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अंग्रेजों के समय से चली आ रही है परंपरा, राजभवन के फूल से ही शुरू होती है इस काली मंदिर में पूजा

झारखंड राजभवन और मेन रोड स्थित प्राचीन दक्षिणा काली मंदिर का नाता काफी पुराना है. मान्यता है कि जब तक राजभवन उद्यान के फूल मां काली पर अर्पण नहीं किए जाते तब तक मां प्रसन्न नहीं होती हैं. ऐसा माना जाता है कि इस उद्यान में किसी भी तरह की विपत्ति अब तक नहीं आई है, क्योंकि यहां काम करने वाले मजदूरों और कर्मचारियों पर मां काली का आशीर्वाद है.

जानकारी देते राजभवन कर्मचारी
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Published : Feb 14, 2019, 7:15 PM IST

रांची: झारखंड राजभवन और मेन रोड स्थित प्राचीन दक्षिणा काली मंदिर का नाता काफी पुराना है. जब तक राजभवन उद्यान के फूल मां काली पर अर्पण नहीं किए जाते हैं, तब तक मां प्रसन्न नहीं होती हैं. ऐसा माना जाता है कि इस उद्यान में किसी भी तरह की विपत्ति अब तक नहीं आई है. क्योंकि इस उद्यान में कार्यरत मजदूरों और कर्मचारियों पर मां काली का आशीर्वाद है.


1947 से ही राजभवन से रांची के मेन रोड स्थित प्राचीन विख्यात काली मंदिर में फूल भेजे जाने की परंपरा शुरू हुई थी. ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान राजभवन उद्यान इतना सुंदर नहीं था बल्कि यहां जंगल और झाड़ हुआ करता था. जंगली जानवरों के अलावा विषैले सांप भी यहां विचरण करते थे.

जानकारी देते राजभवन कर्मचारी
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इन्हीं सब जंगली जानवरों से बचने के लिए यहां के माली द्वारा काली मंदिर में फूलों की माला भेजा जाने लगा और यह परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है. राजभवन के फूल चढ़ाए जाने के बाद ही अन्य श्रद्धालु यहां फूल चढ़ा सकते हैं. 5 फरवरी से 19 फरवरी तक राजभवन का उद्यान आम लोगों के लिए खोला गया है. अब तक 3 दिनों में 30 हजार से अधिक लोगों ने इस उद्यान का दीदार किया है.

रांची: झारखंड राजभवन और मेन रोड स्थित प्राचीन दक्षिणा काली मंदिर का नाता काफी पुराना है. जब तक राजभवन उद्यान के फूल मां काली पर अर्पण नहीं किए जाते हैं, तब तक मां प्रसन्न नहीं होती हैं. ऐसा माना जाता है कि इस उद्यान में किसी भी तरह की विपत्ति अब तक नहीं आई है. क्योंकि इस उद्यान में कार्यरत मजदूरों और कर्मचारियों पर मां काली का आशीर्वाद है.


1947 से ही राजभवन से रांची के मेन रोड स्थित प्राचीन विख्यात काली मंदिर में फूल भेजे जाने की परंपरा शुरू हुई थी. ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान राजभवन उद्यान इतना सुंदर नहीं था बल्कि यहां जंगल और झाड़ हुआ करता था. जंगली जानवरों के अलावा विषैले सांप भी यहां विचरण करते थे.

जानकारी देते राजभवन कर्मचारी
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इन्हीं सब जंगली जानवरों से बचने के लिए यहां के माली द्वारा काली मंदिर में फूलों की माला भेजा जाने लगा और यह परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है. राजभवन के फूल चढ़ाए जाने के बाद ही अन्य श्रद्धालु यहां फूल चढ़ा सकते हैं. 5 फरवरी से 19 फरवरी तक राजभवन का उद्यान आम लोगों के लिए खोला गया है. अब तक 3 दिनों में 30 हजार से अधिक लोगों ने इस उद्यान का दीदार किया है.

Intro:झारखंड राज भवन और मेन रोड स्थित प्राचीन दक्षिणा काली मंदिर का नाता काफी पुराना है ,अंग्रेजों के जमाने से राज भवन उद्यान का फूल की माला जब तक इस प्राचीन मंदिर में स्थापित मां काली पर अर्पण नही किया जाता है, तब तक मां प्रसन्न नहीं होती है, ऐसा माना जाता है इस उद्यान में किसी भी तरह की विपत्ति अब तक नही आई है. क्योंकि इस उद्यान में कार्यरत मजदूरों और कर्मचारियों पर माँ की आशीर्बाद है।


Body:कहते हैं वर्ष 1947 से ही राजभवन से रांची के मेन रोड स्थित प्राचीन विख्यात काली मंदिर में फूल भेजे जाने की परंपरा शुरू हुई थी ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान यह राज भवन उद्यान इतनी सुंदर नहीं थी बल्कि यहां जंगल और झाड़ हुआ करता था. जंगली जानवरों के अलावे विषैले सांप भी यहां विचरण करता था, और इन्हीं सब जंगली जानवरों से बचने के लिए ही यहां के माली द्वारा काली मंदिर में फूल की माला भेजे जाने लगा और यह परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है ,जब तक राजभवन उद्यान के फूल माला इस काली मंदिर पर मां के चरणों पर नहीं चढ़ाई जाती है तब तक मां प्रसन्न नहीं होती है और राजभवन के फूल चढ़ाए जाने के बाद ही अन्य श्रद्धालु यहां फूल चढ़ा सकते हैं यह परंपरा काफी पौराणिक है.

बाइट-मोहम्मद अब्दुल सलाम, उद्यान अधीक्षक, राजभवन।

बाइट-चुलाई मंडल, कर्मचारी, राजभवन।


Conclusion:गौरतलब है कि मंगलवार से 19 फरवरी तक राजभवन के उद्यान राष्ट्रपति उद्यान के तर्ज पर आम लोगों के लिए खोले गए हैं जहां अब तक 3 दिनों में 30 हज़ार से अधिक लोगों ने अवलोकन किया है ,पिछले वर्ष इस उद्यान का लुफ्त लगभग 10 लाख लोगों ने उठाया था ,यहां और भी कई ऐसी पौराणिक मान्यताएं छुपी हुई है जिसे लोग जानना और देखना पसंद करते हैं.
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