बताया कि टोपी पहने नेताजी की तस्वीर हर जगह देखती है. लेकिन चादर लपेटे तस्वीर बहुत कम देखने को मिलता है. स्थानीय शिक्षक राकेश कुमार सिन्हा ने बताया कि नेताजी के चरण गोमो में पड़ने से यहां की धरती पावन हो गई है. नेताजी हम सभी के रोम-रोम में बसे हैं.

धनबादः आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जिले के गोमो से गहरा नाता रहा है. इसलिए आज भी नेता सुभाष चंद्र बोस गोमोवासियोंं के रोम-रोम में बसे हैं. देश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मनाई जा रही है तो वहीं गोमो में निष्क्रमण यात्रा निकाली जाती है. आज ही के दिन सुभाष चंद्र बोस अंतिम बार गोमो में देखे गए थे.

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महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस का अतीत गोमो स्टेशन से जुड़ा है. अंग्रेजी सिपाहियों ने 2 जुलाई 1940 को नेताजी को हॉलवेल मूवमेंट के दौरान गिरफ्तार कर प्रेसिडेंसी जेल भेज दिया था. नेताजी अपनी गिरफ्तारी से नाराज होकर जेल में ही अनशन पर बैठ गए. इससे उनका स्वास्थ्य लगातार खराब होने लगा. तब तबीयत ठीक होने पर दोबारा गिरफ्तार किए जाने की शर्त पर नेताजी को रिहा किया गया. इसके बावजूद अंग्रेजों ने एल्गिन रोड स्थित नेताजी के आवास पर पहरा लगा दिया था. इस मामले की सुनवाई 27 जनवरी 1941 को होनी थी. नेताजी को भनक लग गयी थी कि इस मामले में सजा होने वाली है. नेताजी अंग्रेजी सिपाहियों की आंखों में धूल झोंक कर बंगाल की सीमा से भागने में सफल रहे. इससे अंग्रेजी हुकूमत के बीच खलबली मच गयी थी.


बंगाल से भागने के बाद नेताजी अपने भतीजे और परिवार के अन्य लोगों के साथ काले रंग की बेबी ऑस्ट्रीकन कार से गोमो पहुंचे थे. इसके बाद 17 जनवरी की रात गोमो स्टेशन से अगले पड़ाव के लिए रवाना हुए थे. यह यात्रा उनकी अंतिम यात्रा मानी जाती है. इसकी वजह है कि इस यात्रा के बाद नेताजी कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए और उनकी जिंदगी का शेष भाग कब, कहां और कैसे गुजरा, इस बात को लेकर तरह-तरह की चर्चा आज तक बनी हुई है.

देखें पूरी खबर

वर्ष 2009 में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने गोमो का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन किया. आज गोमो स्टेशन के सभी कार्यालयों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीरें लगी है. महानिष्क्रमण दिवस के मौके पर स्थानीय लोगों की ओर से कालका मेल के लोको पायलट के साथ साथ ट्रेन मैनेजर और स्टेशन प्रबंधक को सम्मानित किया. इसके साथ ही कालका मेल की सभी बोगियों में नेताजी की तस्वीर और महानिष्क्रमण यात्रा युक्त स्टिकर लगाई गई. इस अवसर पर गोमो दक्षिण प्रधान रवि सिंह, विद्यानंद यादव, धीरज कुमार, रमेश प्रसाद, हनी नारंग, राजेश पासवान, राहुल राय आदि मौजूद थे.

प्लेटफॉर्म संख्या एक और दो के बीच में स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हुए उन्हें याद किया. वहीं, गोमो के रहने वाली नेहा चौधरी ने गोमो स्टेशन पर नेताजी की पेंटिंग बनाई गई है, जिसमें उन्हें चादर लपेटे दिखाया गया है. नेहा चौधरी ने बताया कि टोपी पहने नेताजी की तस्वीर हर जगह देखती है. लेकिन चादर लपेटे तस्वीर बहुत कम देखने को मिलता है. स्थानीय शिक्षक राकेश कुमार सिन्हा ने बताया कि नेताजी के चरण गोमो में पड़ने से यहां की धरती पावन हो गई है. नेताजी हम सभी के रोम-रोम में बसे हैं.

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