चतरा : गंभीर बीमारियों का उपचार कर लोगों को जीवन दान देने वाला जिले का स्वास्थ्य महकमा इन दिनों सदमे के दौर से गुजर रहा है. यूं कहें तो यहां धरती के भगवान तो हैं लेकिन इनके करतूतों के कारण ही आज विभाग अंतिम सांसे गिन रहा है. ऐसा नहीं है कि यहां संसाधनों की कमी है. कमी है तो सिर्फ और सिर्फ महानुभावों की दृढ़ इच्छाशक्ति की.
मजे की बात तो यह है कि जिले के प्रभारी मंत्री स्वास्थ्य मंत्री ही हैं इसके बावजूद अपने लालफीताशाही रवैया से गरीब और असहाय लोगों की जान से खिलवाड़ करने वाले ये धरती के भगवान, ना तो अपने आकाओं की सुनते हैं और ना ही तंत्र की. ऐसे में उनके नीतियों का कोप भाजन जिले के आम जनमानस को जान गंवाकर भुगतना पड़ रहा है.
चतरा अनुमंडल अस्पताल को सदर अस्पताल का दर्जा प्राप्त है. इसके सफल संचालन के साथ-साथ आम जनमानस के स्वास्थ सुविधाओं को निरंतर प्रगतिशील बनाए रखने के लिए महकमा प्रतिमाह लाखों करोड़ों रुपए खर्च भी करते हैं. इतना ही नहीं सरकार ने धरती के भगवान कहे जाने वाले चिकित्सकों को भी यहां पदस्थापित किया गया है जिससे जरूरतमंदों को उचित समय पर उपचार मिलने के साथ-साथ जीवनदान भी मिल सके. लेकिन सरकारी रहनुमा ही आज तंत्र के उद्देश्यों पर पानी फेरने पर तुले हैं. यूं कहे तो अस्पताल है, संसाधन भी है लेकिन यहां पदस्थापित डॉक्टरों में मानवीय संवेदना नही है.
जिला मुख्यालय से फरार रहते हैं चिकित्सक
सदर अस्पताल की स्थिति यह है कि स्वास्थ्य व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए यहां 7 चिकित्सक पदस्थापित किए गए हैं. लेकिन दो-तीन चिकित्सकों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी बगैर इजाजत जिला मुख्यालय से बाहर रहते हैं. ऐसे में जिले में अगर कोई अप्रिय घटना घटती है तो जरूरतमंदों की जिंदगी ऊपर वाले के भरोसे ही रह जाती है ना तो यहां आपात स्थिति में मरीजों को धरती के भगवान दर्शन देते हैं और ना ही अन्य सरकारी रहनुमा.
नियमों की अनदेखी कर मुख्यालय से रहते हैं फरार
स्वास्थ्य विभाग में सदर अस्पताल में डॉ. राजीव रंजन, डॉ. संजय सिद्धार्थ, डॉ. विजय कुमार, डॉ वीरेंद्र कुमार, डॉ. ई सोरेन, डॉ प्रवीण कुमार और डॉ. एसएन सिंह के अलावा एक अन्य महिला चिकित्सक को पदस्थापित कर दिया है. इसमें महिला चिकित्सक लंबे समय से छुट्टी पर है. जबकि डॉ विजय कुमार को सदर अस्पताल का उपाध्यक्ष बनाया गया है.
नियम के मुताबिक सदर अस्पताल में पदस्थापित चिकित्सकों को प्रत्येक दिन ड्यूटी करना है और आपात स्थिति को देखते हुए सदर अस्पताल से 8km की परिधि में रहना है. ताकि आपातकालीन सूचना पर तत्परता दिखाते हुए सभी चिकित्सक सदर अस्पताल में मौजूद रह सकें. लेकिन यहां पदस्थापित डॉ.एसएन सिंह और डॉ. प्रवीण कुमार को छोड़ दिया जाए तो सभी अन्य चिकित्सक सरकार के नियमों और सिविल सर्जन के आदेशों को टालते हुए आपसी सामंजस्य बनाकर बगैर इजाजत जिला मुख्यालय से फरार हो जाते हैं.
विभिन्न जिलों में करते हैं निजी नर्सिंग होम का संचालन
जानकारी के अनुसार बगैर इजाजत सरकार के नियमों और सिविल सर्जन के निर्देशों को टाल कर डॉक्टर राजीव रंजन जिला मुख्यालय से फरार रहकर हजारीबाग के नवाबगंज रोड में निजी क्लीनिक का संचालन करते हैं. इसके अलावा डॉक्टर संजय सिद्धार्थ (गया), डॉक्टर विजय कुमार (डालटेनगंज), डॉ वीरेंद्र कुमार (गढ़वा) और डॉक्टर ई सोरेन (जमशेदपुर) में निजी प्रैक्टिस करते हैं.
एक दिन में बनाते हैं सप्ताह भर की हाजिरी
मजे की बात तो यह है कि ड्यूटी से फरार रहने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों पर नकेल कसने को लेकर सरकार ने बायोमैट्रिक सिस्टम लागू कर रखा है. लेकिन सदर अस्पताल में पदस्थापित डॉक्टर सिस्टम को ही चुनौती देने पर तुले हैं. एक दिन ड्यूटी करके सप्ताह भर गायब रहने वाले यह चिकित्सक मजे से पूरे सप्ताह की हाजिरी ऑफलाइन बना लेते हैं. सब कुछ जानने के बाद भी ना तो लापरवाह डॉक्टरों का अटेंडेंस काटा जाता है और ना ही महीने का वेतन.
बायोमैट्रिक सिस्टम प्रभावी करने का निर्देश
चिकित्सकों के फरार रहने के मामले को उपायुक्त जितेंद्र कुमार सिंह ने गंभीरता से लिया है. उन्होंने सिविल सर्जन को बायोमैट्रिक सिस्टम प्रभावी करने का निर्देश दिया है. साथ ही अस्पतालों से गायब रहने वाले चिकित्सकों पर कठोर कार्रवाई की भी बात कही है
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इसके अलावा डीसी ने कहा है कि आम लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन ने डीएमएफटी योजना के तहत जिले में सात नए चिकित्सकों की बहाली की है और कहा कि आम लोगों के जान से खिलवाड़ किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा, लापरवाही बरतने वाले चिकित्सकों पर कार्रवाई की जायागी.