बोकारो: झारखंड की वन संपदा का एक बहुत बड़ा हिस्सा महुआ का है. महुआ अपने आप में काफी अद्भुत है. यह लोगों को झूमाने के लिए बदनाम जरूर है लेकिन इसके कई ऐसे पहलू भी हैं जिनके फायदे बेशुमार हैं.
फल के साथ-साथ महुआ के फूल, बीज और पेड़ की छाल भी काफी गुणकारी हैं. राज्य के पर्व-त्योहार में अहम हिस्सा निभाने वाला महुआ, ग्रामीण मेवा के नाम से भी जाना जाता है. महुआ के बीज से निकलने वाला तेल जिसे कोअरी कहा जाता है, इसका प्रयोग ग्रामीण खानपान में भी करते है.
कैसे बनता है तेल ?
मई-जून के महीने में फलने वाले इस फल का तेल निकालने की एक लंबी प्रक्रिया है. फल को कूच कर महिलाएं महुआ के बीज निकालकर उसे पहले सुखाती हैं. फिर बीज के सूखने के बाद कोल्हू या मशीन की मदद से इससे तेल निकाला जाता है.
तेल के हैं कई फायदे
खानपान के अलावा महुआ के तेल का उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है. ग्रामीणों के अनुसार पेट दर्द और पैर हाथ में जलन ठीक करने में यह तेल कारगर है. वहीं, डॉक्टरों का कहना है इसमें कोलेस्ट्रॉल बेहद कम होता है. इसके उपयोग से पेट संबंधी बीमारी भी नहीं होती है. यह तेल दिया जलाने के भी काम आता है. कड़ी मेहनत से तैयार किए गए इस तेल को बाजार में बेचने से अच्छी आमदनी होती है.
सुनियोजन की है आवश्यकता
झारखंड के जंगलों में महुआ के पेड़ भारी संख्या में हैं. इसकी उपज की मात्रा तो काफी है पर इसका उपयोग नाम मात्र ही है. वहीं, ग्रामीण भी इस वन उपज का उपयोग मुश्किल से 30 से 40% ही कर पाते हैं और बाकी के फल बर्बाद हो जाते हैं. जरूरत है इस औषधीय फल को सुनियोजित तरीके से इकट्ठा कर इससे तेल निकालने की. इससे स्थानीय लोगों को आर्थिक फायदा भी होगा और आम लोगों को भी इस अद्भुत औषधीय तेल का फायदा मिल सकेगा.