गया: मोक्ष की नगरी गया में सीताकुंड वेदी पर पिंडदान करने का महत्व वर्णित हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां फल्गु नदी की बालू से बने पिंड को अर्पित करने मात्र से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है. हर वेदी की तरह सीताकुंड वेदी की भी अपनी पौराणिक कथा है.
पितृपक्ष मेले के दौरान तीर्थयात्री शहर की कई पिंड वेदियों पर अपने पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान करते हैं. अभी भी लाखों की संख्या में लोग गयाजी पहुंच रहे हैं.
तीर्थयात्री विभिन्न पिंड वेदियों पर पिंडदान और तर्पण कर्मकांड कर रहे हैं. वहीं, लाखों की संख्या में तीर्थयात्री पैदल ही नदी पार कर सीताकुंड वेदी पर पहुंचते हैं और अपने पितरों को पिंडदान करते हैं.
क्या कहते हैं पुजारी...
सीताकुंड पिंडवेदी के मुख्य पुजारी दिनेश कुमार पांडेय ने बताया कि यहां स्वयं भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था. इसके बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई. उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण यहां पिंडदान करने के लिए आए थे.
क्यों होता है बालू का पिंडदान
भगवान श्रीराम और लक्ष्मण पिंड की सामग्री लेने के लिए चले गए. इसी बीच राजा दशरथ की आकाशवाणी हुई. जिसमें राजा दशरथ ने कहा पुत्री सीता जल्दी से हमें पिंड दे दो. पिंड देने का मुहूर्त बीता जा रहा है. माता सीता ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के आने में देरी होते देख फल्गु नदी के बालू का पिंड बनाया और राजा दशरथ को अर्पित कर दिया. इसके बाद राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तब से सीताकुंड पिंडवेदी पर बालू का पिंड बनाकर पितरों को देने का प्रावधान है.