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झारखंड में उपभोक्ताओं को कैसे मिलेगा न्याय? फाइलों में चल रहा फोरम, शिकायत तक सुनने वाला कोई नहीं

स्टेट उपभोक्ता फोरम में लगभग 1 हजार से अधिक मामले पेंडिंग हैं. वहीं, 2020 में अगर बात करें तो 44 केस की फाइलिंग की गई है. वहीं, 2021 जनवरी-फरवरी-मार्च तक में 3 मामलों की फाइलिंग की गई है, लेकिन पद खाली होने के कारण मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है.

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झारखंड में उपभोक्ता फोरम बना सफेद हाथी
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Published : Apr 2, 2021, 7:13 PM IST

Updated : Apr 3, 2021, 7:33 PM IST

रांची: झारखंड में उपभोक्ता फोरम का हाल बदहाल हो गया है. उपभोक्ता अपनी शिकायत को लेकर फोरम तो पहुंच रहे हैं, लेकिन उनकी शिकायत पर न्याय मिलना तो दूर शिकायत सुनने वाला कोई नहीं है. राजधानी रांची सहित दर्जनों जिले के उपभोक्ता फोरम का हाल यही है. जिला उपभोक्ता फोरम बिना अध्यक्ष के चल रहा है, जिसकी वजह से उपभोक्ताओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है. उपभोक्ताओं की शिकायत को रजिस्टर में बस एंट्री कर लिया जाता है. हालांकि उनकी शिकायत पर सुनवाई कब होगी, यह निश्चित नहीं हो पाता. यह हाल जिला उपभोक्ता फोरम के साथ ही राज्य उपभोक्ता फोरम का भी है.

देखें स्पेशल स्टोरी
ये भी पढ़ें- झारखंड में डे-बोर्डिंग और आवासीय सेंटर के क्या हैं हालात, पढ़ें ये रिपोर्ट

उपभोक्ता फोरम में उपभोक्ताओं को न्याय नहीं मिलने को लेकर उनका कहना है जिला फोरम में उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा है. कारण है कि उनके मामले की फाइलिंग तो करा दी जाती है, लेकिन उन्हें न्याय कब मिलेगा इसका कोई ठिकाना नहीं मिल पाता. लोगों की सरकार से मांग है कि इनपर जल्द ध्यान दिया जाए ताकि उपभोक्ताओं को न्याय मिल सके.

1 हजार से अधिक मामले पेंडिंग

स्टेट उपभोक्ता फोरम में लगभग 1 हजार से अधिक मामले पेंडिंग हैं. वहीं, 2020 में अगर बात करें तो 44 केस की फाइलिंग की गई है. वहीं, 2021 जनवरी-फरवरी-मार्च तक में 3 मामलों की फाइलिंग की गई है, लेकिन पद खाली होने के कारण मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है.

उपभोक्ता फोरम में मामलों के निष्पादन का नियम

  • जिला स्तर के उपभोक्ता फोरम में 20 लाख रुपये तक की शिकायत की जाती है
  • 20 लाख से ज्यादा यानी 1 करोड़ रुपये तक के मामले स्टेट उपभोक्ता फोरम में आते हैं
  • 1 करोड़ से ज्यादा के मामलों की शिकायत राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में होती है


उपभोक्ताओं के लिए हुआ गठन

झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता राजीव कुमार की मानें, तो राज्य में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए उपभोक्ता फोरम का गठन किया गया, लेकिन जिले से लेकर राज्य लेवल तक उपभोक्ता फोरम में ना सदस्य हैं और ना ही अध्यक्ष. इसके कारण उपभोक्ताओं को न्याय मिलना तो दूर सदस्य और अध्यक्ष की कुर्सी धूल फांक रही है. उपभोक्ताओं की शिकायत ऑफिस की फाइलों में बंद होकर रह जा रही है. उपभोक्ता फोरम में एक अध्यक्ष के अलावा 10 सदस्य होते हैं. दो में से एक महिला सदस्य होती हैं. वहीं, जिला उपभोक्ता फोरम में डिस्ट्रिक्ट रिटायर्ड जज अध्यक्ष होते हैं. वहीं, राज्य उपभोक्ता फोरम में हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज अध्यक्ष होते हैं.

सफेद हाथी बना उपभोक्ता फोरम

वहीं, जिले से लेकर स्टेट लेवल के उपभोक्ता फोरम काम नहीं करने को लेकर रांची सिविल कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व महासचिव सह बार काउंसिल के सदस्य अधिवक्ता संजय कुमार विद्रोही ने कहा कि इन दिनों उपभोक्ता फोरम सफेद हाथी बन गया है. आखिर उपभोक्ता अपनी शिकायत लेकर कहां जाएं. उनकी मानें, तो जिला उपभोक्ता फोरम में 2018 से अध्यक्ष और सदस्यों की कुर्सी खाली है. वहीं, 2020 से राज्य उपभोक्ता फोरम की कुर्सी खाली है. ऐसे में आखिर उपभोक्ताओं को कैसे न्याय मिलेगा. उपभोक्ताओं की शिकायत तो रजिस्टर में मेंटेन कर दी जाती है, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा. उन्होंने बताया कि राज्य के उपभोक्ता फोरम सही तरीके से काम करें और उनकी पद बहाल करने को लेकर पीआईएल भी दायर की गई है.

3 महीने में फैसला सुनाने की बाध्यता

किसी भी उपभोक्ता फोरम को 3 महीने के अंदर मामले का फैसला सुनाने की बाध्यता है. उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 की धारा 13(3ए)के अनुसार किसी सामान की जांच और विश्लेषण की जरूरत ना होने पर मामले का निबटारा करना होगा, लेकिन अगस्त 2018 से अध्यक्ष का एक पद और सदस्यों का पद खाली है. वहीं, स्टेट उपभोक्ता फोरम की बात करें तो 2020 से खाली है

रांची: झारखंड में उपभोक्ता फोरम का हाल बदहाल हो गया है. उपभोक्ता अपनी शिकायत को लेकर फोरम तो पहुंच रहे हैं, लेकिन उनकी शिकायत पर न्याय मिलना तो दूर शिकायत सुनने वाला कोई नहीं है. राजधानी रांची सहित दर्जनों जिले के उपभोक्ता फोरम का हाल यही है. जिला उपभोक्ता फोरम बिना अध्यक्ष के चल रहा है, जिसकी वजह से उपभोक्ताओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है. उपभोक्ताओं की शिकायत को रजिस्टर में बस एंट्री कर लिया जाता है. हालांकि उनकी शिकायत पर सुनवाई कब होगी, यह निश्चित नहीं हो पाता. यह हाल जिला उपभोक्ता फोरम के साथ ही राज्य उपभोक्ता फोरम का भी है.

देखें स्पेशल स्टोरी
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उपभोक्ता फोरम में उपभोक्ताओं को न्याय नहीं मिलने को लेकर उनका कहना है जिला फोरम में उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा है. कारण है कि उनके मामले की फाइलिंग तो करा दी जाती है, लेकिन उन्हें न्याय कब मिलेगा इसका कोई ठिकाना नहीं मिल पाता. लोगों की सरकार से मांग है कि इनपर जल्द ध्यान दिया जाए ताकि उपभोक्ताओं को न्याय मिल सके.

1 हजार से अधिक मामले पेंडिंग

स्टेट उपभोक्ता फोरम में लगभग 1 हजार से अधिक मामले पेंडिंग हैं. वहीं, 2020 में अगर बात करें तो 44 केस की फाइलिंग की गई है. वहीं, 2021 जनवरी-फरवरी-मार्च तक में 3 मामलों की फाइलिंग की गई है, लेकिन पद खाली होने के कारण मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है.

उपभोक्ता फोरम में मामलों के निष्पादन का नियम

  • जिला स्तर के उपभोक्ता फोरम में 20 लाख रुपये तक की शिकायत की जाती है
  • 20 लाख से ज्यादा यानी 1 करोड़ रुपये तक के मामले स्टेट उपभोक्ता फोरम में आते हैं
  • 1 करोड़ से ज्यादा के मामलों की शिकायत राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में होती है


उपभोक्ताओं के लिए हुआ गठन

झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता राजीव कुमार की मानें, तो राज्य में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए उपभोक्ता फोरम का गठन किया गया, लेकिन जिले से लेकर राज्य लेवल तक उपभोक्ता फोरम में ना सदस्य हैं और ना ही अध्यक्ष. इसके कारण उपभोक्ताओं को न्याय मिलना तो दूर सदस्य और अध्यक्ष की कुर्सी धूल फांक रही है. उपभोक्ताओं की शिकायत ऑफिस की फाइलों में बंद होकर रह जा रही है. उपभोक्ता फोरम में एक अध्यक्ष के अलावा 10 सदस्य होते हैं. दो में से एक महिला सदस्य होती हैं. वहीं, जिला उपभोक्ता फोरम में डिस्ट्रिक्ट रिटायर्ड जज अध्यक्ष होते हैं. वहीं, राज्य उपभोक्ता फोरम में हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज अध्यक्ष होते हैं.

सफेद हाथी बना उपभोक्ता फोरम

वहीं, जिले से लेकर स्टेट लेवल के उपभोक्ता फोरम काम नहीं करने को लेकर रांची सिविल कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व महासचिव सह बार काउंसिल के सदस्य अधिवक्ता संजय कुमार विद्रोही ने कहा कि इन दिनों उपभोक्ता फोरम सफेद हाथी बन गया है. आखिर उपभोक्ता अपनी शिकायत लेकर कहां जाएं. उनकी मानें, तो जिला उपभोक्ता फोरम में 2018 से अध्यक्ष और सदस्यों की कुर्सी खाली है. वहीं, 2020 से राज्य उपभोक्ता फोरम की कुर्सी खाली है. ऐसे में आखिर उपभोक्ताओं को कैसे न्याय मिलेगा. उपभोक्ताओं की शिकायत तो रजिस्टर में मेंटेन कर दी जाती है, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा. उन्होंने बताया कि राज्य के उपभोक्ता फोरम सही तरीके से काम करें और उनकी पद बहाल करने को लेकर पीआईएल भी दायर की गई है.

3 महीने में फैसला सुनाने की बाध्यता

किसी भी उपभोक्ता फोरम को 3 महीने के अंदर मामले का फैसला सुनाने की बाध्यता है. उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 की धारा 13(3ए)के अनुसार किसी सामान की जांच और विश्लेषण की जरूरत ना होने पर मामले का निबटारा करना होगा, लेकिन अगस्त 2018 से अध्यक्ष का एक पद और सदस्यों का पद खाली है. वहीं, स्टेट उपभोक्ता फोरम की बात करें तो 2020 से खाली है

Last Updated : Apr 3, 2021, 7:33 PM IST
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