धनबादः बरबेंदिया पुल का असली गुनहगार कौन? 14 साल बीत गये लेकिन आज तक ये सवाल यहां की फिजाओं के साथ साथ सियासी गलियारों में भी गूंज रही है. 14 साल बीत गये, पुल के पिलर गिरने की जांच रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आ पाई. किसने खाया कमीशन या महकमे और आपसी सियासी टशन की भेंट चढ़ गया धनबाद के निरसा और जामताड़ा को जोड़ने वाला महत्वकांक्षी बरबेंदिया पुल.
धनबाद में सरकारी योजना में अनियमितता को लेकर ये बात जरूर सामने आ रही है कि आखिर 55 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली यह पुल पहली बारिश में ही नदी के पेट में कैसे समा गई. आइए उन सभी से परत दर परत पर्दा उठाते हैं. जामताड़ा और धनबाद को जोड़ने के उद्देश्य से बराकर नदी पर वर्ष 2007-2008 में करीब साढ़े तीन किलोमीटर लंबे पुल निर्माण कार्य शुरू हुआ. जिसकी प्राक्कलन राशि 55 करोड़ रुपये की थी. वर्ष 2008 में निर्माण के दौरान भारी बारिश में पुल के चार पिलर ढह गये. शासन प्रशासन ने कार्रवाई की और पुल बनाने वाली तत्कालीन कंपनी डालमिया एंड ग्रुप को सरकार ने ब्लैक लिस्ट कर दिया.
अधूरे पुल के पुनर्निर्माण को लेकर कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों और जनता द्वारा आंदोलन भी हुआ. लेकिन बात आगे नहीं बनी. आज भी पानी में ठूंठ की तरह अर्धनिर्मित पुल आसपास के लोगों को मुंह चिढ़ाते हुए नजर आ रहे हैं. मौजूदा हाल ऐसा है कि गांव के लोग खुद से बांस का पुल बनाकर बराकर नदी को पार कर रहे हैं. लेकिन बारिश में मामला और गंभीर हो जाता है और दोनों जिले के कई गांव एक-दूसरे बिल्कुल ही कट जाते हैं.
भाजपा और कांग्रेस में आरोप-प्रत्यारोपः बरबेंदिया को लेकर राजनीति खूब हो रही है. बीजेपी विधायक अपर्णा सेनगुप्ता ने कई बार विधानसभा सत्र के दौरान आवाज भी उठाई पर आज तक सरकार से सिर्फ आश्वासन ही मिला. जामताड़ा के कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी और निरसा के भाजपा विधायक अपर्णा सेन गुप्ता एक दूसरे खिलाफ आग उगल रहे हैं. पुल के अधूरे निर्माण का ठीकरा दोनों एक-दूसरे सिर फोड़ रहे हैं.
किसने खाया इंजीनियर और ठेकेदार से कमीशन? जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी ने निरसा के भाजपा विधायक अपर्णा सेनगुप्ता पर सीधा हमला बोला है. उनका आरोप है कि बरबेंदिया पुल कमीशनखोरी की वजह से टूटी. इरफान अंसारी के अनुसार पुल का पिलर टूटने के समय तत्कालीन निरसा विधायक अपर्णा सेन गुप्ता सरकार में मंत्री थीं. उनके कार्यकाल में इसका काम चल रहा था. अपर्णा सेनगुप्ता की अत्यधिक कमीशनखोरी की वजह से पुल की गुणवत्ता सही नहीं बन पाई और इसका नतीजा सबके सामने है.
आरोपों पर पलटवारः निरसा से भाजपा विधायक अपर्णा सेनगुप्ता ने जामताड़ा विधायक पर तंज कसा. उन्होंने कहा कि जिनकी गाड़ी में बोरे में भर भर के कमीशन का पैसा बरामद किया गया हो, वो दूसरों पर आरोप लगाएं और आदर्श शुचिता का पढ़ाएं तो ये बात अपने आप में काफी हास्यास्पद है. अपर्णा सेनगुप्ता ने चुनौती देते हुए यह भी कहा कि मौजूदा समय में उनकी गठबंधन की सरकार है इस बात का जांच कराकर सामने लाएं कि किसने कितना कमीशनखोरी की है और किस ऑफिसर ने किसको कितना कमीशन दिया है.
निरसा के पूर्व विधायक अरूप चटर्जी का कहना है कि पुल निर्माण में गुणवत्ता को ध्यान में नही रखा गया. सिर्फ अखबारों और मीडिया में बने रहने की होड़ एवं पुल का श्रेय लेने के कारण बरबेंदिया पुल भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई.
पहली बारिश में बिखर गया सपनों का पुल! एक सच्चाई ये है कि लोगों के सपनों का बरबेंदिया पुल पहली बारिश में कैसे ढह गई, इसकी हकीकत से आज भी लोग अनजान है. क्योंकि इसकी जांच रिपोर्ट आज तक सामने नहीं आई. कोई कहता है अफसरों और नेताओं की कमीशन कमीशन खोरी की भेंट चढ़ गई तो कोई कहता है ठेकेदार की मुनाफाखोरी के वजह से पुल निर्माण पूरा होने से पहले पुल के चार पिलर धंस गए.
एक सच्चाई यह भी है कि बरबेंदिया पुल निर्माण के दौरान गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया. इसके निर्माण के लिए जमकर घटिया सामग्री इस्तेमाल हुआ. नतीजा ये हुआ कि पुल के पिलर पहली बारिश भी नहीं झेल पाए, जनता के अरमान आंसुओं में बह गए. फिलहाल पुल टूटने की जांच 2008 से जारी है. संवेदक और इंजीनियर पर नाम मात्र की कार्रवाई की महज खानापूर्ति हुई.
पुल निर्माण कार्य में लगे डालमिया एंड ग्रुप को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया और तत्कालीन कार्यपालक अभियंता और छोटे कर्मियों पर गाज गिरी. कुछ दिन बाद सब ठीक हो गया और सभी अपनी अपनी नौकरी में वापस आ गए. भीषण कमीशनखोरी में शामिल अफसर साफ-साफ बच गए. अब तक पुल के अभाव में बाढ़ और नाव हादसे में कई लोगों की जान जा चुकी है. सपनों का पुल टूटने और दोबारा निर्माण कार्य शुरू ना होने से आम लोगों को गहरा धक्का लगा है. उनकी मांग है कि जांच रिपोर्ट सामने आए और पुल को पूरा किया जाए.
पुल से खुलते विकास के मार्गः बराकर नदी में बरबेंदिया पुल तय समय पर बन जाता तो झारखंड के 8 जिले सीधे तौर पर एक दूसरे से जुड़ जाते. निरसा से जामताड़ा की दूरी 40 किलोमीटर से घटकर महज 25 किलोमीटर रह जाती. इसके अलावा कोयलांचल धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, दुमका गोड्डा, संथाल परगना के जामताड़ा से सीधे जुड़ जाते. जिससे रोजगार भी बढ़ता, विशेषकर निरसा और जामताड़ा क्षेत्र का और विकास होता.
बरबेंदिया पुल होता तो ये ना होता! याद कीजिए 2022 में वो नाव हादसा, जिसमें 14 लोगों की डूबने से जान चली गई. उसके बाद भी सरकार नहीं जागी. 24 फरवरी 2022 को भयंकर बारिश और आंधी-तूफान में बराकर नदी में एक नाव हादसा हुआ. कुछ लोग किसी तरह तैरकर बाहर निकले तो कुछ लोगों को आसपास के ग्रामीणों ने बचाया. शाम के समय हादसा होने के कारण बच्चे, महिला एवं पुरुष कुल मिलाकर 14 लोगों की जान चली गई. इसके बावजूद भी धनबाद और जामताड़ा के प्रशासन ने सबक नहीं लिया है.
14 वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक जांच रिपोर्ट सामने नहीं आयी. अब तक किसी सरकार ने कुछ नहीं किया. जनता के पैसों को बेदर्दी से किसने पानी में बहाया? बरबेंदिया पुल का असली गुनहगार कौन?
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