रांचीः बदकिस्मती ने भले ही पति का साथ छुड़ाया मगर हौसलों की उड़ान ने इन्हें जीवन की नयी कहानी गढ़ने का हौसला दिया. अपने गुजरे वक्त को याद कर सहमी रांची की मंजू आज खुद को आत्मनिर्भर बनाकर गर्व महसूस कर रही हैं. सिर्फ मंजू ही नहीं रांची में पिंक ऑटो चलाने वाली महिलाओं ने समाज के सामने हिम्मत और आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है.
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2013 में पति के निधन के बाद परिवार और बच्चों की परवरिश का जिम्मा मंजू के कंधे पर अचानक आ गया. ऐसे में जीवन की रफ्तार को पिंक ऑटो ने गति दी. मंजू ने जमाने की सोच को दरकिनार करते हुए एक नयी शुरुआत की, उसके बाद मंजू ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज पति को गुजरे हुए दस वर्ष से अधिक हो चुके हैं. इस दौरान किसी तरह गम से उबरकर निकली मंजू अब ऑटोवाली दीदी कहलाने लगी हैं.
जाहिर तौर पर हर दिन हजार रुपया तक ऑटो चलाकर कमाने वाली इन महिलाओं के चेहरे पर साफ खुशी झलक रही है. कई महिलाओं को अपना ऑटो है तो कइयों ने भाड़ा पर ऑटो लेकर चला रही हैं. ऑटो चलाना सीखने के बाद अब तक पांच महिला जमशेदपुर एवं अन्य शहरों में डंफर चलाने के लिए जा चुकी हैं, जहां उन्हें ज्यादा पैसे भी मिल रहे हैं.
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सरकारी योजना का नहीं मिला लाभ
अरगोड़ा से मेन रोड बिग बाजार तक पिंक ऑटो चलाकर गुजर बसर करनेवाली अधिकांश महिलाओं के पास ना तो सरकारी राशन है और ना ही अपना आवास. सरकारी योजना के लाभ से दूर इन महिलाओं ने सरकार से गुहार लगायी मगर इनकी फरियाद किसी ने नहीं सुनी.
सुरक्षित सफर के लिए महिलाओं का खास पसंद है पिंक ऑटो
राजधानी के कई रुटों पर चल रही पिंक ऑटो महिला यात्रियों के लिए खास है. महिलाएं सुरक्षित सफर के लिए पिंक ऑटो बेहद पसंद करती हैं. उनका मानना है कि इसमें किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता. महिला यात्रियों ने पिंक ऑटो चलाकर परिवार का भरण-पोषण कर रही महिलाओं के हौसले की सराहना करते हुए कहा कि ये भले ही परिस्थितिवश मजबूर हो गयीं मगर इनकी मेहनत और लगन ने समाज को संदेश जरूर दिया है.
नगर निगम के सहयोग से शुरू हुए पिंक ऑटो में महिलाओं की बढ़ रही संख्या पर खुशी जताते हुए मेयर आशा लकड़ा ने कहा है कि इससे महिलाएं आत्मनिर्भर हुई हैं. इसके अलावा आम महिलाएं भी इसमें सफर करने में खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं. इसके अलावा पिंक ऑटो महिलाओं के लिए रोजगार का एक बड़ा जरिया बन गया है.