देवघर: बाबाधाम के प्रसाद की पहचान बन चुके यहां के पेड़े को अब पूरी दुनिया में पहचान मिलेगी. इसके लिए यहां के पेड़े की जीआई टैगिंग कराने की तैयारी जिला प्रशासन की तरफ से की जा रही है. सभी पेड़ा व्यवसाय से जुड़े लोगों के साथ बैठक कर जिला प्रशासन ने यह निर्णय लिया है.
उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री ने बताया कि बाबा नगरी का पेड़ा यहां के प्रसाद के रूप में काफी प्रसिद्ध है. इसके खास तरह के स्वाद के कारण भी लोग इसे काफी पसंद करते हैं. देवघर के पेड़े को अगर जीआई टैगिंग मिल जाती है तो पूरी दुनिया में इसे पहचान मिलेगी. इसके साथ ही पेड़ा व्यवसाय एक बड़े उद्योग के रूप में विकसित हो सकेगा. जिला प्रशासन की तरफ इसका एक प्रस्ताव सरकार के पास भेजा जा रहा है.
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कुछ पेड़ा कारोबारी असमंजस में
कोरोना काल में बड़ा नुकसान झेल चुके पेड़ा व्यवसायी जिला प्रशासन के इस निर्णय से काफी उत्साहित हैं. पेड़ा व्यवसायी संघ के अध्यक्ष हनुमान केसरी का कहना है कि पेड़ा का कारोबार करने वालों के लिए खुशी की बात है. कुछ पेड़ा व्यवसायी को जीआई टैगिंग के बारे में जानकारी नहीं है. इसी वजह से वे असमंजस में हैं. देवघर के पेड़े को अगर जीआई टैगिंग मिलती है तो यह पूरी दुनिया में मशहूर हो जाएगा.
क्या होता है जीआई(GI) टैग ?
जीआई मतलब ज्योग्रफिकल इंडिकेटर. किसी भी खास वस्तु को लेकर उसके ज्योग्राफी को इंडिकेट करता है. जैसे रसगुल्ला-यह पश्चिम बंगाल और ओडिशा की प्रसिद्ध मिठाई है. कई और भी सामान किसी खास क्षेत्र में प्रसिद्ध होता है, लेकिन यह जरूरी नहीं उसे जीआई टैग मिला हो. जीआई टैग लेने के लिए चेन्नई में जीआई के हेड ऑफिस में अप्लाई करना होता है. जीआई टैग लेने के लिए सरकारी स्तर पर अप्लाई किया जाता है और उस वस्तु से जुड़ी ऐतिहासिक सबूत देने होते हैं. किसी एक वस्तु के लिए दो जगह के लोग जीआई टैग के लिए अप्लाई करते हैं तो जिस जगह पर वस्तु ज्यादा ऐतिहासिक होगी उसे जीआई टैग मिलेगा. यह टैग एक से ज्यादा जगह को भी मिल सकता है. उदाहरण के लिए रसगुल्ला. लेकिन, उसके वस्तु के साथ उस जगह का भी नाम जोड़ दिया जाता है.
देवघर में हर साल 10 करोड़ से ज्यादा का पेड़ा कारोबार
बाबा नगरी देवघर में पेड़े की करीब तीन हजार से ज्यादा दुकानें हैं. एक अनुमान के मुताबिक यहां एक साल में पेड़े का 10 करोड़ से अधिक का कारोबार होता है. सावन महीने में लाखों लोग बाबा वैद्यनाथ को जल चढ़ाने पहुंचते हैं. इस एक महीने में पेड़ा कारोबारियों की चांदी रहती है. पेड़ा कारोबारियों के मुताबिक साल का आधे से ज्यादा कारोबार सिर्फ सावन में ही हो जाता है. ऐसे में जीआई टैगिंग बढ़ने से न सिर्फ देवघर के पेड़े को अलग पहचान मिलेगी बल्कि यहां के कारोबारियों को भी बहुत फायदा होगा.