रांची: फ्रांस के कान्स फिल्म फेस्टीवल में झारखंड की दो फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी. फिल्म लोहरदगा 15 मई को दिखाई जाएगी और फुलमनिया की स्क्रीनिंग16 मई को होगी. फुलमनिया में रांची की कोमल सिंह ने लीड एक्ट्रेस की भूमिका निभाई है. उन्होंने बताया कि रियल लाइफ की घटना को रील लाइफ में उतारा गया है. दोनों फिल्मों से जुड़े टीम मेंबर्स फिलहाल फ्रांस में हैं
नागपुरी भाषा में बनी फिल्म फुलमनिया की शूटिंग झारखंड में हुई है. कुछ महीने पहले फिल्म की शूटिंग के दौरान इस फिल्म के लीड एक्ट्रेस कोमल सिंह ने ईटीवी भारत के संवाददाता चंदन भट्टाचार्य से खास बातचीत की. कोमल सिंह ने बताया कि फुलमनिया डायन और बांझपन से जुड़ी कुरीतियों पर आधारित फिल्म है. कोमल की मानें तो पर्सनल लाइफ में भी वह इसकी शिकार हुई हैं इसलिए इस फिल्म को ज्यादा जीवंत कर पाई हैं. उन्होंने बताया कि शादी के 12 साल तक संतान का जन्म नहीं होने पर उनकी मां को भी ताने सुनने पड़ते थे. इस फिल्म में ऐसी कुप्रथाओं का पर्दाफाश किया गया है.
कमाल की हैं कोमल
रांची की रहने वाली कोमल को बचपन से ही एक्टिंग का शौक है. आर्थिक परेशानी के बावजूद उन्होंने अपने इस शौक को न केवल जिंदा रखा बल्कि मुकाम तक पहुंचाया भी है. रामटहल चौधरी हाई स्कूल और महेंद्र प्रसाद महाविद्यालय से पढ़ाई करने के दौरान कोमल बच्चों को डांस की ट्रेनिंग भी देती थी. कोमल क्राइम पेट्रोल, फीयर फाइल्स और सलाम इंडिया जैसे सीरियल्स में भी काम कर चुकी हैं.
कुरीतियों पर आधारित है फुलमनिया
झारखंड में डायन और बांझपन को लेकर लोगों में अंधविश्वास की जड़े काफी गहरी हैं. इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक लड़की की शादी के बाद उसके पति का देहांत हो जाता है और समाज इसे अंधविश्वास के नजरिये से देखते हुए क्रूर व्यवहार करने लगता है. लड़की को शादी के तुरंत बाद डायन बताकर सरेआम गांव में नंगा करके पत्थर मारकर भगा दिया जाता है. फिल्म में महिलाओं के बांझ होने के दर्द को भी संजीदा तरीके से पेश किया गया है. रांची की रहने वाली कोमल सिंह की जीवंत भूमिका फिल्म में देखने लायक है.
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लोहरदगा से लाल आतंक का कनेक्शन
लोहरदगा फिल्म हिंदी भाषा में बनाई गई है. इस फिल्म में ये दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे नक्सली बेरोजगार युवाओं को बहला-फुसलाकर लाल आतंक से जोड़ देते हैं. माओवादी बेरोजगारों को नक्सली बनने के बाद आत्मसमपर्ण करने पर मिलने वाली नौकरी का झांसा देकर उन्हें अपने साथ ले जाते हैं और फिर इसके बाद शुरू होती है असली कहानी.
कला प्रेमियों में खुशी
झारखंड के लिए ये गौरव की बात है कि पहली बार कान्स फिल्म फेस्टिवल में यहां बनी 2 फिल्मों को शामिल किया गया है. कांन्स फिल्म फेस्टिवल में फुलमनिया को शामिल किए जाने के बाद झारखंड के कलाकारों के साथ साथ झारखंड के कला प्रेमियों में भी खुशी का माहौल है. लोगों ने कोमल सिंह के साथ साथ इस फ़िल्म के तमाम कलाकारों को शुभकामनाएं दी है.
लोहरदगा जिले के हेसापिरी गांव के रहने वाले लाल विजय शाहदेव ने दोनों फिल्मों के निर्देशित किया है. इससे पहले साल 2016 में इनकी फिल्म दी साइलेंट स्टैच्यू कान्स फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित हो चुकी है. इनकी बनाई फिल्में फुलमनिया और लोहरदगा ने झारखंड फिल्म फेस्टिवल के दौरान भी सुर्खियां बटोरी थी.
क्यों खास है कान्स फिल्म फेस्टिवल
फ्रांस में आयोजित होने वाला कान्स फिल्म फेस्टिवल फिल्मों का महाकुंभ माना जाता है. यहां दुनियाभर की बेहतरीन फिल्में और डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाती है. इस दौरान रेड कार्पेट पर फिल्मी कलाकारों का वॉक सुर्खियों में रहता है. साल1946 से शुरू हुए कान्स फिल्म फेस्टिवल को इस साल 72 साल पूरे हो रहे हैं. इस बार ये आयोजन 14 मई से शुरू होकर 25 मई तक चलेगा.