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झारखंड के एकमात्र संक्रामक रोग अस्पताल के वार्डों में लटके ताले, जानें क्यों - धनबाद का संक्रामक रोग अस्पताल

कोरोना संक्रमण के इस दौर में जहां अस्पताल की कमी से अस्थाई अस्पताल बनाए जा रहे हैं. वहीं धनबाद में स्थित प्रदेश के एकमात्र संक्रामक रोग अस्पताल के वार्डों में ताले लटके हैं.1960 में बने इस अस्पताल में स्टाफ भी हैं, जिनकी मदद कोरोना काल में ली जा सकती है पर किसी की नजर नहीं जा रही है.

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Published : May 15, 2021, 2:04 PM IST

Updated : May 16, 2021, 10:21 AM IST

धनबाद: झारखंड का एक मात्र संक्रामक रोग अस्पताल आज सरकारी उदासीनता के कारण खुद ही संक्रमण का शिकार हो चुका है. पिछले कई सालों से यह बंद पड़ा हुआ है. साल 1950 में जिले के भौंरा इलाके में कॉलरा का संक्रमण फैला था. उस समय अविभाजित बिहार में इस अस्पताल की नींव रखी गई थी. संक्रमण के कारण करीब 250 से भी अधिक लोग काल के गाल में समा चुके थे. उस वक्त यह अस्पताल लोगों के लिए जीवनदायिनी साबित हुई थी लेकिन अफसोस अब यहां सिर्फ वीरानी है. कोरोना के संक्रमण काल में अब इस अस्पताल की फिर से शुरू करने की मांग उठने लगी है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

ये भी पढ़ें- धनबादः ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड की नहीं है कमी, डीसी बोले जिले में हैं पर्याप्त इंतजाम

संक्रामक रोग अस्पताल को फिर से शुरू करने की मांग

लोगों का कहना है कि इस अस्पताल को फिर शुरू करना चाहिए. लोगों ने सरकार से मांग की है. लोग कहते हैं कि कोरोना के संक्रमण काल मे यदि इसे फिर से शुरू कर दिया जाए तो संक्रमित मरीजों के लिए यह अस्पताल एक बार फिर से जीवनदायक साबित होगा.

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संक्रामक रोग अस्पताल


1960 में संक्रामक अस्पताल का उद्घाटन
साल 1960 में इस संक्रामक रोग अस्पताल का उद्घाटन किया गया था. 1950 में जिले के भौरा इलाके में कॉलरा जैसी बीमारी फैल रही थी. संक्रामक बीमारी से 250 से भी अधिक लोग काल के गाल में समा गए थे. उस वक्त इस अस्पताल की स्थापना नहीं हुई थी. कैंप लगाकर संक्रमित मरीजों का इलाज किया गया था. तब जाकर इस अस्पताल की स्थापना की गई और साल 1960 में इसका विधिवत उद्घाटन किया गया. उद्घाटन के बाद झारखंड के अन्य जिलों से संक्रमण के मरीज अस्पताल में इलाज कराने पहुंचते थे.

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20 सालों से बंद अस्पताल



अस्तित्व खोने की कगार पर
शुरुआत में झरिया माइंस बोर्ड की ओर से अस्पताल को संचालित किया जाता था. उस वक्त कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकारण नहीं हुआ था. बाद में माडा का गठन होने के बाद इसके संचालन का जिम्मा माडा के हाथों में आया. पिछले 20 सालों से यह अस्पताल बंद पड़ा है. 60 बेड वाले इस अस्पताल में कुल 36 स्टाफ और कई डॉक्टर तैनात रहते थे. अब भी यहां 4-5 स्टाफ पदस्थापित हैं लेकिन परिसर में वीरानी छाई है. वार्डों में ताले लटके हुए हैं. रख-रखाव के अभाव में धीरे-धीरे अब अपने अस्तित्व को खोने की कगार पर है.



मुख्यमंत्री से करेंगे आग्रह
झारखंड बनने के बाद कई सरकारें आईं और गई लेकिन किसी ने भी अस्पताल की सुध लेना मुनासिब नहीं समझा. कभी सिंदरी से बीजेपी के विधायक और माडा के अध्यक्ष रह चुके वर्तमान जेएमएम के नेता फूलचंद मंडल कहना है कि अस्पताल को शुरू कराने के लिए 21 फरवरी 2014 में उन्होंने विधानसभा में प्रश्न उठाया था. जिसमें जवाब दिया गया कि खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार(माडा) एक स्वासी संस्था है. यह संस्था अपने संसाधनों पर कार्य करती है. माडा के संचालन के लिए राज्यस्तर पर कोई वित्तीय सहायता नहीं प्रदान की जाती है. हालांकि उन्होंने कहा कि एक बार फिर से मुख्यमंत्री से इस ओर पहल करने की मांग करेंगे.

धनबाद: झारखंड का एक मात्र संक्रामक रोग अस्पताल आज सरकारी उदासीनता के कारण खुद ही संक्रमण का शिकार हो चुका है. पिछले कई सालों से यह बंद पड़ा हुआ है. साल 1950 में जिले के भौंरा इलाके में कॉलरा का संक्रमण फैला था. उस समय अविभाजित बिहार में इस अस्पताल की नींव रखी गई थी. संक्रमण के कारण करीब 250 से भी अधिक लोग काल के गाल में समा चुके थे. उस वक्त यह अस्पताल लोगों के लिए जीवनदायिनी साबित हुई थी लेकिन अफसोस अब यहां सिर्फ वीरानी है. कोरोना के संक्रमण काल में अब इस अस्पताल की फिर से शुरू करने की मांग उठने लगी है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

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संक्रामक रोग अस्पताल को फिर से शुरू करने की मांग

लोगों का कहना है कि इस अस्पताल को फिर शुरू करना चाहिए. लोगों ने सरकार से मांग की है. लोग कहते हैं कि कोरोना के संक्रमण काल मे यदि इसे फिर से शुरू कर दिया जाए तो संक्रमित मरीजों के लिए यह अस्पताल एक बार फिर से जीवनदायक साबित होगा.

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संक्रामक रोग अस्पताल


1960 में संक्रामक अस्पताल का उद्घाटन
साल 1960 में इस संक्रामक रोग अस्पताल का उद्घाटन किया गया था. 1950 में जिले के भौरा इलाके में कॉलरा जैसी बीमारी फैल रही थी. संक्रामक बीमारी से 250 से भी अधिक लोग काल के गाल में समा गए थे. उस वक्त इस अस्पताल की स्थापना नहीं हुई थी. कैंप लगाकर संक्रमित मरीजों का इलाज किया गया था. तब जाकर इस अस्पताल की स्थापना की गई और साल 1960 में इसका विधिवत उद्घाटन किया गया. उद्घाटन के बाद झारखंड के अन्य जिलों से संक्रमण के मरीज अस्पताल में इलाज कराने पहुंचते थे.

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20 सालों से बंद अस्पताल



अस्तित्व खोने की कगार पर
शुरुआत में झरिया माइंस बोर्ड की ओर से अस्पताल को संचालित किया जाता था. उस वक्त कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकारण नहीं हुआ था. बाद में माडा का गठन होने के बाद इसके संचालन का जिम्मा माडा के हाथों में आया. पिछले 20 सालों से यह अस्पताल बंद पड़ा है. 60 बेड वाले इस अस्पताल में कुल 36 स्टाफ और कई डॉक्टर तैनात रहते थे. अब भी यहां 4-5 स्टाफ पदस्थापित हैं लेकिन परिसर में वीरानी छाई है. वार्डों में ताले लटके हुए हैं. रख-रखाव के अभाव में धीरे-धीरे अब अपने अस्तित्व को खोने की कगार पर है.



मुख्यमंत्री से करेंगे आग्रह
झारखंड बनने के बाद कई सरकारें आईं और गई लेकिन किसी ने भी अस्पताल की सुध लेना मुनासिब नहीं समझा. कभी सिंदरी से बीजेपी के विधायक और माडा के अध्यक्ष रह चुके वर्तमान जेएमएम के नेता फूलचंद मंडल कहना है कि अस्पताल को शुरू कराने के लिए 21 फरवरी 2014 में उन्होंने विधानसभा में प्रश्न उठाया था. जिसमें जवाब दिया गया कि खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार(माडा) एक स्वासी संस्था है. यह संस्था अपने संसाधनों पर कार्य करती है. माडा के संचालन के लिए राज्यस्तर पर कोई वित्तीय सहायता नहीं प्रदान की जाती है. हालांकि उन्होंने कहा कि एक बार फिर से मुख्यमंत्री से इस ओर पहल करने की मांग करेंगे.

Last Updated : May 16, 2021, 10:21 AM IST
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