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सिख दंगे को याद कर आज भी कांपती है रूह, चश्मदीदों ने बयां किया दर्द - इंदिरा गांधी की हत्या

31 अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख समुदाय के बिंदा नामक युवक ने मिठाई बांट जश्न मनाया था, हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन लोग इस बात से इंकार भी नहीं करते हैं. कुछ लोग बोकारों में हिंसा फैलने की यही वजह मानते हैं.

सिख दंगे का गुरुद्वारा
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Published : Oct 31, 2019, 8:59 PM IST

Updated : Oct 31, 2019, 9:50 PM IST

बोकारोः 31 अक्टूबर 1984 में बोकारो जिले के लिए काला दिन कहा जाता है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब पूरे देश में मातम का माहौल था, तब बोकारो जिले में लोग खून की होली खेल रहे थे. बताया जाता है कि इस घटना में 100 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवाई थी.

देखें पूरी खबर

इंदिरा गांधी की मौत पर मनाया गया था जश्न
साल 1984 से पहले बोकारो जिले को लघु भारत कहा जाता था. सभी समुदाय के लोग आपस में मिल-जुल कर रहते थे. उस समय जिले में पंजाबी समुदाय के लोग भी भारी मात्रा में थे. चाहे बोकारो इस्पात संयंत्र हो, चास बाजार हो या बोकारो का बाजार हर जगह पंजाबी समुदाय के लोगों की बहुलता थी, लेकिन एक तूफान ने सब कुछ तबाह कर दिया. चर्चा यह थी कि उस तूफान को हवा दी थी पंजाबी समुदाय के बिंदा नामक युवक ने जिसने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मिठाई बांट कर जश्न मनाया था. हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं अबतक नहीं हुई है, लेकिन कोई ऐसा व्यक्ति भी नहीं है जो, इस बात से इनकार करता हो.

दिलों का दहला देने वाला था वह मंजर
इस दंगे को याद कर नरेंद्र सिंह कहते हैं कि कभी सोचा भी नहीं था कि जिसके साथ बचपन से जवानी तक का दौर तय किया, वही हमारे खून के प्यासे हो जाएंगे. वहीं, चास गुरुद्वारा में काम करने वाले सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि 1984 में गुरुद्वारा के नए भवन का शिलान्यास हुआ था. गुरुद्वारे में तब नया नया जनरेटर सेट भी लगाया गया था. लोग नए जनरेटर की रोशनी को देखकर उत्साहित थे. इसी दौरान गुरुद्वारे के बाहर सैकड़ों लोग उनके खून के प्यासे खड़े थे. लोगों ने किसी तरह भागकर जान बचाई, लेकिन सभी लोग उतने सौभाग्यशाली नहीं थे. दंगे में जहां 100 से ज्यादा लोगों की जान गई तो वहीं, संपत्ति का कितना नुकसान हुआ था यह आंक पाना बहुत ही मुश्किल है. लोगों ने हर तरफ तबाही मचा दी थी, यहां तक की छोटे-छोटे बच्चों को भी इस दंगे का शिकार होना पड़ा.

ये भी पढ़ें-इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि और सरदार पटेल की जयंती पर जुटे कांग्रेस नेता, दी गई श्रद्धांजलि

उनका कहना है कि उस दिन का कौन जिम्मेदार था, गलती किसकी थी, किसकी नहीं थी यह बता पाना मुश्किल है. बस ये कह सकते हैं कि आज के ही दिन बोकारो जिले में सैकड़ों जिंदगियां बर्बाद हो गईं. आज भी इस दंगे के बारे में सोचते हैं तो, रूह कांप जाती है. सुरेंद्र सिंह का कहना है कि आज तक उन्हें इंसाफ नहीं मिला है. जिस मुआवजे को देने की बात की गई, उसका बंदरबांट कर लिया गया.

इंसाफ की गुहार करते हैं सिख भाई
गुरु गोविंद सिंह एजुकेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष तरसेम सिंह कहते हैं कि सिख कौम एक जिंदा कौम है, इस कौम ने अपने हिंदू भाइयों को बचाने के लिए ही तलवार उठाई थी. गुरु गोविंद सिंह ने कहा था कि जनेऊ पर आंच नहीं आए इसलिए हमें लड़ना होगा, लेकिन जिस भाई के लिए हमारी कौम ने इतना कुछ किया उसी भाई ने हमें जो जख्म दिया है उसके घाव तो भले ही भर गए हो, लेकिन टिस अभी भी आती है. उन्होंने कहा कि सिखों को अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है. इसकी वजह जहां तत्कालीन सरकार की उदासीनता थी. तो वहीं, सिख कौम के लोगों का आपस में मतभेद होना भी एक बड़ी वजह है.

पत्रकार जिसने इस घटना को किया था कवर
वहीं, इस घटना को कवर करने वाले बोकारो के वरिष्ठ पत्रकार अजय अश्क जो दंगे के जमाने के एकमात्र सक्रिय पत्रकार हैं, वे कहते हैं कि उस घटना को याद कर रूह कांप जाती है. पत्रकार के दायित्व की वजह से हम उस घटना को कवर तो जरूर कर रहे थे, लेकिन वो खौफनाक मंजर आज भी उन्हें झकझोर देता है. वो कहते हैं कि ईश्वर किसी पत्रकार के जीवन में ऐसे दिन ना दिखाए और ऐसा कवरेज करने का उन्हें अवसर भी न मिले.

बोकारोः 31 अक्टूबर 1984 में बोकारो जिले के लिए काला दिन कहा जाता है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब पूरे देश में मातम का माहौल था, तब बोकारो जिले में लोग खून की होली खेल रहे थे. बताया जाता है कि इस घटना में 100 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवाई थी.

देखें पूरी खबर

इंदिरा गांधी की मौत पर मनाया गया था जश्न
साल 1984 से पहले बोकारो जिले को लघु भारत कहा जाता था. सभी समुदाय के लोग आपस में मिल-जुल कर रहते थे. उस समय जिले में पंजाबी समुदाय के लोग भी भारी मात्रा में थे. चाहे बोकारो इस्पात संयंत्र हो, चास बाजार हो या बोकारो का बाजार हर जगह पंजाबी समुदाय के लोगों की बहुलता थी, लेकिन एक तूफान ने सब कुछ तबाह कर दिया. चर्चा यह थी कि उस तूफान को हवा दी थी पंजाबी समुदाय के बिंदा नामक युवक ने जिसने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मिठाई बांट कर जश्न मनाया था. हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं अबतक नहीं हुई है, लेकिन कोई ऐसा व्यक्ति भी नहीं है जो, इस बात से इनकार करता हो.

दिलों का दहला देने वाला था वह मंजर
इस दंगे को याद कर नरेंद्र सिंह कहते हैं कि कभी सोचा भी नहीं था कि जिसके साथ बचपन से जवानी तक का दौर तय किया, वही हमारे खून के प्यासे हो जाएंगे. वहीं, चास गुरुद्वारा में काम करने वाले सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि 1984 में गुरुद्वारा के नए भवन का शिलान्यास हुआ था. गुरुद्वारे में तब नया नया जनरेटर सेट भी लगाया गया था. लोग नए जनरेटर की रोशनी को देखकर उत्साहित थे. इसी दौरान गुरुद्वारे के बाहर सैकड़ों लोग उनके खून के प्यासे खड़े थे. लोगों ने किसी तरह भागकर जान बचाई, लेकिन सभी लोग उतने सौभाग्यशाली नहीं थे. दंगे में जहां 100 से ज्यादा लोगों की जान गई तो वहीं, संपत्ति का कितना नुकसान हुआ था यह आंक पाना बहुत ही मुश्किल है. लोगों ने हर तरफ तबाही मचा दी थी, यहां तक की छोटे-छोटे बच्चों को भी इस दंगे का शिकार होना पड़ा.

ये भी पढ़ें-इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि और सरदार पटेल की जयंती पर जुटे कांग्रेस नेता, दी गई श्रद्धांजलि

उनका कहना है कि उस दिन का कौन जिम्मेदार था, गलती किसकी थी, किसकी नहीं थी यह बता पाना मुश्किल है. बस ये कह सकते हैं कि आज के ही दिन बोकारो जिले में सैकड़ों जिंदगियां बर्बाद हो गईं. आज भी इस दंगे के बारे में सोचते हैं तो, रूह कांप जाती है. सुरेंद्र सिंह का कहना है कि आज तक उन्हें इंसाफ नहीं मिला है. जिस मुआवजे को देने की बात की गई, उसका बंदरबांट कर लिया गया.

इंसाफ की गुहार करते हैं सिख भाई
गुरु गोविंद सिंह एजुकेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष तरसेम सिंह कहते हैं कि सिख कौम एक जिंदा कौम है, इस कौम ने अपने हिंदू भाइयों को बचाने के लिए ही तलवार उठाई थी. गुरु गोविंद सिंह ने कहा था कि जनेऊ पर आंच नहीं आए इसलिए हमें लड़ना होगा, लेकिन जिस भाई के लिए हमारी कौम ने इतना कुछ किया उसी भाई ने हमें जो जख्म दिया है उसके घाव तो भले ही भर गए हो, लेकिन टिस अभी भी आती है. उन्होंने कहा कि सिखों को अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है. इसकी वजह जहां तत्कालीन सरकार की उदासीनता थी. तो वहीं, सिख कौम के लोगों का आपस में मतभेद होना भी एक बड़ी वजह है.

पत्रकार जिसने इस घटना को किया था कवर
वहीं, इस घटना को कवर करने वाले बोकारो के वरिष्ठ पत्रकार अजय अश्क जो दंगे के जमाने के एकमात्र सक्रिय पत्रकार हैं, वे कहते हैं कि उस घटना को याद कर रूह कांप जाती है. पत्रकार के दायित्व की वजह से हम उस घटना को कवर तो जरूर कर रहे थे, लेकिन वो खौफनाक मंजर आज भी उन्हें झकझोर देता है. वो कहते हैं कि ईश्वर किसी पत्रकार के जीवन में ऐसे दिन ना दिखाए और ऐसा कवरेज करने का उन्हें अवसर भी न मिले.

Intro:1984 का वह काला दिन जब एक राजनीतिक पार्टी के एक नेता के द्वारा यह बयान दिया गया कि जब बड़े दरख़्त गिरते हैं तो भूचाल आ जाता है। वह भूचाल 1984 में आज के दिन बोकारो में भी आया था। वह भूचाल इतना बड़ा था जिसमें 100 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवा दी। वह भुजाल इतना बड़ा था कि सैकड़ों परिवार उजड़ गए विस्थापित हो गए। अपने घर वालों को छोड़कर कहीं दूसरी जगह जाने को मजबूर हो गए। हम बात कर रहे हैं उस काले दिन का जो 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आया था।


Body:1984 बोकारो को तब लघु भारत कहा जाता था। जहां हर कौम के लोग आपस में सौहार्द के साथ रहते थे। अपनी आजीविका कमाते थे। आपस में भाईचारे के साथ उनके दाल रोटी का जुगाड़ होता था। बोकारो में तब पंजाबी समुदाय के लोग भी काफी संख्या में थे। चाहे बोकारो इस्पात संयंत्र हो, चास बाजार हो, या बोकारो का बाजार हर जगह पंजाबी समुदाय के लोगों की बहुलता थी। लेकिन एक तूफान ने सब कुछ तबाह कर दिया। चर्चा यह थी कि उस तूफान को हवा दी थी पंजाबी समुदाय के बिंदा नामक युवक ने जिसने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मिठाई बांटी थी। जश्न मनाया था। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं होती है। लेकिन लोग दबे जुबान में इससे इनकार भी नहीं करते हैं। बोकारो में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जो भूचाल आया उसमें बोकारो में सालों पुराना जो सामाजिक ताना-बाना था वह तहस-नहस हो गया। इस दंगे को याद कर नरेंद्र सिंह कहते हैं कभी सोचा नहीं था कि जिसके साथ खेले बढे रोटी सोटी खाई। जिससे भाई भाई का रिश्ता था वह भाई ही हमारे खून का प्यासा हो गया। चास गुरुद्वारा में काम करने वाले सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि 1984 में गुरुद्वारा के नए भवन का शिलान्यास हुआ था। गुरुद्वारे में तब नया नया जनरेटर सेट भी लगाया गया था। लोग नए जनरेटर की रोशनी को देखकर उत्साहित थे। इसी दौरान गुरुद्वारे के बाहर सैकड़ों लोग उनके खून के प्यासे खड़े थे। लोगों ने किसी तरह भागकर जान बचाई ।लेकिन सभी लोग उतने सौभाग्यशाली नहीं थे। दंगे में जहां 100 से ज्यादा लोगों की जान गई तो संपत्ति का कितना नुकसान हुआ यह आंक पाना भी मुश्किल है। हजारों घर उजड़ गए। दुकानें लूट ली गई। जला दी गई। लोग घर बार छोड़कर जान बचाकर पंजाब भागे। रामगढ़ भागे। और जो बच गए आज वह उस काले दिन को जब याद करते हैं तो उनकी रूह तक कांप जाती है।


Conclusion:उस दिन के लिए कौन जिम्मेदार था गलती किसकी थी गलती किसकी नहीं थी लेकिन यह सच है कि सैकड़ों लोगों ने जान गवाई। लेकिन आज तक उन्हें इंसाफ नहीं मिला है। मुआवजे का भी बंदरबांट हुआ। जो जरूरतमंद थे उन्हें मुआवजा नहीं मिल पाया तो किसी ने मुआवजे की रकम को जरूरत से ज्यादा डकार लिया। गुरु गोविंद सिंह एजुकेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष तरसेम सिंह कहते हैं कि की सिख कौम एक जिंदा कौम है इस कौम ने अपने हिंदू भाइयों को बचाने के लिए ही तलवार उठाई थी। गुरु गोविंद सिंह ने कहा था कि जनेऊ पर आंच नहीं आए इसलिए हमें लड़ना होगा। लेकिन जिस भाई के लिए हमारी कौम ने इतना कुछ किया उसी भाई ने हमें जो जख्म दिया है उसके गांव तो भले ही भर गए हो। लेकिन टिस अभी भी आती है। बाहर से जख्म जरूर भर गए हैं। लेकिन अंदर जख्म अभी भी ताजा है।उन्होंने कहा की सिखों को अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है। इसकी वजह जहां तत्कालीन सरकार की उदासीनता थी तो वही सिख कौम के लोगों का आपस में एक नहीं होना भी एक बड़ी वजह है। वही इस घटना को कवर करने वाले बोकारो के वरिष्ठ पत्रकार अजय अश्क जो दंगे के जमाने के एकमात्र सक्रिय पत्रकार हैं। वे कहते हैं कि उस घटना को याद कर रूह कांप जाती है। पत्रकार यह दायित्व की वजह से उस घटना को कवर तो जरूर कर रहे थे। लेकिन लेकिन वो खौफनाक मंजर आज भी उन्हें हिलाता है। वो कहते हैं कि ईश्वर किसी पत्रकार के जीवन में ऐसे दिन ना दिखाएं और ऐसा कवरेज करने का उन्हें अवसर नहीं मिले।
नरेंद्र सिंह दंगे का प्रत्यक्षदर्शी
गुरमीत सिंह दंगे का प्रत्यक्षदर्शी
दरसेम सिंह, अध्यक्ष गुरु गोविंद सिंह एजुकेशन ट्रस्ट
Last Updated : Oct 31, 2019, 9:50 PM IST
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