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सरकारी नौकरी छोड़कर शुरू किया मछली पालन, आज लाखों की कर रहे कमाई - youths started indoor fisheries project in Deoghar

देवघर के दो युवा रवि कुमार और अमित कुमार मछली उत्पादन के क्षेत्र में एक नया इतिहास लिख रहे हैं. देवघर में शुरू इंडोर फिशरीज प्रोजेक्ट को अपनाकर ये दोनों युवा देवघर में मत्स्य पालन के लिए युवाओं के बीज आदर्श स्थापित कर रहे हैं.

इंडोर फिशरीज प्रोजेक्ट
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Published : Oct 19, 2019, 8:00 PM IST

देवघर: इजरायल, नॉर्वे, थाइलैंड, इंडोनेशिया, अमेरिका जैसे देशों में मछली उत्पादन के लिए किए जा रहे तकनीक इंडोर फिशरीज के प्रोजेक्ट की शुरुआत अब देवघर में भी हो गई है. देवघर में इस तकनीक की शुरुआत की है दो ऐसे युवकों ने जो पहले सरकारी नौकरी में थे. ये दो दोस्त हैं रवि कुमार और अमित कुमार. सरकारी नौकरी का लालच जहां युवा छोड़ नहीं पाते वहीं इन दोनों ने नौकरी छोड़ते हुए मछली पालन को स्वरोजगार के रूप में अपनाकर मिसाल कायम किया है.

देखें यह स्पेशल स्टोरी


क्या है इंडोर फिशरीज प्रोजेक्ट
बिना तालाब के सीमेंटेड टैंक में शेड के अंदर मछली उत्पादन की तकनीक को इंडोर फिशरीज तकनीक कहा जाता है. इस तकनीक से मछली उत्पादन में जहां पानी का इस्तेमाल कम होता है. वहीं, कम स्पेस में कम मेहनत से मछलियों का बड़ी संख्या में उत्पादन हो पाता है. इस तकनीक का उपयोग कर झारखंड में रिसर्क्यूलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम (आरएएस) के तहत फिड बेस्ड इंडोर फिशरीज की शुरुआत की गयी है.

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कम पानी में कैसे होता है उत्पादन
इंडोर फिशरीज तकनीक से मछली उत्पादन के लिए अधिक जगह अथवा तालाब की जरूरत नहीं होती है. जमीन के ऊपर शेड बनाया जाता है. शेड के अंदर सीमेंट के कई टैंक बनाये जाते हैं. टैंक में मछली पालन किया जाता है. वहीं, टैंक से निकले वेस्ट वाटर को फिल्टर कर पुन: उपयोग किया जाता है. मतलब पानी की कम से कम बर्बादी हो इसका खासा ख्याल रखा जाता है. ऐसे समय में जब पानी की समस्या से सभी जूझ रहे हैं वैसै समय में यह तकनीक महत्वपूर्ण हो गई है.


कम मेहनत में विकसित होंगी मछलियां
इंडोर फिशरीज तकनीक से मछली उत्पादन कर रहे अमित कुमार और रवि कुमार का कहना है कि यह तकनीक बहुत ही बेहतरीन है. इसमें कम समय मात्र 6 महीने में एक मछली का वजन लगभग 600-700 ग्राम हो जाएगा. वहीं इसमें सिर्फ मछलियों के भोजन का और टैंक का पानी गंदा न हो इसका ख्याल रखना होता है. कम स्पेस में ये दोस्त लगभग 50,000 मछलियों का उत्पादन कर रहे हैं. यह अपने आप में एक बड़ा लक्ष्य है.


राज्य सरकार ने शुरू की है योजना
इस तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देते हुए और लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए राज्य सरकार ने यह योजना शुरू की है. देवघर के साथ ही इस योजना की शुरुआत के लिए सरकार ने रांची, चाईबासा और कोडरमा में इस प्रोजेक्ट को स्वीकृत किया है. सरकार की योजना के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष के तहत दो प्रोजेक्ट सरकारी क्षेत्र और चार निजी क्षेत्र में लगाए जाएंगे.

ये भी पढ़ें: शिवपूजन मेहता से ईटीवी भारत की खास बातचीत, कहा- बसपा से नहीं मिला टिकट तो करेंगे विचार


सरकार देती है सहयोग
इंडोर फिशरीज के एक प्रोजेक्ट पर 50 लाख रुपये की लागत आती है. इसमें 20 लाख रुपये लाभुक को सरकार की तरफ से अनुदान मिलेगा, जबकि 30 लाख रुपये लाभुक को लगाना पड़ता है. वहीं 6 महीने में इस प्रोजेक्ट से लगभग 20 लाख से अधिक की कमाई होगी. यह कहना है मत्स्य पालक रवि और अमित कुमार का.


देवघर में फूले-फलेगा मत्स्य पालन का रोजगार
सरकारी नौकरी छोड़ जिस तरह इन युवाओं ने मत्स्य पालन को रोजगार के रूप में अपनाया है, उससे ये लोगों के लिए आदर्श बन गए हैं. उनके इस तकनीक के कारण एक ओर जहां मछली उत्पादन के लिए बड़े बाजार का निर्माण हो रहा है वहीं लोग इनके प्लांट में आकर इनसे सीखने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में इस नए तकनीक के प्रति युवाओं के उत्साह को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में देवघर में शुरू इंडोर फिशरीज का यह प्रोजेक्ट और भी फूले-फलेगा और युवा इसके प्रति ज्यादा से ज्यादा आकर्षित होंगे.

देवघर: इजरायल, नॉर्वे, थाइलैंड, इंडोनेशिया, अमेरिका जैसे देशों में मछली उत्पादन के लिए किए जा रहे तकनीक इंडोर फिशरीज के प्रोजेक्ट की शुरुआत अब देवघर में भी हो गई है. देवघर में इस तकनीक की शुरुआत की है दो ऐसे युवकों ने जो पहले सरकारी नौकरी में थे. ये दो दोस्त हैं रवि कुमार और अमित कुमार. सरकारी नौकरी का लालच जहां युवा छोड़ नहीं पाते वहीं इन दोनों ने नौकरी छोड़ते हुए मछली पालन को स्वरोजगार के रूप में अपनाकर मिसाल कायम किया है.

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क्या है इंडोर फिशरीज प्रोजेक्ट
बिना तालाब के सीमेंटेड टैंक में शेड के अंदर मछली उत्पादन की तकनीक को इंडोर फिशरीज तकनीक कहा जाता है. इस तकनीक से मछली उत्पादन में जहां पानी का इस्तेमाल कम होता है. वहीं, कम स्पेस में कम मेहनत से मछलियों का बड़ी संख्या में उत्पादन हो पाता है. इस तकनीक का उपयोग कर झारखंड में रिसर्क्यूलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम (आरएएस) के तहत फिड बेस्ड इंडोर फिशरीज की शुरुआत की गयी है.

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कम पानी में कैसे होता है उत्पादन
इंडोर फिशरीज तकनीक से मछली उत्पादन के लिए अधिक जगह अथवा तालाब की जरूरत नहीं होती है. जमीन के ऊपर शेड बनाया जाता है. शेड के अंदर सीमेंट के कई टैंक बनाये जाते हैं. टैंक में मछली पालन किया जाता है. वहीं, टैंक से निकले वेस्ट वाटर को फिल्टर कर पुन: उपयोग किया जाता है. मतलब पानी की कम से कम बर्बादी हो इसका खासा ख्याल रखा जाता है. ऐसे समय में जब पानी की समस्या से सभी जूझ रहे हैं वैसै समय में यह तकनीक महत्वपूर्ण हो गई है.


कम मेहनत में विकसित होंगी मछलियां
इंडोर फिशरीज तकनीक से मछली उत्पादन कर रहे अमित कुमार और रवि कुमार का कहना है कि यह तकनीक बहुत ही बेहतरीन है. इसमें कम समय मात्र 6 महीने में एक मछली का वजन लगभग 600-700 ग्राम हो जाएगा. वहीं इसमें सिर्फ मछलियों के भोजन का और टैंक का पानी गंदा न हो इसका ख्याल रखना होता है. कम स्पेस में ये दोस्त लगभग 50,000 मछलियों का उत्पादन कर रहे हैं. यह अपने आप में एक बड़ा लक्ष्य है.


राज्य सरकार ने शुरू की है योजना
इस तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देते हुए और लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए राज्य सरकार ने यह योजना शुरू की है. देवघर के साथ ही इस योजना की शुरुआत के लिए सरकार ने रांची, चाईबासा और कोडरमा में इस प्रोजेक्ट को स्वीकृत किया है. सरकार की योजना के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष के तहत दो प्रोजेक्ट सरकारी क्षेत्र और चार निजी क्षेत्र में लगाए जाएंगे.

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सरकार देती है सहयोग
इंडोर फिशरीज के एक प्रोजेक्ट पर 50 लाख रुपये की लागत आती है. इसमें 20 लाख रुपये लाभुक को सरकार की तरफ से अनुदान मिलेगा, जबकि 30 लाख रुपये लाभुक को लगाना पड़ता है. वहीं 6 महीने में इस प्रोजेक्ट से लगभग 20 लाख से अधिक की कमाई होगी. यह कहना है मत्स्य पालक रवि और अमित कुमार का.


देवघर में फूले-फलेगा मत्स्य पालन का रोजगार
सरकारी नौकरी छोड़ जिस तरह इन युवाओं ने मत्स्य पालन को रोजगार के रूप में अपनाया है, उससे ये लोगों के लिए आदर्श बन गए हैं. उनके इस तकनीक के कारण एक ओर जहां मछली उत्पादन के लिए बड़े बाजार का निर्माण हो रहा है वहीं लोग इनके प्लांट में आकर इनसे सीखने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में इस नए तकनीक के प्रति युवाओं के उत्साह को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में देवघर में शुरू इंडोर फिशरीज का यह प्रोजेक्ट और भी फूले-फलेगा और युवा इसके प्रति ज्यादा से ज्यादा आकर्षित होंगे.

Intro:देवघर युवाओं के सर चढ़कर बोल रहा है मछली पालन की नई तकनीक का जादू, RAS सिस्टम अपनाकर युवा बन रहे हैं लखपति।


Body:एंकर देवघर रोजगार के क्षेत्र में छाई मंदी और बेरोजगारी के इस दौर में अब युवा का रुझान खेती की तरफ बढ़ता जा रहा है। और नई तकनीक उनके जोश को लगातार दुगुना कर रहा है। ऐसी ही एक नज़ीर पेश की है देवघर जिले के जसीडीह स्थित कुमैठा के युवा मत्स्य पालक किसान रवि कुमार ओर अमित कुमार ने न सिर्फ सरकारी नोकरी को नकारा बल्कि, खुद का रोजगार खड़ा कर युवाओं के लिए एक आदर्श बन गए हैं। इतना ही नहीं, उनकी लगन और मेहनत को देखते हुए मत्स्य पालन बिभाग ने भी अपनी योजनाओं के ज़रिए अमित को भरपूर सहयोग दे रही है। आपको बता दें कि, अमित ने अपने आठ हजार वर्गफुट ज़मीन पर रेसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम के ज़रिए मछली पालन शुरू किया। ओर नई तकनीक के ज़रिए खेती करने का जज़्बा देखते हुए मत्स्य विभाग ने भी अमित को भरपूर सहयोग दिया और आज अमित अपने फार्म में साठ हजार मछली का पालन कर रहे हैं। अमित का कहना है कि, इस प्रोजेक्ट में करीब 50 लाख की लागत आती है और 30 से 35 लाख का मुनाफा होता है। इतना ही नहीं मत्स्य विभाग भी इस योजना के तहत युवाओं और नए मत्स्यपालकों को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी प्रदान करती है जिससे नए मछली पालक किसान भी इस नई तकनीक के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। ओर लगातार इनके इस नई तकनीक के जरिये मछली पालन की खेती को देखने दूर दूर से लोग आते है और इनसे सिख ले रहे है। और आज के तारीख में रवि ओर अमित मछली की खेती कर लोगो का प्रेरणा स्रोत बने हुए है।


Conclusion:बहरहाल, एक साल में दो फसल वाली इस तकनीक को जानने और अपनाने के लिए उत्सुक किसान दूर दराज से आकर दिलचस्पी दिखला रहे हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं है कि, मत्स्य विभाग ने इस योजना को धरातल पर बेशक एक बेहतरीन मिसाल पेश कर रही है। ओर देवघर जिले में यह पहला मछली खेती केज है। बाइट- प्रशांत कुमार दीपक,मत्स्य पदाधिकारी। बाइट- अमित कुमार, युवा मत्स्य पालक।
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