चतरा: एक तरफ जहां देश में डिजिटल इंडिया की बात की जा रही. वहीं दूसरी ओर चतरा जिले के सिमरिया अनुमंडल का नावाडीह गांव बुनियादी सुविधाओं से आज भी वंचित है. अनुसूचित जाति बहुल इस गांव में विकास की किरण अब तक नहीं पहुंच पाई है. अनुसूचित जाति के इस गांव में बिजली और अन्य सुविधाओं की बात तो दूर, इस गांव तक पहुंचने के लिए एक रास्ता भी नहीं है.
जिला मुख्यालय से सिर्फ 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव की हालत यह है कि यहां न तो स्कूल है और न ही आंगनबाड़ी केंद्र जैसी कोई अन्य सुविधा. गांव में एक भी स्कूल नहीं होने के कारण बच्चे पढ़ाई के लिए लंबी दूरी तय कर विद्यालय जाते हैं. गांव तक पहुंचने के लिए एक सड़क तक नहीं है. जिस इस कारण अधिकारी और पदाधिकारी भी गांव तक नहीं पहुंच पाते हैं.
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लालटेन की रोशनी में पढ़ाई
आजादी के बाद भी गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंच सकी है. इन ग्रामीणों का दुर्भाग्य है कि डिजिटल इंडिया के जमाने में रहकर घर में बिजली नहीं पहुंची. बच्चे लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करने को मजबूर हैं. इससे सरकार की पोल भी खुल रही है. शाम होते ही गांव में सन्नाटा पसर जाता है. गांव की महिलाएं बताती हैं कि चिमनी और लालटेन के सहारे जीवन यापन करना अब मुश्किल हो गया है. गर्मी और बारिश में बहुत दिक्कत होती है.
नहीं मिल रहा पोषाहार योजना का लाभ
गांव में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं होने के कारण यहां के बच्चों को सरकार की ओर से उपलब्ध कराए जाने वाले पोषाहार योजना का लाभ भी नहीं मिल पाता. इस कारण गांव के बच्चे भी कुपोषण का शिकार हो रहे हैं. यहां के ग्रामीण खेती के अलावा पत्थर तोड़कर अपना जीवन यापन करते हैं. उनका कहना है कि सरकार की ओर से भले ही कागजों पर उनके लिए तमाम प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हो, लेकिन सच्चाई यह है कि अनुसूचित जातियों को धरातल पर इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.