रांचीः झारखंड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है(Special session of Jharkhand Assembly). इस एकदिवसीय सत्र को लेकर कई तरह के सवाल खड़े होने लगे हैं. सत्र के दौरान विश्वास प्रस्ताव(confidence in Motion ) रखा जाएगा. जाने माने राजनीतिज्ञ और विधायक सरयू राय ने ईटीवी संवाददाता भुवन किशोर झा से खास बातचीत में कहा है कि सरकार को विपक्ष से नहीं बल्कि अपनों से खतरा है जिस वजह से विधायकों को पकड़ कर रायपुर के होटल में पांच दिनों से रखा गया है.
ये भी पढ़ेंः हेमंत का मास्टर स्ट्रोक! 5 सितंबर झारखंड के लिए बन सकता है ऐतिहासिक दिन
विधानसभा के पत्र में सिर्फ विश्वास प्रस्ताव रखने का जिक्र हैः सोमवार को होने वाले सदन की कार्यवाही के लिए सभी सदस्यों को एजेंडा भेज दिया गया है. विधानसभा सचिवालय से जारी पत्र में सदन में सरकार की ओर से सिर्फ विश्वास प्रस्ताव रखे जाने की बात कही गई है. सरयू राय ने कहा कि इससे यदि सदन में कोई विशेष चर्चा सरकार कराना चाहती है तो नियम के अनुकूल प्रारूप में इसे लाना पड़ेगा. एक सवाल के जवाब में सरयू राय ने कहा कि सदन में विश्वास मत प्राप्त कर लेने से कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा. ये ऐसी बातें होंगी जैसे एक तिनके से मिसाइल का सामना करना हो.
उन्होंने कहा कि विश्वासमत(vote of confidence) प्राप्त कर लेने के अगले दिन यदि संविधान के अनुरूप चुनाव आयोग का कोई फैसला आ जाता है तो उस फैसले को विश्वास प्रस्ताव नहीं रोक सकता है. इसलिए कहीं भी कोई भी संसदीय परंपराएं हैं चाहे लोकसभा हो या राज्यसभा या विधानसभा में. उसमें कोई भी बाध्यता नहीं है कि एक बार विश्वास प्रस्ताव प्राप्त हो जाएगा तो सरकार के खिलाफ अन्य कानूनी कार्रवाई के प्रावधानों का उपयोग चाहे केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा नहीं किया जा सकेगा. इसलिए यदि ऐसा है तो मुकम्मल समझदारी का अभाव है.
सदस्य सरयू राय ने ईटीवी भारत संवाददाता भुवन किशोर झा से खास बातचीत में कहा है कि सरकार को विपक्ष से खतरा नहीं है बल्कि अपनों से खतरा है. इसी वजह से विधायकों को पकड़ कर रायपुर के होटल में पांच दिनों से रखा गया है. उन्होंने कहा कि यदि किसी दल या विधानसभा सदस्य के द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता तो सरकार विश्वास मत हासिल कर सकती थी. मगर सरकार खुद विश्वासमत(vote of confidence) प्राप्त करने के लिए एक दिन का सत्र बुलाया है. विधानसभा की आपात बैठक बुलाने के बजाय सत्तारूढ़ घटक दलों के विधायक दल की बैठक बुलाकर संयुक्त रुप से प्रस्ताव पारित होता तो एक मैसेज जाता. विधानसभा को तकलीफ देना, समय जाया करना इससे कुछ भी हासिल नहीं होगा. जिन लोगों ने मुख्यमंत्री को इस तरह का परामर्श दिया है उनके बुद्धिमता पर सवाल खड़ा होता है कि इससे हासिल क्या होगा. यह एक ऐसी कवायद है जिसका कोई लक्ष्य नहीं है या कह सकते हैं मंजिल से ज्यादा रास्ता तय करने वाली बात हो रही है.