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गेंदा फूल की खेती ने बढ़ाई किसानों के चेहरे की रौनक, आदिवासी युवा बन रहे हैं आत्मनिर्भर

बोकारो में पहाड़ की तलहटी में बसा आदिवासी बहुल चौड़ा गांव के किसान इन दिनों गेंदा फूल की खेती जमकर कर रहे हैं (Marigold Cultivation in Bokaro). वहां के आदिवासी युवा गेंदा फूल की खेती को आमदनी के एक नए स्रोत के रूप में विकसित कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

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Published : Nov 20, 2022, 12:48 PM IST

बोकारो: झारखंड- बंगाल की सीमा पर कसमार प्रखंड के हिसीम पहाड़ की तलहटी में बसा आदिवासी बहुल चौड़ा गांव इन दिनों गेंदा फूल की खूशबू बिखेर रहा है (Marigold Cultivation in Bokaro). दरअसल इस गांव के लगभग आधे दर्जन आदिवासी युवाओं ने गेंदा फूल की खेती को आमदनी के एक नए स्रोत के रूप में विकसित किया है. युवाओं का मानना है कि सब्जी की खेती से अधिक मुनाफा उन्हें गेंदा फूल की खेती में हो रहा है. चौड़ा मुरहुलसूदी पंचायत का एक सुदूरवर्ती गांव है. किसी जमाने में यहां नक्सलियों का वर्चस्व था क्योंकि यह रेड कॉरिडोर का भाग है.

यह भी पढ़ें: गेंदा फूल की खेती ने किसान के चेहरे पर लाई मुस्कान, कम खर्च में हो रही अच्छी कमाई


मुनाफे से युवाओं की बढ़ी दिलचस्पी: करीब पांच साल पहले गांव के मात्र एक युवक लगनू किस्कू ने इसकी खेती शुरू की थी. उसकी सफलता और आमदनी से प्रेरित होकर अन्य युवाओं ने भी इसे अपनाना शुरू किया. वर्तमान में आधे दर्जन युवक अपनी अलग-अलग भूमि पर लगभग तीन एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में गेंदा फूल की खेती कर रहे हैं. दूसरे गांवों के लोग इनकी खेती देखने पहुंचते हैं.

देखें वीडियो


गोला के किसान से प्रेरित होकर शुरू की खेती: किसान लगनु किस्कू गोला प्रखंड के जाराडीह में गेंदा फूल की खेती को देखकर प्रेरित हुए थे. वहीं से इसके बारे में जानकारी हासिल की और अपने गांव में सबसे पहले इसकी खेती शुरू की. पहली बार में ही उनकी खेती सफल हुई और काफी मात्रा में गेंदा के फूल तैयार हुए. रामगढ़ और कुजू के व्यापारियों (मालाकारों) को बेचकर उससे अच्छी-खासी आमदनी हुई. लगनू की खेती की सफलता को देखकर गांव के अन्य युवाओं सूरज टुडू, अमित मुर्मू, फुलेश्वर मुर्मू, दामोदर मुर्मू, रसिक मुर्मू आदि ने 2019 में इसकी खेती शुरू कर दी.

गेंदा फूल की खेती: लगनू किस्कू वर्तमान में 70-75 डिसमिल जमीन पर गेंदा फूल की खेती करते हैं. जबकि सूरज टुडू के अनुसार, वह 50 डिसमिल भूमि पर खेती कर रहे हैं. इसी प्रकार बाकी युवाओं ने भी जमीन की उपलब्धता के अनुसार इसकी खेती को विकसित किया है. सूरज ने बताया कि 50 डिसमिल की खेती में उन्हें प्रत्येक वर्ष लगभग 25 से 30 हजार रुपए तक की आमदनी हो जाती है. लागत के तौर पर प्रति पौधा मात्र एक रुपये खर्च करने पड़ते हैं. उसके बाद केवल सिंचाई और संरक्षण के लिए मेहनत करनी पड़ती है.

साल में दो बार होती है खेती: कृषकों ने बताया कि साल में दो बार गेंदा फूल की खेती होती है. जुलाई-अगस्त में लगाए गए पौधों से दिसंबर महीने तक फूल निकलते हैं. जबकि जनवरी में लगाए गए पौधों से मई-जून तक फूल प्राप्त प्राप्त होते हैं. बताया कि बाजार की कोई समस्या नहीं है. जितने भी फूल तैयार होते हैं, उसे माला बनाकर रामगढ़ और कुजू में व्यापारियों को ले जाकर बेच दिया जाता है. बता दें कि चौड़ा गांव झारखंड और बंगाल की सीमा पर स्थित है.

बोकारो: झारखंड- बंगाल की सीमा पर कसमार प्रखंड के हिसीम पहाड़ की तलहटी में बसा आदिवासी बहुल चौड़ा गांव इन दिनों गेंदा फूल की खूशबू बिखेर रहा है (Marigold Cultivation in Bokaro). दरअसल इस गांव के लगभग आधे दर्जन आदिवासी युवाओं ने गेंदा फूल की खेती को आमदनी के एक नए स्रोत के रूप में विकसित किया है. युवाओं का मानना है कि सब्जी की खेती से अधिक मुनाफा उन्हें गेंदा फूल की खेती में हो रहा है. चौड़ा मुरहुलसूदी पंचायत का एक सुदूरवर्ती गांव है. किसी जमाने में यहां नक्सलियों का वर्चस्व था क्योंकि यह रेड कॉरिडोर का भाग है.

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मुनाफे से युवाओं की बढ़ी दिलचस्पी: करीब पांच साल पहले गांव के मात्र एक युवक लगनू किस्कू ने इसकी खेती शुरू की थी. उसकी सफलता और आमदनी से प्रेरित होकर अन्य युवाओं ने भी इसे अपनाना शुरू किया. वर्तमान में आधे दर्जन युवक अपनी अलग-अलग भूमि पर लगभग तीन एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में गेंदा फूल की खेती कर रहे हैं. दूसरे गांवों के लोग इनकी खेती देखने पहुंचते हैं.

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गोला के किसान से प्रेरित होकर शुरू की खेती: किसान लगनु किस्कू गोला प्रखंड के जाराडीह में गेंदा फूल की खेती को देखकर प्रेरित हुए थे. वहीं से इसके बारे में जानकारी हासिल की और अपने गांव में सबसे पहले इसकी खेती शुरू की. पहली बार में ही उनकी खेती सफल हुई और काफी मात्रा में गेंदा के फूल तैयार हुए. रामगढ़ और कुजू के व्यापारियों (मालाकारों) को बेचकर उससे अच्छी-खासी आमदनी हुई. लगनू की खेती की सफलता को देखकर गांव के अन्य युवाओं सूरज टुडू, अमित मुर्मू, फुलेश्वर मुर्मू, दामोदर मुर्मू, रसिक मुर्मू आदि ने 2019 में इसकी खेती शुरू कर दी.

गेंदा फूल की खेती: लगनू किस्कू वर्तमान में 70-75 डिसमिल जमीन पर गेंदा फूल की खेती करते हैं. जबकि सूरज टुडू के अनुसार, वह 50 डिसमिल भूमि पर खेती कर रहे हैं. इसी प्रकार बाकी युवाओं ने भी जमीन की उपलब्धता के अनुसार इसकी खेती को विकसित किया है. सूरज ने बताया कि 50 डिसमिल की खेती में उन्हें प्रत्येक वर्ष लगभग 25 से 30 हजार रुपए तक की आमदनी हो जाती है. लागत के तौर पर प्रति पौधा मात्र एक रुपये खर्च करने पड़ते हैं. उसके बाद केवल सिंचाई और संरक्षण के लिए मेहनत करनी पड़ती है.

साल में दो बार होती है खेती: कृषकों ने बताया कि साल में दो बार गेंदा फूल की खेती होती है. जुलाई-अगस्त में लगाए गए पौधों से दिसंबर महीने तक फूल निकलते हैं. जबकि जनवरी में लगाए गए पौधों से मई-जून तक फूल प्राप्त प्राप्त होते हैं. बताया कि बाजार की कोई समस्या नहीं है. जितने भी फूल तैयार होते हैं, उसे माला बनाकर रामगढ़ और कुजू में व्यापारियों को ले जाकर बेच दिया जाता है. बता दें कि चौड़ा गांव झारखंड और बंगाल की सीमा पर स्थित है.

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