रांची: झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के दो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू और सुखदेव भगत की पार्टी में वापसी की कवायद तेज हो गई है. आधिकारिक तौर पर यह साफ नहीं है कि उनकी वापसी कब होगी. लेकिन पिछले दिनों प्रदीप बलमुचू के कांग्रेस के नवनियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की से मुलाकात के बाद ये तय माना जा रहा है कि उनकी पार्टी में वापसी होगी. साथ ही पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत की भी वापसी के कयास लगाए जा रहे हैं.
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कांग्रेस की नई टीम से उम्मीद
दरअसल प्रदेश कांग्रेस की नई टीम के गठन के बाद दोनों पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू और सुखदेव भगत की पार्टी में वापसी की संभावना व्यक्त की जा रही है. क्योंकि उन्होंने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर रामेश्वर उरांव के कार्यकाल में ही आलाकमान को पार्टी में वापसी से संबंधित आवेदन दिया था. लेकिन डॉक्टर रामेश्वर उरांव की नीतियों की वजह से उनकी वापसी नहीं हो पाई. पिछले बेरमो विधानसभा के उपचुनाव में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे सुखदेव भगत कांग्रेस प्रत्याशी जयमंगल सिंह के प्रचार मंच पर भी दिखे थे. उस दौरान उनके साथ कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर भी मौजूद थे. माना जाता है कि राजेश ठाकुर से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत के बेहतर संबंध रहे हैं, जिसका फायदा उन्हें मिल सकता है.
रामेश्वर उरांव के कारण नहीं हो पाई वापसी
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू और सुखदेव भगत की पार्टी में वापसी के मामले को लेकर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर रामेश्वर उरांव ने साफ कहा था कि जिन नेताओं ने चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ विपक्षी दलों का दामन थाम लिया था और पार्टी प्रत्याशियों के ही खिलाफ चुनाव लड़े थे. उनकी वापसी अगले 6 वर्षों तक नहीं होगी. ऐसे में सुखदेव भगत और प्रदीप बलमुचू के पार्टी में वापसी के रास्ते बंद हो गए थे. क्योंकि जहां सुखदेव भगत ने बीजेपी की टिकट से विधानसभा चुनाव में खुद रामेश्वर उरांव को लोहरदगा सीट से चुनौती दी थी, वहीं प्रदीप बलमुचू भी आजसू की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे. हालांकि चुनाव में हार के बाद से दोनों नेता कांग्रेस में वापसी की कोशिश में हैं.
आलाकमान लेगा फैसला
दोनों पूर्व प्रदेश अध्यक्षों की वापसी पर नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि इस पर आलाकमान फैसला लेगा. उन्होंने कहा कि पार्टी यह देखेगी कि वापसी करने वाले नेताओं से संगठन को कितना फायदा पहुंचता है. उनके आने से अगर संगठन को मजबूती मिलती है तो निश्चित तौर पर वैसे नेताओं की वापसी संभव होगी.