धनबाद: झरिया इलाके के अग्नि प्रभावित क्षेत्रों से जरेडा के तहत बेलगड़िया में बसाए गए लोग लॉकडाउन लगने के बाद काफी परेशान हैं और रोजगार की तलाश में अपने टाउनशिप वाली बिल्डिंग को छोड़कर झरिया की झोपड़पट्टी में रहने को मजबूर हो गये है. ईटीवी भारत ने ग्राउंड जीरो में जाकर बेलगड़िया की जमीनी हकीकत को जानने का प्रयास किया, देखिए स्पेशल रिपोर्ट
जरेडा के तहत हुआ है बेलगड़िया टाउनशिप का निर्माण
बता दें कि झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार (जरेडा) के तहत झरिया में अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे लोगों को बेलगड़िया टाउनशिप में बसाया गया था, लेकिन वहां पर आज तक लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पाईं हैं.
खासकर लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है क्योंकि शहर से काफी दूर होने के कारण वहां पर रोजगार का कोई साधन नहीं है. यह लोग रोजगार के लिए अपने पुराने क्षेत्र झरिया ही जाते हैं लेकिन लॉकडाउन के बाद यहां रह रहे लोगों की स्थिति अत्यंत ही गंभीर हो गई है.
लॉकडाउन के बाद हालत खराब
वैश्विक महामारी कोरोना के कारण अचानक से लगाए गए लॉकडाउन के बाद यह लोग रोजगार के लिए झरिया भी नहीं जा पा रहे थे और बेलगड़िया में रोजगार का कोई साधन नहीं था.
यह लोग प्रत्येक दिन मजदूरी कर अपना भरण-पोषण करते हैं. ऐसे में लॉकडाउन के बाद यह जैसे-तैसे पैदल चलकर और कुछ लोग लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद झरिया आकर रहने लगे.
वहां झोपड़पट्टी में रहकर गुजारा कर रहे हैं. लोगों ने कहा कि यहां जैसे तैसे कोयला आदि बेचकर अपना गुजर चल जाता है लेकिन बेलगडिया में वह भी संभव नहीं है.
बेलगड़िया से वापस झोपड़पट्टी में रहने को मजबूर
बेलगड़िया से वापस झरिया आकर यह लोग जैसे-तैसे अपना गुजर-बसर झोपड़पट्टी में रहकर कर रहे हैं, लेकिन वहां से आने के बाद बेलगड़िया टाउनशिप में इनके मकानों के खिड़की दरवाजे सभी समान पर चोरों ने हाथ साफ कर लिया.
लोगों ने कहा कि बीच-बीच में 10-15 दिन में एक बार घर जाकर देख लेते थे लेकिन इस बार वहां जाने के बाद पता चला कि जो भी सामान घर पर रखा था उसके साथ-साथ खिड़की दरवाजे तक चोर चुराकर ले गए हैं. लोगों ने कहा कि एक तो रोजी-रोटी की समस्या है दूसरा जो भी सामान था वह भी चोरों ने चुरा लिया. ऐसे में अब जिंदगी भारी पड़ रही है.
किराया वृद्धि ने तोड़ी कमर
लोगों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान गाड़ियां भी नहीं चल रही थी और अब लॉकडाउन में छूट देने के बाद गाड़ियां अगर चल भी रही है तो 15 की जगह 70-80 रुपए एक तरफ का किराया लग रहा है.
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लोग किसी तरह 200 रुपया मजदूरी कर कमाते हैं अगर 200 रुपैया वह भाड़े में खर्च कर देंगे तो परिवार कहां से चलाएंगे. जिस कारण अब यह पहले की तरह बेलगड़िया से झरिया आना जाना भी नहीं कर पा रहे हैं और झरिया में ही रहने को मजबूर हो गए हैं.
लोगों ने कहा मकान नहीं रोजगार चाहिए
लोगों का कहना है कि सरकार हमें मकान ना देकर अगर रोजगार दे देती तो ज्यादा बेहतर होता है. हम लोग झोपड़पट्टी में भी रह लेते. मकान से ज्यादा रोजगार जरूरी है, लेकिन सरकार ने रोजगार के बारे में नहीं सोचा और मकान दे दिया. जब रोजगार ही नहीं तो उस जगह पर रह कर क्या करेंगे. भूखे पेट रहकर उस पक्के मकान में नींद भी नहीं होगी वैसे मकान का क्या करना?
सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित
जो लोग बेलगाड़िया टाउनशिप में रह रहे हैं वह भी सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित है. लोगों ने कहा कि आए दिन 10-20 की संख्या में रात में अपराधी पहुंच जाते हैं जिसका विरोध भी कर पाना संभव नहीं होता. सुरक्षा के नाम पर किसी तरह की कोई व्यवस्था यहां पर नहीं है. कभी-कभी दिखावे के लिए थाने की पेट्रोलिंग गाड़ी एक -आध बार किसी एक इलाके में चेहरा दिखा कर चली जाती है.
वही जब इस पूरे मामले में जरेड़ा प्रभारी बालकिशन मुंडा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जरेडा का कार्य टाउनशिप बनाकर प्रभावित लोगों को बसाना है. झरिया से प्रभावित लोगों को बेलगड़िया टाउनशिप में इसी के तहत बताया गया है. सुरक्षा, रोजगार इन सभी के बारे में जरेडा कुछ भी नहीं कर सकती. सुरक्षा की जिम्मेदारी लोगों की है और अगर चोरी की घटना हुई है तो पुलिस में इसका शिकायत दर्ज कराया जा सकती है.
अब सवाल यह उठता है कि अगर ऐसे टाउनशिप में रोजगार का कोई साधन ही नहीं होगा तो फिर लोग किस आधार पर टाउनशिप में रह पाएंगे. सरकार को इस ओर भी ध्यान देने की शायद जरूरत है.