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दुमका सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए अपने पिता के पुराने हथियार चला रहे हैं हेमंत!

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Published : May 16, 2019, 8:34 PM IST

दुमका सीट को जीतने के लिए भाजपा, शिबू सोरेन परिवार पर लगातार निशाना साध रही है. इस परिवार को आदिवासियों का दुश्मन बताया जा रहा है. हेमंत सोरेन संथाली भाषा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को गुजराती नटवरलाल, जमीन हड़पने वाला, दीकू यानी बाहरी, महाझूठा, बहरूपिया, सेठ का दलाल और महाजन बता कर उनके झांसे में नहीं आने की अपील कर रहे हैं.

हेमंत सोरेन

रांची: झामुमो का चुनाव चिन्ह तीर धनुष है और यह आदिवासियों का पारंपरिक हथियार भी होता है, लेकिन यहां पारंपरिक हथियारों के इस्तेमाल का मतलब उन शब्दों से है जो यहां के लोगों के जेहन में कई पीढ़ियों से घर जमाए बैठा है.

राजनीति के जानकारों का मानना है कि उपराजधानी दुमका की लोकसभा सीट पर हार जीत राज्य सरकार के भविष्य पर असर डालती है. यही वजह है कि दोनों पार्टियां संथाल कि दुमका सीट को जीतने और बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं. झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन बखूबी समझते हैं कि अगर दुमका सीट पर पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन यानी गुरु जी की हार हो गई तो पार्टी के मनोबल पर जबरदस्त असर पड़ेगा और इसका प्रभाव इसी साल कुछ माह बाद होने वाले विधान सभा चुनाव के नतीजों पर दिख सकता है.

ये भी पढ़ें- 75 की उम्र में भी शिबू की शख्सियत नहीं हुई है फीकी, आज भी किसी को दे सकते हैं मात

दुमका सीट को जीतने के लिए भाजपा, शिबू सोरेन परिवार पर लगातार निशाना साध रही है. इस परिवार को आदिवासियों का दुश्मन बताया जा रहा है. यह बताने की कोशिश हो रही है कि शिबू सोरेन के परिवार ने ही सबसे ज्यादा आदिवासियों की जमीन हड़पी है. यह भी मुद्दा बनाया जा रहा है कि लंबे समय से सांसद रहने के बावजूद शिबू सोरेन ने अपने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया. उन्होंने अपने क्षेत्र के मसले को भी संसद में नहीं उठाया.

राजनीति के जानकारों के मुताबिक झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन भाजपा की इस मंशा को बखूबी समझ रहे हैं. एक तरफ देश की सबसे मजबूत राष्ट्रीय पार्टी और उसके दिग्गज नेताओं के चुनावी हमलों को काटने के लिए हेमंत सोरेन पारंपरिक शब्दों के तीर चला रहे हैं.

क्या हैं हेमंत सोरेन के चुनावी हथियार
संथाल की चुनावी सभाओं में हेमंत सोरेन उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिनको लेकर सिद्धो-कान्हो ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था और बाद के दौर में उन्ही शब्दों के जरिए शिबू सोरेन संथालियों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे थे. लिहाजा, हेमंत सोरेन संथाली भाषा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को गुजराती नटवरलाल, जमीन हड़पने वाला, दीकू यानी बाहरी, महाझूठा, बहरूपिया, सेठ का दलाल और महाजन बता कर उनके झांसे में नहीं आने की अपील कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- राजमहल पहुंचे बाबुल सुप्रीयो, गाना गाकर लोगों से की बीजेपी को वोट देने की अपील

संथाली भाषा में हेमंत सोरेन कहते हैं- ओनागी बहरुपिए कना, यानी ये लोग बहरूपिया हैं. उनी एड़े कनाआर. यानी ये लोग झूठे हैं. उनी दलाल कना. यानी ये लोग दलाल हैं. सीएनटी एसपीटी बदलाव प्रयास हुइवा. यानी ये लोग सीएनटी एसपीटी में बदलाव करना चाहते हैं. ऐसा करके आप सभी की जमीन हड़प ली जाएगी. इनदो रेंगे होड़कना. यानी हम लोग गरीब हैं.

यह बात सभी जानते हैं कि आदिवासियों की जीवन शैली जंगल और जमीन पर टिकी हुई होती है. उनके क्षेत्र में चाहे जितने भी विकास कार्य किए जाएं लेकिन जमीन से बेदखल होने का खौफ एक तरह से उनके डीएनए में शामिल हो चुका है. हालांकि मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत भाजपा के तमाम नेता यह बताने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी सूरत में आदिवासियों को जमीन से बेदखल नहीं होने दिया जाएगा. अब देखना है कि 19 मई को चुनाव के दिन पारंपरिक शब्दों के तीर कारगर साबित होते हैं या फिर विकास का पहिया घूमता है.

रांची: झामुमो का चुनाव चिन्ह तीर धनुष है और यह आदिवासियों का पारंपरिक हथियार भी होता है, लेकिन यहां पारंपरिक हथियारों के इस्तेमाल का मतलब उन शब्दों से है जो यहां के लोगों के जेहन में कई पीढ़ियों से घर जमाए बैठा है.

राजनीति के जानकारों का मानना है कि उपराजधानी दुमका की लोकसभा सीट पर हार जीत राज्य सरकार के भविष्य पर असर डालती है. यही वजह है कि दोनों पार्टियां संथाल कि दुमका सीट को जीतने और बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं. झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन बखूबी समझते हैं कि अगर दुमका सीट पर पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन यानी गुरु जी की हार हो गई तो पार्टी के मनोबल पर जबरदस्त असर पड़ेगा और इसका प्रभाव इसी साल कुछ माह बाद होने वाले विधान सभा चुनाव के नतीजों पर दिख सकता है.

ये भी पढ़ें- 75 की उम्र में भी शिबू की शख्सियत नहीं हुई है फीकी, आज भी किसी को दे सकते हैं मात

दुमका सीट को जीतने के लिए भाजपा, शिबू सोरेन परिवार पर लगातार निशाना साध रही है. इस परिवार को आदिवासियों का दुश्मन बताया जा रहा है. यह बताने की कोशिश हो रही है कि शिबू सोरेन के परिवार ने ही सबसे ज्यादा आदिवासियों की जमीन हड़पी है. यह भी मुद्दा बनाया जा रहा है कि लंबे समय से सांसद रहने के बावजूद शिबू सोरेन ने अपने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया. उन्होंने अपने क्षेत्र के मसले को भी संसद में नहीं उठाया.

राजनीति के जानकारों के मुताबिक झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन भाजपा की इस मंशा को बखूबी समझ रहे हैं. एक तरफ देश की सबसे मजबूत राष्ट्रीय पार्टी और उसके दिग्गज नेताओं के चुनावी हमलों को काटने के लिए हेमंत सोरेन पारंपरिक शब्दों के तीर चला रहे हैं.

क्या हैं हेमंत सोरेन के चुनावी हथियार
संथाल की चुनावी सभाओं में हेमंत सोरेन उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिनको लेकर सिद्धो-कान्हो ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था और बाद के दौर में उन्ही शब्दों के जरिए शिबू सोरेन संथालियों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे थे. लिहाजा, हेमंत सोरेन संथाली भाषा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को गुजराती नटवरलाल, जमीन हड़पने वाला, दीकू यानी बाहरी, महाझूठा, बहरूपिया, सेठ का दलाल और महाजन बता कर उनके झांसे में नहीं आने की अपील कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- राजमहल पहुंचे बाबुल सुप्रीयो, गाना गाकर लोगों से की बीजेपी को वोट देने की अपील

संथाली भाषा में हेमंत सोरेन कहते हैं- ओनागी बहरुपिए कना, यानी ये लोग बहरूपिया हैं. उनी एड़े कनाआर. यानी ये लोग झूठे हैं. उनी दलाल कना. यानी ये लोग दलाल हैं. सीएनटी एसपीटी बदलाव प्रयास हुइवा. यानी ये लोग सीएनटी एसपीटी में बदलाव करना चाहते हैं. ऐसा करके आप सभी की जमीन हड़प ली जाएगी. इनदो रेंगे होड़कना. यानी हम लोग गरीब हैं.

यह बात सभी जानते हैं कि आदिवासियों की जीवन शैली जंगल और जमीन पर टिकी हुई होती है. उनके क्षेत्र में चाहे जितने भी विकास कार्य किए जाएं लेकिन जमीन से बेदखल होने का खौफ एक तरह से उनके डीएनए में शामिल हो चुका है. हालांकि मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत भाजपा के तमाम नेता यह बताने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी सूरत में आदिवासियों को जमीन से बेदखल नहीं होने दिया जाएगा. अब देखना है कि 19 मई को चुनाव के दिन पारंपरिक शब्दों के तीर कारगर साबित होते हैं या फिर विकास का पहिया घूमता है.

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रांची: झामुमो का चुनाव चिन्ह तीर धनुष है और यह आदिवासियों का पारंपरिक हथियार भी होता है, लेकिन यहां पारंपरिक हथियारों के इस्तेमाल का मतलब उन शब्दों से है जो यहां के लोगों के जेहन में कई पीढ़ियों से घर जमाए बैठा है. 



राजनीति के जानकारों का मानना है कि उपराजधानी दुमका की लोकसभा सीट पर हार जीत राज्य सरकार के भविष्य पर असर डालती है. यही वजह है कि दोनों पार्टियां संथाल कि दुमका सीट को जीतने और बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं. झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन बखूबी समझते हैं कि अगर दुमका सीट पर पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन यानी गुरु जी की हार हो गई तो पार्टी के मनोबल पर जबरदस्त असर पड़ेगा और इसका प्रभाव इसी साल कुछ माह बाद होने वाले विधान सभा चुनाव के नतीजों पर दिख सकता है. 

दुमका सीट को जीतने के लिए भाजपा, शिबू सोरेन परिवार पर लगातार निशाना साध रही है. इस परिवार को आदिवासियों का दुश्मन बताया जा रहा है. यह बताने की कोशिश हो रही है कि शिबू सोरेन के परिवार ने ही सबसे ज्यादा आदिवासियों की जमीन हड़पी है. यह भी मुद्दा बनाया जा रहा है कि लंबे समय से सांसद रहने के बावजूद शिबू सोरेन ने अपने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया. उन्होंने अपने क्षेत्र के मसले को भी संसद में नहीं उठाया. 

राजनीति के जानकारों के मुताबिक झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन भाजपा की इस मंशा को बखूबी समझ रहे हैं. एक तरफ देश की सबसे मजबूत राष्ट्रीय पार्टी और उसके दिग्गज नेताओं के चुनावी हमलों को काटने के लिए हेमंत सोरेन पारंपरिक शब्दों के तीर चला रहे हैं. 



क्या हैं हेमंत सोरेन के चुनावी हथियार

संथाल की चुनावी सभाओं में हेमंत सोरेन उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिनको लेकर सिद्धो-कान्हो ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था और बाद के दौर में उन्ही शब्दों के जरिए शिबू सोरेन संथालियों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे थे. लिहाजा, हेमंत सोरेन संथाली भाषा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को गुजराती नटवरलाल, जमीन हड़पने वाला, दीकू यानी बाहरी, महाझूठा, बहरूपिया, सेठ का दलाल और महाजन बता कर उनके झांसे में नहीं आने की अपील कर रहे हैं. 



संथाली भाषा में हेमंत सोरेन कहते हैं - ओनागी बहरुपिए कना, यानी ये लोग बहरूपिया हैं. उनी एड़े कनाआर. यानी ये लोग झूठे हैं. उनी दलाल कना. यानी ये लोग दलाल हैं. सीएनटी एसपीटी बदलाव प्रयास हुइवा. यानी ये लोग सीएनटी एसपीटी में बदलाव करना चाहते हैं. ऐसा करके आप सभी की जमीन हड़प ली जाएगी. इनदो रेंगे होड़कना . यानी हम लोग गरीब हैं. 

यह बात सभी जानते हैं कि आदिवासियों की जीवन शैली जंगल और जमीन पर टिकी हुई होती है. उनके क्षेत्र में चाहे जितने भी विकास कार्य किए जाएं लेकिन जमीन से बेदखल होने का खौफ एक तरह से उनके डीएनए में शामिल हो चुका है. हालांकि मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत भाजपा के तमाम नेता यह बताने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी सूरत में आदिवासियों को जमीन से बेदखल नहीं होने दिया जाएगा. अब देखना है कि 19 मई को चुनाव के दिन पारंपरिक शब्दों के तीर कारगर साबित होते हैं या फिर विकास का पहिया घूमता है.


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