बोकारोः 31 अक्टूबर 1984 में बोकारो जिले के लिए काला दिन कहा जाता है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब पूरे देश में मातम का माहौल था, तब बोकारो जिले में लोग खून की होली खेल रहे थे. बताया जाता है कि इस घटना में 100 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवाई थी.
इंदिरा गांधी की मौत पर मनाया गया था जश्न
साल 1984 से पहले बोकारो जिले को लघु भारत कहा जाता था. सभी समुदाय के लोग आपस में मिल-जुल कर रहते थे. उस समय जिले में पंजाबी समुदाय के लोग भी भारी मात्रा में थे. चाहे बोकारो इस्पात संयंत्र हो, चास बाजार हो या बोकारो का बाजार हर जगह पंजाबी समुदाय के लोगों की बहुलता थी, लेकिन एक तूफान ने सब कुछ तबाह कर दिया. चर्चा यह थी कि उस तूफान को हवा दी थी पंजाबी समुदाय के बिंदा नामक युवक ने जिसने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मिठाई बांट कर जश्न मनाया था. हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं अबतक नहीं हुई है, लेकिन कोई ऐसा व्यक्ति भी नहीं है जो, इस बात से इनकार करता हो.
दिलों का दहला देने वाला था वह मंजर
इस दंगे को याद कर नरेंद्र सिंह कहते हैं कि कभी सोचा भी नहीं था कि जिसके साथ बचपन से जवानी तक का दौर तय किया, वही हमारे खून के प्यासे हो जाएंगे. वहीं, चास गुरुद्वारा में काम करने वाले सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि 1984 में गुरुद्वारा के नए भवन का शिलान्यास हुआ था. गुरुद्वारे में तब नया नया जनरेटर सेट भी लगाया गया था. लोग नए जनरेटर की रोशनी को देखकर उत्साहित थे. इसी दौरान गुरुद्वारे के बाहर सैकड़ों लोग उनके खून के प्यासे खड़े थे. लोगों ने किसी तरह भागकर जान बचाई, लेकिन सभी लोग उतने सौभाग्यशाली नहीं थे. दंगे में जहां 100 से ज्यादा लोगों की जान गई तो वहीं, संपत्ति का कितना नुकसान हुआ था यह आंक पाना बहुत ही मुश्किल है. लोगों ने हर तरफ तबाही मचा दी थी, यहां तक की छोटे-छोटे बच्चों को भी इस दंगे का शिकार होना पड़ा.
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उनका कहना है कि उस दिन का कौन जिम्मेदार था, गलती किसकी थी, किसकी नहीं थी यह बता पाना मुश्किल है. बस ये कह सकते हैं कि आज के ही दिन बोकारो जिले में सैकड़ों जिंदगियां बर्बाद हो गईं. आज भी इस दंगे के बारे में सोचते हैं तो, रूह कांप जाती है. सुरेंद्र सिंह का कहना है कि आज तक उन्हें इंसाफ नहीं मिला है. जिस मुआवजे को देने की बात की गई, उसका बंदरबांट कर लिया गया.
इंसाफ की गुहार करते हैं सिख भाई
गुरु गोविंद सिंह एजुकेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष तरसेम सिंह कहते हैं कि सिख कौम एक जिंदा कौम है, इस कौम ने अपने हिंदू भाइयों को बचाने के लिए ही तलवार उठाई थी. गुरु गोविंद सिंह ने कहा था कि जनेऊ पर आंच नहीं आए इसलिए हमें लड़ना होगा, लेकिन जिस भाई के लिए हमारी कौम ने इतना कुछ किया उसी भाई ने हमें जो जख्म दिया है उसके घाव तो भले ही भर गए हो, लेकिन टिस अभी भी आती है. उन्होंने कहा कि सिखों को अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है. इसकी वजह जहां तत्कालीन सरकार की उदासीनता थी. तो वहीं, सिख कौम के लोगों का आपस में मतभेद होना भी एक बड़ी वजह है.
पत्रकार जिसने इस घटना को किया था कवर
वहीं, इस घटना को कवर करने वाले बोकारो के वरिष्ठ पत्रकार अजय अश्क जो दंगे के जमाने के एकमात्र सक्रिय पत्रकार हैं, वे कहते हैं कि उस घटना को याद कर रूह कांप जाती है. पत्रकार के दायित्व की वजह से हम उस घटना को कवर तो जरूर कर रहे थे, लेकिन वो खौफनाक मंजर आज भी उन्हें झकझोर देता है. वो कहते हैं कि ईश्वर किसी पत्रकार के जीवन में ऐसे दिन ना दिखाए और ऐसा कवरेज करने का उन्हें अवसर भी न मिले.