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'बागी' रामटहल तेवर से बीजेपी को हो सकता है नुकसान, कांग्रेस को है फायदे की उम्मीद - Sanjay Seth

राजधानी रांची संसदीय सीट पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता रामटहल चौधरी के बगावती तेवर पार्टी के लिए घातक साबित हो सकती है. वहीं इस बार पार्टी ने संजय सेठ को मैदान में उतारा है.

रामटहल तेवर से बीजेपी को हो सकता है नुकसान
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Published : Apr 8, 2019, 4:40 PM IST

रांची: राजधानी रांची संसदीय सीट पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता रामटहल चौधरी के बगावती तेवर पार्टी के लिए घातक साबित हो सकती है. दरअसल, बीजेपी ने इस बार उनके बजाए झारखंड खादी ग्राम उद्योग बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ को मैदान में उतारा है.


रांची संसदीय सीट के भूगोल के हिसाब से इसके अंतर्गत सिल्ली, खिजरी, हटिया, कांके और रांची विधानसभा सीट रांची जिले में पड़ता है. जबकि सराइकेला खरसावां का ईचागढ़ विधानसभा इलाका भी इसी में आता है. इन छह में से 5 विधानसभा इलाके पर बीजेपी का कब्जा है.
अगर जातिगत समीकरण की बात करें तो इन इलाकों में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है. खासकर उसमें कुर्मी जाति के वोटर एक तरीके से डिसाइडिंग फैक्टर भी होते हैं. हालांकि रामटहल इन कुर्मी जाति के वोटरों के नेता माने जाते हैं. जिसकी बदौलत वह अब तक 5 बार इस पार्लियामेंट सीट से एमपी बनते रहे हैं. वहीं इस बार पार्टी ने संजय सेठ को मैदान में उतारा है.

रामटहल तेवर से बीजेपी को हो सकता है नुकसान

पार्टी सूत्रों के अनुसार सेठ की पकड़ ग्रामीण इलाकों में उतनी नहीं है और उन्हें इस बाबत पार्टी के कैडर के सहारे हैं. वहीं, दूसरी तरफ रामटहल चौधरी ग्रामीण इलाकों पर अच्छी पकड़ रखते हैं और कैडर का भी उनको सहयोग मिलता रहा है. हालांकि रामटहल चौधरी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे और 17 अप्रैल को अपना नामांकन भी दाखिल करेंगे.

जानकारी के अनुसार रामटहल चौधरी अगर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भी खड़े होते हैं तो वह कहीं ना कहीं सीधे तौर पर बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं. और कहीं ना कहीं इसका असर सुबोधकांत सहाय को दिखने लगा है.

रांची: राजधानी रांची संसदीय सीट पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता रामटहल चौधरी के बगावती तेवर पार्टी के लिए घातक साबित हो सकती है. दरअसल, बीजेपी ने इस बार उनके बजाए झारखंड खादी ग्राम उद्योग बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ को मैदान में उतारा है.


रांची संसदीय सीट के भूगोल के हिसाब से इसके अंतर्गत सिल्ली, खिजरी, हटिया, कांके और रांची विधानसभा सीट रांची जिले में पड़ता है. जबकि सराइकेला खरसावां का ईचागढ़ विधानसभा इलाका भी इसी में आता है. इन छह में से 5 विधानसभा इलाके पर बीजेपी का कब्जा है.
अगर जातिगत समीकरण की बात करें तो इन इलाकों में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है. खासकर उसमें कुर्मी जाति के वोटर एक तरीके से डिसाइडिंग फैक्टर भी होते हैं. हालांकि रामटहल इन कुर्मी जाति के वोटरों के नेता माने जाते हैं. जिसकी बदौलत वह अब तक 5 बार इस पार्लियामेंट सीट से एमपी बनते रहे हैं. वहीं इस बार पार्टी ने संजय सेठ को मैदान में उतारा है.

रामटहल तेवर से बीजेपी को हो सकता है नुकसान

पार्टी सूत्रों के अनुसार सेठ की पकड़ ग्रामीण इलाकों में उतनी नहीं है और उन्हें इस बाबत पार्टी के कैडर के सहारे हैं. वहीं, दूसरी तरफ रामटहल चौधरी ग्रामीण इलाकों पर अच्छी पकड़ रखते हैं और कैडर का भी उनको सहयोग मिलता रहा है. हालांकि रामटहल चौधरी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे और 17 अप्रैल को अपना नामांकन भी दाखिल करेंगे.

जानकारी के अनुसार रामटहल चौधरी अगर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भी खड़े होते हैं तो वह कहीं ना कहीं सीधे तौर पर बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं. और कहीं ना कहीं इसका असर सुबोधकांत सहाय को दिखने लगा है.

Intro:रांची। राजधानी रांची संसदीय सीट पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता और 5 टर्म तक सांसद रहे निवर्तमान एमपी रामटहल चौधरी के बगावती तेवर पार्टी के लिए घातक साबित हो सकते हैं। दरअसल बीजेपी ने इस बार उनके बजाए झारखंड खादी ग्राम उद्योग बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ को मैदान में उतारा है। चौधरी का टिकट इसलिए कट गया क्योंकि पार्टी नीतियों के आधार पर वह 75 साल की दहलीज पार कर गए थे। हालांकि उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वह निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे और 17 अप्रैल को अपना नामांकन भी दाखिल करेंगे।


Body:रांची संसदीय सीट के भूगोल के हिसाब से इसके अंतर्गत सिल्ली, खिजरी, हटिया, कांके और रांची विधानसभा सीट रांची जिले में पड़ती है। जबकि सराइकेला खरसावां का ईचागढ़ विधानसभा इलाका भी इसी में आता है। इन छह में से 5 विधानसभा इलाके पर बीजेपी का कब्जा है।
जातिगत समीकरण की बात करें तो इन इलाकों में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है। खासकर उसमें कुर्मी जाति के वोटर एक तरीके से डिसाइडिंग फैक्टर भी होते हैं। सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना 2011 की रिपोर्ट के अनुसार रांची में 10.54 लाख ओबीसी आबादी है। जबकि सरायकेला में यह 10.65 लाख है। हालांकि रामटहल इन कुर्मी जाति के वोटरों के नेता माने जाते हैं। जिसकी बदौलत वह अब तक 5 बार इस पार्लियामेंट सीट से एमपी बनते रहे हैं। वही इस बार पार्टी ने संजय सेठ को मैदान में उतारा है। पार्टी सूत्रों के अनुसार सेठ की पकड़ ग्रामीण इलाकों में उतनी नहीं है और उन्हें इस बाबत पार्टी के कैडर के सहारे हैं। वहीं दूसरी तरफ रामटहल चौधरी ग्रामीण इलाकों पर अच्छी पकड़ रखते हैं और कैडर का भी उनको सहयोग मिलता रहा है।


Conclusion:महागठबंधन के उम्मीदवार सुबोध कांत सहाय फिलहाल ग्रामीण इलाकों पर अपने पकड़ बनाने के लिए दिन रात प्रयास कर रहे हैं। दूसरी तरफ उन्हें कांग्रेस के परंपरागत वोटरो पर भी भरोसा है। जानकारी के अनुसार रामटहल चौधरी अगर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भी खड़े होते हैं तो वह कहीं ना कहीं सीधे तौर पर बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
ऐसे में रांची से दिल्ली का सुबोध कांत सहाय की यात्रा थोड़ी आसान हो जाएगी। इस बार सबकी निगाहें रामटहल चौधरी के ऊपर टिकी हैं कि उनका अगला कदम क्या होगा।
हालांकि पार्टी अंदर खाने मिली जानकारी के अनुसार पूरी तरह यह कोशिश की जा रही है कि निवर्तमान सांसद बीजेपी के उम्मीदवार संजय सेठ के साथ प्रचार करें ताकि कुर्मी वोटों के बिखराव को रोका जा सके।
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