धनबाद: सरसों तेल के दामों में इन दिनों बेतहाशा वृद्धि देखने को मिल रही है. अधिकतर घरों में उपयोग होने वाले सरसों के तेल ने किचेन का बजट बिगाड़ दिया है. आखिर इस कदर सरसों तेल के दाम अचानक से क्यों बढ़ गए, इसकी वजह जानने की कोशिश की ईटीवी भारत संवाददाता नरेंद्र निषाद ने. इस मामले में कृषि बाजार चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष सह स्टॉकिस्ट बिनोद कुमार गुप्ता ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है.
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बातचीत में विनोद कुमार गुप्ता ने बताया कि साल 2020 में कोरोना की पहली लहर के दौरान लोगों ने इम्युनिटी बढ़ाने के लिए सरसों के तेल का अधिक से अधिक उपयोग किया, जिसके कारण तेल की अत्यधिक खपत के साथ मांग भी बढ़ गई. सरसों तेल सरसों से ही तैयार किया जाता है. इसका उत्पादन साल में एक बार मार्च, अप्रैल और मई के महीने में ही हो पाता है. सामान्य दिनों में सरसों मई से मार्च तक चलता है, लेकिन कोरोना के कारण सरसों तेल की मांग बढ़ने से उत्पादित सरसों दिसंबर में ही खत्म हो गया.
कोरोना काल में सरसों तेल की बढ़ी डिमांड
सरसों की नई फसल आने में मार्च तक समय लग रहा था. दिसंबर, जनवरी और फरवरी के महीनों में सरसों की फसल अंतराल के कारण तेल मिल संचालकों में मिल चलाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. जब सरसों की नई फसल आयी, तो एमएसपी 45 रुपए होने के बावजूद 49 रुपये से खरीदारी शुरू की. आपसी प्रतिस्पर्धा में मिल संचालक इसे बढ़ाकर 77 से 78 रुपए लेकर चले गए. पिछले साल सरसों का उत्पादन कहीं अधिक है. लेकिन मांग बढ़ने के कारण मिल संचालकों में आपाधापी मच गई, जिससे सरसों तेल के दाम में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है. हालांकि उन्होंने कहा कि अब धीरे-धीरे दाम में कमी आने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. साथ ही कहा कि सरसों के उत्पादन में कुछ फीसदी की वृद्धि हुई है, लेकिन सरसों तेल की खपत यानी मांग पूर्व की अपेक्षा दोगुनी हो गई है. लोगों में सरसों तेल के इस्तेमाल को लेकर उत्सुकता बढ़ी है. पहले की तरह जो तेल के दाम थे, वो तो अब फिलहाल नहीं हो पाएंगे. लेकिन दाम में कुछ कमी जरूर आने की उम्मीद है.