रांची: झारखंड में विधानसभा चुनाव 2019 का मतदान समाप्त होने के बाद 'कौन बनेगा मुख्यमंत्री' (केबीएम) का खेल शुरू हो गया है. हालांकि हॉट सीट पर कौन बैठेगा इसका फैसला 23 दिसंबर को होने वाली मतगणना के बाद स्पष्ट होगा. पुराने आंकड़ों को देखते हुए अभी तक राज्य के मुख्यमंत्री तो संताल परगना इलाके से संबंध रखने वाले राजनेता बने या कोल्हान इलाके से जनप्रतिनिधि के रूप में चुनकर आए नेता. विधानसभा चुनावों के राजनीतिक तस्वीर को देखते हुए एक तरफ बीजेपी वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में खड़ी है तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल के गठबंधन का चेहरा जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन हैं.
विपक्षी दलों के गठबंधन में जेएमएम के साथ कांग्रेस और राजद शामिल है. ऐसे में आमने-सामने की लड़ाई संताल वर्सेस कोल्हान इलाके की बीच की मानी जा रही है. हालांकि प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने साफ किया कि लोग झारखंड की मिट्टी को महत्व देंगे.
पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज कुमार पांडे ने कहा कि हेमंत सोरेन ने लोगों से वादा किया है और वह निभाएंगे. इसके साथ ही वह इस राज्य का नेतृत्व सही तरीके से कर पाएंगे. वहीं, बीजेपी खेमे में इस बात को लेकर फिलहाल शांति है लेकिन पार्टी नेताओं का दावा है कि 23 दिसंबर को नतीजे बीजेपी के फेवर में ही आएंगे.
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कोल्हान ने दिए हैं अबतक 3 मुख्यमंत्री
बता दें कि केंद्र में मंत्री अर्जुन मुंडा राज्य की 3 बार कमान संभाल चुके हैं. पहली बार 18 मार्च 2003 से 2 मार्च 2005 तक, दूसरी बार 12 मार्च 2005 से 14 सितंबर 2006 तक और तीसरी बार 11 सितंबर 2010 से 18 जनवरी 2013 तक राज्य के मुख्यमंत्री बने है. मुंडा कोल्हान के खरसावां विधानसभा इलाके से विधायक रहे हैं.
वहीं, निर्दलीय विधायक के रूप में 14 सितंबर 2006 से 28 अगस्त 2008 तक मधु कोड़ा ने राज्य की कमान संभाली. कोड़ा कोल्हान इलाके के जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे. वहीं, मुख्यमंत्री रघुवर दास 28 दिसंबर 2014 से लेकर अब तक राज्य के मुख्यमंत्री हैं. इसके साथ ही उनके नाम कार्यकाल पूरा करने वाले और बहुमत की सरकार चलाने वाले पहले सीएम होने का रिकॉर्ड है. रघुवर दास जमशेदपुर पूर्व विधानसभा इलाके से विधायक हैं. वह भी कोल्हान इलाके की सीट है.
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संताल से संबंध रखने वाले नेता भी बने हैं सीएम
बता दें कि राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने 15 नवंबर 2000 को प्रदेश की कमान संभाली थी. उस समय मरांडी दुमका लोकसभा इलाके से सांसद थे. बाद में उन्होंने रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीते, लेकिन मरांडी का कार्यक्षेत्र दुमका ही रहा जो संताल परगना का इलाका है. वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन के नाम भी बिना विधायक रहे राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड है. सोरेन पहली बार 2 मार्च 2005 से 12 मार्च 2005 तक सीएम रहे. दूसरी बार 27 अगस्त 2008 से 18 जनवरी 2009 तक और तीसरी बार 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक मुख्यमंत्री रहे. हालांकि सोरेन अपने किसी कार्यकाल में विधायक नहीं बन पाए. तीनों बार सोरेन दुमका संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे. उन्हें तमाड़ विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में उतारा भी गया लेकिन उन्हें करारी हार मिली. वहीं झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन भी प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. दुमका विधानसभा से विधायक सोरेन 13 जुलाई 2013 से 28 दिसंबर 2014 तक मुख्यमंत्री रहे हैं.
बाबूलाल मरांडी हो सकते हैं डार्क हॉर्स
हालांकि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में झारखंड विकास मोर्चा सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के डार्क हॉर्स होने की भी पूरी उम्मीद जताई जा रही है. राजनीतिक हलकों में चर्चा यह भी है कि मरांडी पूरी पार्टी के साथ पाला बदल सकते हैं. हालांकि इस बाबत कोई पुष्टि नहीं हुई है लेकिन इस राजनीतिक चर्चा की तस्वीर 23 दिसंबर को होने वाली मतगणना के बाद पूरी तरह साफ हो जाएगी.