चतरा: जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर प्रतापपुर प्रखंड का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जहां रोजाना सैकड़ों गरीब लोग इलाज कराने पहुंचते हैं, लेकिन स्वास्थ्य केंद्र का भवन काफी जर्जर हो चुका है. स्थिति यह है कि गरीब मरीजों की जान बचाने वाले स्वास्थ्यकर्मियों और डॉक्टरों की सांसे हमेशा अटकी रहती है.
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झारखंड और बिहार की सीमा पर स्थित सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की व्यवस्था दयनीय है. कुछ दिन पहले अस्पताल का एक हिस्सा अचानक गिर गया, जिसमें कई स्वास्थ्य कर्मी घायल हो गए. इतना ही नहीं, सात स्वास्थ्यकर्मियों की जान मुश्किल से बची. इसके बावजूद अस्पताल में कार्यरत स्वास्थ्यकर्मी और डॉक्टर मौत के साए में लोगों को चिकित्सीय सुविधा मुहैया करा रहे हैं.
कभी नहीं किया गया मरम्मत कार्य
स्वस्थकर्मी कहते हैं कि सरकारी अस्पताल का भवन काफी जर्जर है. करीब 30 वर्ष पहले अस्पताल का भवन बना. इसके बाद से अब तक ना कभी मेंटेनेंस का काम किया गया और ना ही सही से देखभाल. उन्होंने कहा कि अस्पताल की छत से कभी कभार प्लास्टर गिर जाता है. बारिश होने पर और नारकीय स्थिति हो जाती है. उन्होंने बताया कि प्रत्येक कमरे में बारिश का पानी टपकता रहता है. इसके बावजूद मरीजों के इलाज करते हैं.
सरकार को कई बार लिखा गया है पत्र
कोरोना संक्रमण के दौरान संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ गई. मरीजों की संख्या बढ़ने के बावजूद इसी जर्जर भवन में इलाज किया गया. अस्पताल के डॉक्टर ने बताया कि राज्य सरकार को कई बार भवन सौंदर्यीकरण को लेकर पत्र लिखा गया है, लेकिन अभी तक राज्य सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है. उन्होंने कहा कि जर्जर छत कभी भी गिर सकती है. इसके बावजूद उसे दुरुस्त नहीं किया जा रहा है. स्थानीय लोगों ने बताया कि इस अस्पताल में प्रतापपुर प्रखंड के साथ-साथ कुंदा और बिहार के दर्जनों गांव के लोग इलाज कराने पहुंचते हैं, लेकिन अस्पताल में सुविधाओं के साथ-साथ भवन की स्थिति नारकीय बनी है.