देवघर: जिला में एक तरफ जहां शिवरात्रि की धूम है. वहीं, दूसरी ओर शिव बारात को लेकर जबरदस्त उत्साह है. देवघर को परंपराओं का शहर कहा जाता है. यहां के रीति रिवाज दूसरे शहरों से अलग हैं.
बाबा मंदिर में एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है. शिवरात्रि के दिन बाबा भोले पर मोर मुकुट चढ़ाया जाता है. जिसे आम बोल चाल की भाषा में शादी में प्रयोग आने वाला सेहरा कहा जाता है. बाबा पर मोर मुकुट चढ़ाने की बहुत प्राचीन परंपरा रही है. कन्याओं की शादी की मन्नत पूरी करने के लिए बाबा पर मोर मुकुट चढ़ाया जाता है.
वहीं, जब मनोकामना पूरी हो जाती है या नई-नई शादी होती है तो बाबा को मुकुट चढ़ाने की परंपरा है. ऐसे में शिवरात्रि के दिन मोर मुकुट की डिमांड काफी रहती है. देवघर से 7 किलोमीटर दूर बसा रोहिणी ग्राम में इस मोर मुकुट के लिए प्रसिद्ध है. रोहिणी घटवाल बाबा भोले पर मुकुट चढ़ाते है, जिसे यहां के स्थानीय मालाकार बनाते हैं.
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रोहिणी को देवघर शहर का सबसे पुराना गांव माना जाता है और आज भी यहां पर कई मालाकार परिवार इस परंपरा को निभाते हैं. आज भी यहां कागज और बांस के सहारे मोर मुकुट बनाए जाते हैं. सबसे बड़ा मुकुट बाबा भोले के लिए होता है और छोटे-छोटे मुकुट आम लोगों के लिए होता है. जिसे खरीद कर बाबा के सिर पर मुकुट चढ़ाने की भी परंपरा रही है.
बाबा मंदिर की सबसे पुरानी परंपरा है मोर मुकुट चढ़ाने की जो आज भी रोहिणी ग्राम में जिंदा है. बहरहाल, रोहिणी ग्राम में बने बाबा भोले के लिए यह मोर मुकुट शिवरात्रि के दिन पूरी विधि विधान के साथ डाला में सजा कर भेजा जाता है, जिसकी तैयारी मालाकार परिवार ने कर ली है.