देवघर: प्रकृति पर्व करम की सोमवार के दिन देवघर घोरमारा, रिखिया, जमुनिया, चोपा, बीचगढ़ा , ताराबद , सरासनी, बंका सिरसा सहित पूरे इलाके में धूम रही. भादो महीने की शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन सुबह से ही कुंवारी लड़कियों ने व्रत रखकर संध्या में करम डाली स्थापित कर पूजा की. बहनों ने भाइयों के सुख समृद्धि और दीर्घायु व प्रकृति की पूजा करते हुए अच्छे फसल की कामना की. इसके साथ ही झूमर गीत गाते हुए नृत्य कर करम धर्म की कथा सुनाई गई.
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इस प्रकृति पर्व करम के अवसर पर शाम को कुंवारी बहनों के द्वारा करम का डाला स्थापित किया जाता है. बहनें अपने-अपने घरों से गीत गाते हुए बांस का डाला लेकर नदी या तालाब पहुंचती हैं. जहां वो स्नान कर नदियों से डाला में बालू लाकर सारी बहनें बैठती हैं. उसी दौरान डाला में विभिन्न तरह के बीजों के जौ को बुनती हैं. उक्त स्थान को गोबर में लीपकर शुद्ध किया जाता है. फिर बहनें सजी हुई टोकरी या थाली लेकर पूजा करने के लिए करम के चारों तरफ बैठ जाती हैं. यहां भाई-बहन का असीम प्यार दिखाई देता है. पूजा के दौरान कहानी में करमा और धरमा की कथा सुनाई जाती है. इस कथा का मुख्य उद्देश्य अच्छे कर्म करना रहता है.
इसके संबंध में तेजेंद्र सिंह कहते हैं कि काम कर अंग लागाय कन आर डहर चले संग लगाय कन. कहने का मतलब है कि कोई भी काम करो तो पूरा मन से करो और रास्ता पर चलो तो मित्र के साथ चलो. कथा का समापन होते ही सभी युवतियां करम डाली को गले लगाती हैं. उसके बाद रात भर नृत्य गीत चलता रहता है. यह पर्व भाई और बहनों के आपसी स्नेह और प्रेम का प्रतीक है. यह पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है. इसका इंतजार कुंवारी युवतियां और विवाहित महिलाएं बेसब्री से करती हैं. देवघर जिले के हर प्रखंड में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. पर्व के दौरान बहनें सात दिनों तक करमा गीत के साथ लोक नृत्य करती हैं. छठा दिन संजोत करती हैं, दूसरे दिन निर्जल उपवास किया जाता है, इसी दिन मुख्य पूजा आयोजित की जाती है. शाम को करम डाली लगाकर फल, फूल आदि से पूजा की जाती है. इस पूजा को नवविवाहित महिलाएं अपने मायके में करती हैं.