सिमरिया, चतरा: जिले के नक्सल प्रभावित सिमरिया प्रखंड अंतर्गत पारटांड़ गांव के लोग उसी घाट से पीने का पानी भरते हैं, जहां मवेशी आकर पानी पीते हैं. यहां एक ही घाट पर जानवरों के पानी पीने और महिलाओं के पानी भरने की तस्वीरें विकास के दावों को मुंह चिढ़ाती नजर आती हैं. अनुसूचित जनजाति बहुल इस गांव के लोग जल संकट की समस्या से जूझ रहे हैं. स्थिति यह है कि यहां के लोग प्रशासनिक उपेक्षा के कारण जंगल से निकलने वाली नदी और नाले के दूषित पानी पीने को मजबूर हैं.
मवेशी और इंसान एक साथ बुझाते हैं प्यास
ग्रामीणों के अनुसार, गांव में दिखावे के लिए एक जलमीनार और एक हैंडपंप है भी तो विगत पांच वर्षों से खराब पड़ा है. बावजूद अबतक किसी भी सरकारी रहनुमाओं की नजर इस गांव पर नहीं पड़ी है, जिसके कारण रोजाना गांव के पास वाले नदी से निकलने वाले नाले का गंदा पानी ले जाने को यहां के ग्रामीण मजबूर हैं. इसी घाट पर आवारा कुत्ते, गाय और बकरियां भी इन ग्रामीणों के साथ अपनी प्यास बुझा रहे हैं.
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24 घंटे के अंदर समस्या के समाधान का भरोसा
पंचायत की मुखिया और जनप्रतिनिधि भी इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं. इस गांव की हालत देखने के बाद जब ईटीवी भारत की टीम ने पंचायत की मुखिया मुक्ता पांडेय से कारण पूछा तो उन्होंने पहले तो जानकारी नहीं होने की बात कही. इसके बाद गांव में पेयजल की व्यवस्था 24 घंटे के अंदर करने का भरोसा दिया है.