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प्रकृति के प्रति अनोखे प्रेम का पर्व है सरहुल, साल वृक्ष पर फूल लगने पर होती है नए वर्ष की शुरूआत

सरहुल महापर्व को लेकर आदिवासियों में उत्साह तो है लेकिन शोभायात्रा नहीं निकाले जाने का मलाल इनके चेहरे पर साफ झलक रहा है. बीते साल भी कोरोना ने कई पर्व से इनकी रौनक छीन ली थी. इस साल भी कोरोना ने ग्रहण लगा दिया है. हालांकि, पूरे पारंपरिक रीति रिवाज से सरना स्थल पर पूजा की जा रही है.

sarhul festival of tribal in ranchi
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Published : Apr 12, 2021, 1:04 PM IST

Updated : Apr 15, 2021, 12:11 PM IST

रांचीः प्रकृति के महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत माह के आगमन से होती है. इस समय साल के वृक्षों में फूल लग जाते हैं, जिसे आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से नए साल का सूचक मानते हैं और पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. सरहुल आदिवासियों के प्रमुख त्योहार में से एक है. इस बार तीन दिवसीय महापर्व पूजा की शुरुआत आज से उपवास के साथ शुरू हुई और 16 मार्च को फुलखोंसी के साथ इसका समापन होगा.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-सरहुल पर नहीं निकाली जाएगी शोभायात्रा, सरकार के निर्देश पर केंद्रीय सरना समिति ने भी जताई सहमति

प्रकृति और ग्राम देवता की पूजा

रांची में बसने वाले आदिवासियों की सरलता और प्रकृति के प्रति अनोखा प्रेम इसकी झलक इनकी परंपरा में देखने को मिलती है. जो किसी और सभ्यता संस्कृति में देखने को नहीं मिलती. यही कारण है कि आदिवासियों को प्रकृति का पूजक कहा जाता है. 3 दिनों के इस पर्व की अपनी अलग कई विशेषताएं हैं. इस पर्व में गांव के पाहन विशेष अनुष्ठान करते हैं. जिसमें ग्राम देवता की पूजा की जाती है और कामना की जाती है कि आने वाला साल अच्छा हो. इस क्रम में पाहन सरना स्थल में मिट्टी के हांडियों में पानी रखते हैं पानी के स्तर से ही आने वाले साल में बारिश का अनुमान लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के दूसरे दिन गांव के पाहन घर-घर जाकर फूलखोंसी करते हैं ताकि उस घर और समाज में खुशी बनी रहे.

sarhul festival of tribal
सरना स्थल

सरहुल शोभायात्रा पर कोरोना का ग्रहण

झारखंड में सरहुल महापर्व बहुत ही बड़े स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों में बसने वाले आदिवासी समाज के लोग बड़े ही उत्साह के साथ भाग लेते हैं और शोभायात्रा में विभिन्न टोला मोहल्ला से जुलूस निकाले जाते हैं. जिसमें आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति को झांकियों में दर्शाया जाता है. आदिवासी समुदाय के लोग शोभायात्रा में अपनी सभ्यता संस्कृति के अलावा आदिवासियों के वर्तमान जनमुद्दों को झांकियों के माध्यम से दिखाने के साथ ही विशाल एकजुटता के माध्यम से सरकार को अपनी मांग से अवगत कराते हैं, लेकिन पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी और राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए सरहुल शोभायात्रा को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है.

sarhul festival of tribal
पूजा करतीं महिलाएं

ये भी पढ़ें-सरहुल के जुलूस पर कोरोना का असर, नहीं निकाली जाएगी शोभा यात्रा

आदिकाल से मनुष्य और प्रकृति के बीच अनोखा जुड़ाव रहा है जिसकी झलक सरहुल महापर्व में देखने को मिलती है. आदिवासी समुदाय के लोग इस पर्व को इतना महत्वपूर्ण मानते हैं कि अपने सारे शुभ कार्य की शुरुआत इसी दिन से करते हैं. यही कारण है कि इस कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए सरहुल शोभा यात्रा स्थगित करने का निर्णय लिया गया है, लेकिन पाहन के जरिए सरना स्थलों पर पारंपरिक और विधि विधान के साथ पूजा संपन्न करायी जाएगी.

sarhul festival of tribal
झुमर करते आदिवासी

रांचीः प्रकृति के महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत माह के आगमन से होती है. इस समय साल के वृक्षों में फूल लग जाते हैं, जिसे आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से नए साल का सूचक मानते हैं और पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. सरहुल आदिवासियों के प्रमुख त्योहार में से एक है. इस बार तीन दिवसीय महापर्व पूजा की शुरुआत आज से उपवास के साथ शुरू हुई और 16 मार्च को फुलखोंसी के साथ इसका समापन होगा.

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प्रकृति और ग्राम देवता की पूजा

रांची में बसने वाले आदिवासियों की सरलता और प्रकृति के प्रति अनोखा प्रेम इसकी झलक इनकी परंपरा में देखने को मिलती है. जो किसी और सभ्यता संस्कृति में देखने को नहीं मिलती. यही कारण है कि आदिवासियों को प्रकृति का पूजक कहा जाता है. 3 दिनों के इस पर्व की अपनी अलग कई विशेषताएं हैं. इस पर्व में गांव के पाहन विशेष अनुष्ठान करते हैं. जिसमें ग्राम देवता की पूजा की जाती है और कामना की जाती है कि आने वाला साल अच्छा हो. इस क्रम में पाहन सरना स्थल में मिट्टी के हांडियों में पानी रखते हैं पानी के स्तर से ही आने वाले साल में बारिश का अनुमान लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के दूसरे दिन गांव के पाहन घर-घर जाकर फूलखोंसी करते हैं ताकि उस घर और समाज में खुशी बनी रहे.

sarhul festival of tribal
सरना स्थल

सरहुल शोभायात्रा पर कोरोना का ग्रहण

झारखंड में सरहुल महापर्व बहुत ही बड़े स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों में बसने वाले आदिवासी समाज के लोग बड़े ही उत्साह के साथ भाग लेते हैं और शोभायात्रा में विभिन्न टोला मोहल्ला से जुलूस निकाले जाते हैं. जिसमें आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति को झांकियों में दर्शाया जाता है. आदिवासी समुदाय के लोग शोभायात्रा में अपनी सभ्यता संस्कृति के अलावा आदिवासियों के वर्तमान जनमुद्दों को झांकियों के माध्यम से दिखाने के साथ ही विशाल एकजुटता के माध्यम से सरकार को अपनी मांग से अवगत कराते हैं, लेकिन पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी और राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए सरहुल शोभायात्रा को स्थगित करने का निर्णय लिया गया है.

sarhul festival of tribal
पूजा करतीं महिलाएं

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आदिकाल से मनुष्य और प्रकृति के बीच अनोखा जुड़ाव रहा है जिसकी झलक सरहुल महापर्व में देखने को मिलती है. आदिवासी समुदाय के लोग इस पर्व को इतना महत्वपूर्ण मानते हैं कि अपने सारे शुभ कार्य की शुरुआत इसी दिन से करते हैं. यही कारण है कि इस कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए सरहुल शोभा यात्रा स्थगित करने का निर्णय लिया गया है, लेकिन पाहन के जरिए सरना स्थलों पर पारंपरिक और विधि विधान के साथ पूजा संपन्न करायी जाएगी.

sarhul festival of tribal
झुमर करते आदिवासी
Last Updated : Apr 15, 2021, 12:11 PM IST
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