बोकारो: मत्स्य बीज उत्पादन कर चंदनकियारी प्रखंड के परबहाल गांव के आठ मछुआरा परिवारों को स्थाई रोजगार मिला है. पहले पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिला स्थित रामसागर से क्षेत्र में मछली का बीज और जीरा लाया जाता था. मत्स्य विभाग और ग्रामीणों को बीज-जीरा बेचकर यहां के मछुआरे लाखों की कमाई कर रहे हैं.
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शक्ति कैवर्त का प्रयास लाया रंग
पारबहाल गांव निवासी मछुआरा शक्ति कैवर्त 2010 से पहले साइकिल से गांव-गांव घूमकर मछली बेचकर जीविकोपार्जन करता था. शक्ति कैवर्त बताते हैं कि गांव-गांव घूमकर मछली बेचने की मजबूरी के दौरान ही पश्चिम बंगाल के रामसागर जाने का मौका मिला. वहां उन्होंने देखा कि मछुआरे मत्स्य बीज उत्पादन कर पश्चिम बंगाल के अलावा झारखंड और बिहार के बाजारों में जीरा और बीज बिक्री कर रहे हैं. इसी दौरान उन्होंने 2012 में जिला मत्स्यपालन अधिकारी कार्यालय में पहुंचकर सहयोग की गुहार लगाई, जहां तत्कालीन अधिकारी मनोज कुमार ने उसके जज्बे को देखकर विभागीय खर्चे पर प्रशिक्षण के लिए रामसागर भेजकर मत्स्य उत्पादन के लिए प्रशिक्षित करवाया. इसके बाद विभाग की ओर से 50 प्रतिशत सरकारी अनुदान देकर शक्ति कैवर्त को इस दिशा में सहयोग किया गया. फिर शक्ति ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
मत्स्य बीज उत्पादन ने दिया रोजगार
शक्ति ने गांव में ही हेचरी बनाकर मत्स्य बीज और जीरा उत्पादन केंद्र का संचालन शुरू कर अपने साथ आठ लोगों को भी रोजगार मुहैया करवाया. यहां से विभागीय और निजी तालाब और मछुआरों को मत्स्य बीज आपूर्ति करवाया जा रहा है. शक्ति बताते हैं कि मत्स्य बीज उत्पादन के लिए सालों पुरानी बड़ी मछलियों को पालना पड़ता है, जिसे सालों भर स्वच्छ पानी रहने वाले तालाब में रखकर नियमित भोजन और दवाई उपलब्ध करवाना पड़ता है. इसके लिए गांव के अगल-बगल कई निजी और सरकारी तालाबों को लीज में लिया गया है. मत्स्यपालन के अलावा इन पुरानी और बड़ी नर-मादा मछलियों को सुरक्षित रखा गया है. पहली बारिश के बाद सुई देकर हेचरी में बीज छोड़ने के लिए रखा जाता है.
बीज छोड़ने के बाद बीज को हैचिंग के लिए तीन दिनों तक हेचरी में रखने पर मत्स्य बीज के उत्पादन का कार्य पूर्ण हो जाता है. इस कार्य में लगे रहने के बाद हमारे परिवार को अब रोजगार की तलाश में भटकना नहीं पड़ता. आज कुछ युवा अर्थिक रूप से सक्षम हो चुके हैं. उनकी सालाना आय पांच लाख रुपए से ज्यादा है और अब ये युवा कहीं बाहर जाने से भी कतराते हैं. गांव में ही रहकर रोजीरोटी चलाने में सक्षम हो चुके हैं.