रांची: पांच बार रांची लोकसभा सीट पर फतह करने वाले रामटहल चौधरी के बागी रुख के कारण रांची लोकसभा सीट हॉट सीट बन गई है. महेंद्र सिंह धोनी के शहर के चौक- चौराहों से लेकर गांव के खेत खलिहानों में इसी बात की चर्चा हो रही है कि रामटहल चौधरी के बतौर निर्दलीय मैदान में उतरने से सबसे ज्यादा खामियाजा किसको उठाना पड़ेगा.
दरअसल, कहा जा रहा है कि संजय सेठ मुख्यमंत्री रघुवर दास की चॉइस हैं और उन्हें भरोसा है कि भाजपा का कैडर वोट एकजुट रहेगा और जीत संजय सेठ की ही होगी. वहीं दूसरी तरफ रामटहल चौधरी इस बात को लेकर ताल ठोक रहे हैं कि उनका मुकाबला संजय सेठ से नहीं बल्कि कांग्रेस प्रत्याशी और उनके चिर प्रतिद्वंद्वी सुबोध कांत सहाय से है. रामटहल चौधरी आरोप लगा रहे हैं कि संजय सेठ पहली बार चुनाव के मैदान में उतरे हैं और उन्हें यहां की जनता ठीक से जानती भी नहीं है.रांची सीट के समीकरण को समझने के लिए हमारे वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह ने वरिष्ठ पत्रकार मधुकर से बातचीत की.
कुर्मी जाति का चेहरा हैं रामटहल
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक झारखंड में कुर्मी जाति की अच्छी खासी संख्या है और रामटहल चौधरी कुर्मियों के बड़े नेता रहे हैं. 2014 के चुनाव में सुदेश महतो ने रांची सीट से चुनाव लड़ कर खुद को कुर्मी जाति का नेता साबित करने की कोशिश की लेकिन फेल हो गए. लिहाजा रामटहल चौधरी चुनाव मैदान में बने रहते हैं तो उनको बड़ी तादाद में उनकी जाति का वोट मिलेगा जो पहले भाजपा में जाया करता था. इसका सीधा नुकसान संजय सेठ को उठाना पड़ेगा. मधुकर के मुताबिक रामटहल चौधरी की पकड़ ग्रामीण इलाकों में कुर्मी जाति के साथ-साथ ओबीसी की अन्य जातियों और एसटी- एससी पर भी रही है.
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सीएम के चॉइस के रूप में देखे जा रहे हैं संजय सेठ
रांची लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ छात्र जीवन से ही संघ से जुड़े रहे और उन्होंने रांची महानगर के स्तर पर पार्टी का नेतृत्व किया. उन्हें पार्टी ने प्रदेश प्रवक्ता भी बनाया. यही वजह है कि रघुवर सरकार ने संगठन में उनकी भूमिका को देखते हुए खादी बोर्ड के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी. लेकिन रांची संसदीय क्षेत्र में आम लोगों के बीच यह बात घर कर गई है कि अगर संजय सेठ प्रत्याशी नहीं होते तो उनकी तरह जिन दो अन्य लोगों का नाम आगे बढ़ाया गया था वह भी उसी जाति से थे जिस जाति से संजय सेठ हैं. उन्होंने कहा कि संजय सेठ की क्षमता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता लेकिन रामटहल चौधरी और कांग्रेस के सुबोध कांत सहाय के कद के सामने उनका कद छोटा दिख रहा है जो वोट के ध्रुवीकरण की गुंजाइश को प्रभावित कर सकता है.
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रामटहल के कारण सुबोध के लिए माहौल बना मुफीद
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर का मानना है कि अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मुस्लिम समाज भाजपा का विकल्प तलाश रहा है. हीं धर्म परिवर्तन कानून के कारण ईसाई समाज की नजर कांग्रेस की तरफ है. रही बात रांची लोकसभा सीट के एसटी और एससी की तो सीएनटी एक्ट में संशोधन से उन्हें होने वाले फायदे के बावजूद विपक्ष यह बताने में सफल रहा है कि यह कानून उनके लिए नुकसानदेह है. चमड़ा का कारोबार करने वाला एससी समाज का एक बड़ा तबका भी पशोपेश में है. रांची लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम और एसटी-एससी वोटरों की संख्या करीब 30 से 35% है जिसके पास सुबोध कांत की तरफ जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. मधुकर के मुताबिक सुबोध कांत सहाय कायस्थ समाज से आते हैं और यह समाज बेशक भाजपा के कैडर वोट के रूप में जाना जाता है लेकिन इन पर जातीय प्रभाव नहीं पड़ेगा ऐसा कहना सही नहीं होगा.
समीकरण से साफ है कि यह चुनाव भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ के लिए आसान नहीं दिख रहा है. लेकिन बकौल मधुकर, चुनाव शुरू होने के पहले के कुछ घंटे में अचानक खड़े होने वाले मुद्दे भी वोटरों के मिजाज को बदलते हैं. लेकिन एक बात साफ है कि रांची लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प होगा.