ETV Bharat / state

2014 आम चुनाव में यह मुद्दे थे हावी, जिसने तय की उम्मीदवारों की जीत-हार

वो मुद्दे जिन्होंने 2014 चुनाव में तय की थी उम्मीदवारों की जीत और हार. वो मुद्दे जिन्हें उठाकर बीजेपी जनता की चहेती बनी. फिर सत्ता पर काबिज हुई.

2014 के चुनावी मुद्दे
author img

By

Published : Mar 25, 2019, 5:21 PM IST

रांचीः चुनाव कोई भी हो हमेशा किसी न किसी मुद्दे पर लड़े जाते हैं. जिस स्तर का चुनाव उस तरह के मुद्दे. जब बात आम चुनाव की हो तो मुद्दे भी बड़े होते हैं. जिनके आधार पर लोग अपना प्रतिनिधि चुनते हैं.

2014 के आम चुनाव में कई दावे किए गए. पक्ष और विपक्ष ने कई मुद्दे बनाए. जनता के सामने गए. कांग्रेस ने जहां चुनाव में 'पॉपुलरिज्म वर्सेज सेक्युलरिज्म' को चुनावी मुद्दा बनाया. साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से दूर रखने की अपील की. वहीं बीजेपी ने 'विकासवाद बनाम वंशवाद' मुद्दा उठाया.

इन दोनों मुद्दों ने जनता को कुछ हद तक प्रभावित जरुर किया. लेकिन देशभर की जनता जिसमें झारखंड भी शामिल है को जिन मुद्दों ने वाकई में प्रभावित किया, वो थी बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और राजनीतिक परिवर्तन.

भ्रष्टाचार
2014 के चुनाव में भ्रष्टाचार सबसे अहम मुद्दा था. यूपीए के शासन में कई घोटाले उजागर हुए थे. जिसमें 2जी, कोल गेट, आदर्श सोसाइटी सहित कई अन्य शामिल थे. इन घोटालों की आंच केंद्र सरकार के मंत्रियों तक पहुंची थी. जिसने जनता में मनमोहन सरकार निगेटिव छवि बनाई. तत्कालीन मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इसे जोर-शोर उठाया था. जिसका उसे लाभ भी मिला.

महंगाई
महंगाई ने भी मनमोहन सरकार को सत्ता से दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लगातार बढ़ती महंगाई से जनता त्रस्त थी. हर चीज की कीमत लगातार आसमान छू रही थी. पेट्रोलियम पदार्थ हो या फिर घरेलू सामान, सरकार इन कीमतों को रोकने पाने में नाकाम साबित हो रही थी. जिससे जनता में मायूसी और आक्रोश बढ़ता जा रहा था. इसी मायूसी और आक्रोश को बीजेपी ने अपना हथियार बनाया. प्रचार अभियान के दौरान महंगाई को लेकर मनमोहन सरकार पर हमला किया.

बेरोजगारी
बेरोजगारी भी सबसे अहम मुद्दा रहा मनमोहन सरकार को गिराने में. मंदी के दौर में देश का युवा लगातार बेरोजगारी का शिकार हो रहा था. एक तो नई सरकारी नौकरियां नहीं निकल रहीं थी. वहीं मंदी की वजह से बहुत से लोगों की नौकरी छिन भी गई थी. प्राइवेट सेक्टर में भी रोजगार के अवसर नहीं बन रहे थे. जिससे युवा काफी निराश थे. बीजेपी ने युवाओं की इस समस्या को काफी गंभीरता से उठाया. जिसके लिए केंद्र सरकार को नाकाम ठहराया.

राजनीतिक परिवर्तन
यूपीए का शासन 10 साल रहा. इन 10 सालों में कई परिस्थितियां रहीं. जिनकी वजह से जनता में राजनीतिक परिवर्तन को सोच जगने लगी. कई ऐसे मोर्चे पर सरकार के स्टैंड ने लोगों को निराश किया. इसलिए वो नेतृत्व परिवर्तन चाहते थे.

रांचीः चुनाव कोई भी हो हमेशा किसी न किसी मुद्दे पर लड़े जाते हैं. जिस स्तर का चुनाव उस तरह के मुद्दे. जब बात आम चुनाव की हो तो मुद्दे भी बड़े होते हैं. जिनके आधार पर लोग अपना प्रतिनिधि चुनते हैं.

2014 के आम चुनाव में कई दावे किए गए. पक्ष और विपक्ष ने कई मुद्दे बनाए. जनता के सामने गए. कांग्रेस ने जहां चुनाव में 'पॉपुलरिज्म वर्सेज सेक्युलरिज्म' को चुनावी मुद्दा बनाया. साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से दूर रखने की अपील की. वहीं बीजेपी ने 'विकासवाद बनाम वंशवाद' मुद्दा उठाया.

इन दोनों मुद्दों ने जनता को कुछ हद तक प्रभावित जरुर किया. लेकिन देशभर की जनता जिसमें झारखंड भी शामिल है को जिन मुद्दों ने वाकई में प्रभावित किया, वो थी बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और राजनीतिक परिवर्तन.

भ्रष्टाचार
2014 के चुनाव में भ्रष्टाचार सबसे अहम मुद्दा था. यूपीए के शासन में कई घोटाले उजागर हुए थे. जिसमें 2जी, कोल गेट, आदर्श सोसाइटी सहित कई अन्य शामिल थे. इन घोटालों की आंच केंद्र सरकार के मंत्रियों तक पहुंची थी. जिसने जनता में मनमोहन सरकार निगेटिव छवि बनाई. तत्कालीन मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इसे जोर-शोर उठाया था. जिसका उसे लाभ भी मिला.

महंगाई
महंगाई ने भी मनमोहन सरकार को सत्ता से दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लगातार बढ़ती महंगाई से जनता त्रस्त थी. हर चीज की कीमत लगातार आसमान छू रही थी. पेट्रोलियम पदार्थ हो या फिर घरेलू सामान, सरकार इन कीमतों को रोकने पाने में नाकाम साबित हो रही थी. जिससे जनता में मायूसी और आक्रोश बढ़ता जा रहा था. इसी मायूसी और आक्रोश को बीजेपी ने अपना हथियार बनाया. प्रचार अभियान के दौरान महंगाई को लेकर मनमोहन सरकार पर हमला किया.

बेरोजगारी
बेरोजगारी भी सबसे अहम मुद्दा रहा मनमोहन सरकार को गिराने में. मंदी के दौर में देश का युवा लगातार बेरोजगारी का शिकार हो रहा था. एक तो नई सरकारी नौकरियां नहीं निकल रहीं थी. वहीं मंदी की वजह से बहुत से लोगों की नौकरी छिन भी गई थी. प्राइवेट सेक्टर में भी रोजगार के अवसर नहीं बन रहे थे. जिससे युवा काफी निराश थे. बीजेपी ने युवाओं की इस समस्या को काफी गंभीरता से उठाया. जिसके लिए केंद्र सरकार को नाकाम ठहराया.

राजनीतिक परिवर्तन
यूपीए का शासन 10 साल रहा. इन 10 सालों में कई परिस्थितियां रहीं. जिनकी वजह से जनता में राजनीतिक परिवर्तन को सोच जगने लगी. कई ऐसे मोर्चे पर सरकार के स्टैंड ने लोगों को निराश किया. इसलिए वो नेतृत्व परिवर्तन चाहते थे.

Intro:Body:

ीाीाी


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.